जयपुर. नियमों के विरुद्ध हड़ताल निजी स्कूलों की ओर से बढ़ाई जा रही फीस से अभिभावक त्रस्त है. अभिभावकों ने इस संबंध में तकरीबन 500 से ज्यादा शिकायतें शिक्षा विभाग और विभाग की ओर से फीस एक्ट 2017 के तहत बनाई गई कमेटियों में दर्ज कराई. बावजूद इसके ना तो कमेटियों की कोई मीटिंग हो रही और ना ही किसी शिकायत पर कार्रवाई हो रही. आलम ये है कि अभिभावकों के धरने, प्रदर्शन और ज्ञापनों के बावजूद कई निजी स्कूलों ने तो 20 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी कर दी है, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं.
2017 में बनाया गया फीस एक्ट : 6 साल पहले 2017 में राज्य सरकार की ओर से फीस एक्ट बनाया गया, और इस एक्ट के तहत राज्य, संभाग, जिला और स्कूल स्तर पर कमेटियों का गठन किया गया. लेकिन ये कमेटियां सिर्फ कागजों तक सीमित है. बीते 6 साल में ना तो इनकी कोई बैठक हुई और ना ही इन तक पहुंचने वाली शिकायतों का निस्तारण हुआ है. इसी वजह से प्राइवेट स्कूल अपनी मनमानी कर रहे हैं. कहीं 10 प्रतिशत, तो कहीं 20 प्रतिशत तक फीस बढ़ने के मामले सामने आए हैं. जिनमें प्रदेश के कई नामी स्कूल शामिल है. अभिभावकों पर एडमिशन फीस, रजिस्ट्रेशन फीस, एजुकेशन फीस, ट्रांसफर सर्टिफिकेट सहित स्कूल से ही कॉपी किताबें और यूनिफॉर्म खरीदने की बाध्यता रखी जाती है.
अभिभावकों को निजी स्कूलों की ओर से लूटा जा रहा : इस संबंध में पेरेंट्स वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष दिनेश कांवट ने बताया कि नया शिक्षण सत्र शुरू हो रहा है. निजी विद्यालय अपनी फीस बढ़ोतरी में लग गए हैं. हर वर्ष अभिभावकों को निजी स्कूलों की ओर से लूटा जा रहा है. राज्य सरकार इन पर कोई एक्शन ले रही है, ना शिक्षा विभाग. राज्य से लेकर विद्यालय स्तर तक फीस कमेटी का निर्माण किया गया. लेकिन फीस निर्धारण में इन कमेटियों का कोई रोल नहीं दिखता. उन्होंने राज्य सरकार से अपील करते हुए अभिभावकों को राहत दिलाने के लिए वो आगे आएं. शिक्षा विभाग के अधिकारियों को पाबंद करें कि सरकार निजी स्कूलों को जो फ्री जमीन देती है, बिजली-पानी के बिलों में राहत देती है, ऐसे में स्कूलों पर तो नकेल कसे. पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में इसी तरह की कमेटियों के जरिए निजी स्कूलों पर लगाम लगाई गई है. जिन्होंने पालना नहीं की उनकी मान्यता भी निरस्त की गई है.
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प्राइवेट स्कूल अपनी मनमानी कर रहे : अभिभावक संघ के प्रवक्ता अभिषेक जैन ने बताया कि फीस बढ़ोतरी से जुड़ी समस्याएं इस बार भी कई स्कूलों से आई है. प्राइवेट स्कूल अपनी मनमानी कर रहे हैं, जो नियम और कायदे हैं उनकी पालना प्राइवेट स्कूल तो दूर शिक्षा विभाग भी नहीं कर रहा है. एक स्कूल में तो कक्षा 6 की सभी छात्राओं को डे बोर्डिंग में शामिल किया जा रहा है. जिसके चलते अभिभावकों पर स्कूल फीस के अलावा 65000 अतिरिक्त भार पड़ेगा. इसे लेकर बीते 2 महीने से शिक्षा महकमे में अधिकारियों से लेकर मंत्रियों तक सभी को ज्ञापन दिया जा चुका है, यहां तक कि बाल आयोग और जिला कलेक्टर का भी दरवाजा खटखटाया. बावजूद इसके अभिभावक आज भी धक्के खा रहा है.
कई राज्यों में फीस को लेकर सरकार का हस्तक्षेप है : वहीं, अभिभावक संघ के अध्यक्ष अरविंद अग्रवाल ने बताया कि कई राज्यों में फीस को लेकर सरकार का हस्तक्षेप है. राजस्थान में जो फीस एक्ट बना हुआ है, उसके तहत डीएफआरसी का गठन तो हुआ, लेकिन उसका फायदा अभिभावकों को नहीं मिल पा रहा है. कारण साफ है उसकी ना तो बैठक होती है ना कोई सुनवाई। इस संबंध में अभिभावक संघ ने दोबारा डीएफआरसी का गठन करने के लिए सरकार को पत्र भी लिखा, लेकिन उस पर आज तक कार्रवाई नहीं हुई. फीस एक्ट के अनुसार स्कूलों को अपने खर्चों के अनुपात में छात्रों से फीस लेनी है, लेकिन खर्चा एक भी स्कूल सार्वजनिक नहीं करता.
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इस संबंध में करीब 500 शिकायतें दर्ज कराई : इसके अलावा अभिभावक एकता संघ के प्रदेशाध्यक्ष योगी मनीष भाई ने आरोप लगाते हुए कहा कि कुछ संस्थान शिक्षा के मंदिर को व्यापार की तरह चला रहे हैं. जिसमें वो अपने आर्थिक और राजनीतिक संपर्कों का फायदा लेते हैं. हालांकि, इनकी संख्या 5 प्रतिशत ही है, लेकिन उससे भी बड़ी संख्या में अभिभावक त्रस्त हैं. उन्होंने कहा कि शिक्षा सेवा क्षेत्र है. इसमें व्यापार नहीं होना चाहिए. शिक्षा विभाग में इस संबंध में करीब 500 शिकायतें दर्ज कराई हैं. लेकिन आज तक कार्रवाई नहीं हुई इसे लेकर समिति भी बन. एक ने भी कोई निर्णायक भूमिका अदा नहीं की. दबाव, प्रभाव और भ्रष्टाचार के चलते शिकायतों की सभी फाइलें बंद कर दी गई.
उधर, शिक्षा विभाग के अनुसार फीस से जुड़ी अधिकतर शिकायतें जुबानी आई है. जिनका समाधान भी किया गया है. जबकि बीते दिनों फीस को लेकर विधानसभा में जब प्रश्न उठाया गया था, तो शिक्षा विभाग ने कोई शिकायत नहीं आने का दंभ भरते हुए कहा था कि प्रदेश में बने फीस एक्ट 2017 की सभी 38 हजार 598 निजी स्कूल पालना कर रहे हैं. इसी की वजह सरकार पर निजी स्कूलों को संरक्षण देने के भी आरोप लग रहे हैं.