जयपुर. संस्कृति और सभ्यता का हवाला देते हुए जयपुर के कई मंदिरों में अब श्रद्धालुओं की पोशाक निर्धारित करने का आग्रह किया जा रहा है. इस क्रम में अब वैशाली नगर क्षेत्र झारखंड महादेव मंदिर का नाम भी जुड़ गया है. यहां भी ड्रेस कोड लागू करने को लेकर जगह-जगह पोस्टर लगाए गए हैं.
पार्क या मॉल नहीं, प्रार्थना स्थल : अखिल भारतीय संत समिति राजस्थान प्रमुख बालमुकुंदाचार्य ने कहा कि कुछ मंदिर प्रशासन की ओर से नियमों का बोर्ड लगाया गया है कि मंदिर में किस तरह की पोशाक पहनकर प्रवेश करें. उनकी बात सही है कि लोग पार्क या मॉल में नहीं, बल्कि मंदिर में आ रहे हैं. मंदिर की एक मर्यादा होती है, उस मर्यादा का पालन करना चाहिए. मंदिर एक प्रार्थना स्थल है, तो वहां का भाव-स्वभाव और वायुमंडल के अनुरूप रहना ही उचित है.
मंदिर में मर्यादा का करें पालन : उन्होंने इस पहल का स्वागत है करते हुए ये निवेदन भी किया कि नई पीढ़ी आजकल आध्यात्म से वैसे ही दूर हो रही है, ऐसे में नियम-कायदे जरूर बनाने चाहिए, हालांकि नियम इतने भी कठोर नहीं बनाएं कि नई पीढ़ी का मंदिर में आवागमन ही बंद हो जाए. फिर भी दर्शनार्थियों से यही निवेदन है कि मंदिर में मंदिर की मर्यादाओं के हिसाब से ही जाएं. मंदिर पर जगह-जगह पोस्टर लगाए गए हैं, जिसमें आग्रह किया गया है कि 'सभी महिलाएं और पुरुष मंदिर में मर्यादित वस्त्र पहनकर आएं. छोटे वस्त्र (हाफ पैंट, बरमूडा, मिनी स्कर्ट, नाइट सूट, कटे-फटे जींस, फ्रॉक आदि) पहन कर आने पर बाहर से ही दर्शन करने का लाभ प्राप्त करें.
देवता बनकर देवों का पूजन करें : संस्कृत विश्वविद्यालय के शास्त्री कौशलेंद्र दास ने 'देवो भूत्वा देवं यजेत् नादेवो देवमर्चयेत्' श्लोक को दोहराते हुए कहा कि शास्त्रों का कथन है कि देवता बनकर देवों का पूजन करना चाहिए. यानी जिस तरह से स्नान करके मंदिरों में प्रवेश करते हैं, तिलक धारण करते हैं, सुंदर वस्त्र धारण करते हैं, उसी तरह देवताओं का पूजन करना सही है. आजकल मंदिरों में लोग विचित्र वेशभूषा धारण कर मंदिरों में प्रवेश करते हैं, जो सही नहीं है.
परंपराओं का पालन करें : शिक्षा कला और संस्कृति मंत्री डॉ. बीडी कल्ला ने भी इस मुद्दे पर कहा कि कुछ परंपराएं होती हैं, जिनकी पालना होनी चाहिए. श्रीनाथजी के मंदिर की परंपरा है कि निज मंदिर में केवल कंठीधारी ही दर्शन कर सकते हैं. इसी तरह दक्षिण के कुछ मंदिरों में केवल धोती पहन कर जाते हैं. मंदिर की जो पुरानी परंपराएं हैं, उनको शुरू से ही पालन करवाना चाहिए. यदि इस तरह के मुद्दों पर बात होती है, तो कुछ पक्ष में जाते हैं कुछ विपक्ष में. ऐसे में नई परंपरा न बनाएं, जो परंपराएं हैं उनका पालन करें.
पूजा अर्चना और घूमने में फर्क : मंदिर प्रशासन की ओर से दिए गए फैसले पर स्थानीय पार्षद अक्षत खुटेंटा ने कहा कि सनातन धर्म में हर मंदिर और भगवान की अपनी पूजा पद्धति होती है. सभी को इस पूजा पद्धति का पालन करना चाहिए. भगवान शिव की पूजा-आराधना करते समय गर्भगृह के कुछ नियम होते हैं. उन्हीं नियमों का पालन करें तो बेहतर है. भगवान की पूजा अर्चना और सार्वजनिक स्थानों पर घूमने में फर्क होना चाहिए.
मंदिर प्रशासन की ओर से उम्मीद की गई है कि मंदिर पहुंचने वाले श्रद्धालु भारतीय संस्कृति को बड़े सुचारू रूप से धारण करने में सहयोग करेंगे. इन पोस्टर को चस्पा करने के बाद शहर भर में भगवान की पूजा आराधना को लेकर शास्त्रों में लिखे नियमों और सही-गलत पर चर्चाएं तेज हो चली हैं. कोई शास्त्रों का हवाला दे रहा है, तो कोई परंपरा का निर्वहन करने की बात कर रहा है.