वाराणसी: 10 दिन की आवभगत के बाद बप्पा को विदाई देने का अब वक्त आ गया है. सार्वजनिक गणेशोत्सव से लेकर घरों तक में विराजे गणपति विसर्जन के लिए जाएंगे, जिसे लेकर तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं. इन सबके बीच सबसे जरूरी और अहम सवाल यह है कि विसर्जन कैसे करें? क्यों सरोवर या नदी के जल में ही विसर्जन शास्त्र सम्मत माना गया है?
दो तरह की होती हैं प्रतिमाएं
विसर्जन को लेकर ज्योतिषाचार्य का कहना है कि मूर्ति पूजन के आठ रूप माने जाते हैं, जिनमें मिट्टी, पत्थर, लोहे की प्रतिमा के साथ अन्य कई तरह की प्रतिमाएं शामिल हैं. चल और अचल दो तरह की प्रतिमाएं मुख्य रूप से लोग स्थापित करते हैं. चल प्रतिमाएं मिट्टी या अन्य किसी पदार्थ से बनती हैं, जबकि अचल प्रतिमाएं पत्थर, मार्बल या अन्य पदार्थ की होती है.
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मिट्टी की प्रतिमा अधिकतर पूजा उत्सव में होती है स्थापित
ऐसी स्थिति में जो चल प्रतिमाएं होती हैं, उनका एक समय तक पूजन-पाठ करने के बाद विसर्जित करने का विधान शास्त्रों में कहा गया है, क्योंकि मिट्टी की प्रतिमा अधिकतर पूजा उत्सव में स्थापित की जाती हैं. विधि-विधान से पूजन होता है. जैसा कि गणेश प्रतिमा में भी होता है.
विसर्जन की विधि
गणेश उत्सव के दौरान प्रथम दिन जिस श्रद्धाभाव से गणेशजी को स्थापित किया जाता है, उससे कहीं ज्यादा श्रद्धाभाव संग उनका विसर्जन होता है. मिट्टी की प्रतिमा को बहते नदी या सरोवर में इसलिए विसर्जन किया जाता है, क्योंकि मिट्टी उसमें घुल कर खत्म हो जाती है. ऐसी स्थिति में शास्त्रों में निर्धारित अवधि तक पूजन-पाठ करने के बाद प्रतिमा को विसर्जित करने का यही तरीका बताया गया है, जो अग्नि पुराण में भी वर्णित है.
कुंड या सरोवर में प्रतिमा का विसर्जन करने से पहले मंत्रोच्चारण के साथ भगवान गणेश की प्रतिमा को हिलाया जाता है. इसके बाद किसी वाहन पर रखकर गाजे-बाजे के साथ अबीर-गुलाल खेलते हुए विसर्जन करने जाना चाहिए. इसके पहले भगवान गणेश का विधिवत पूजन-पाठ कर महाआरती का आयोजन करना चाहिए.