जयपुर. प्रदेश में इस बार छात्र संघ चुनाव पर रोक लगाने के बाद से जहां छात्र आंदोलित हैं, वहीं सियासी गलियारे में इस आदेश के पीछे कांग्रेस सरकार के डर को कारण बताया जा रहा है. पिछले सत्र में कांग्रेस से जुड़े छात्र संगठन एनएसयूआई का सभी विश्वविद्यालय में सूपड़ा साफ हो गया था. पिछली मर्तबा 14 में से 7 विश्वविद्यालय में निर्दलीय, जबकि 5 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और 2 में एसएफआई के प्रत्याशी जीते थे. बीते 4 चुनावी वर्ष को देखें तो राजस्थान विश्वविद्यालय में कभी एनएसयूआई का अध्यक्ष नहीं बन पाया है. 2003, 2013 और 2018 में हुए छात्र संघ चुनाव इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है. विश्वविद्यालय के इसी पुराने इतिहास का हवाला देकर विपक्ष कांग्रेस सरकार में डर की बात कह रहा है.
छात्र संघ चुनाव पर सरकार की ओर से लगाई गई रोक के बाद छात्र नेता लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. प्रदेश की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी राजस्थान विश्वविद्यालय के कैंपस में छात्रनेताओं की ओर से अनिश्चितकालीन धरना दिया जा रहा है. सरकार का तर्क है कि उन्होंने विश्वविद्यालय के कुलपतियों से चर्चा के बाद छात्र संघ चुनाव नहीं कराने का फैसला लिया, जबकि राजस्थान यूनिवर्सिटी में चुनाव की प्रस्तावित तारीख से करीब एक महीना पहले ही 20 जुलाई को छात्र नेताओं और पुलिस प्रशासन के साथ बैठक भी हुई थी. इसमें खुद कुलपति भी मौजूद रहे थे, फिर ऐन मौके पर चुनाव पर लगाई गई रोक की वजह से कई सवाल भी उठ रहे हैं.
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चार चुनावी वर्ष में यह रहे हैं हालातः राजस्थान में चार विधानसभा चुनावी वर्ष में हुए छात्रसंघ चुनाव का परिणाम कांग्रेस से जुड़े संगठन एनएसयूआई के लिए उलट ही रहा है. 2003 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के जितेंद्र मीणा छात्र संघ अध्यक्ष बने, 2008 में छात्र संघ चुनाव नहीं हुए थे. वहीं, 2013 में छात्र संघ में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के ही कानाराम जाट अध्यक्ष बने, 2018 में निर्दलीय उम्मीदवार विनोद जाखड़ ने जीत का परचम लहराया.
पुराने आंकड़ों पर विपक्ष बता रहा 'डर': इन पुराने आंकड़ों और पिछले साल के नतीजों को आधार बनाकर ही विपक्ष कांग्रेस सरकार में छात्र संघ चुनाव परिणाम के डर की बात कह रहा है. राजस्थान विश्वविद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष रहे सांगानेर विधायक अशोक लाहोटी ने कहा कि राजस्थान में छात्र संघ चुनाव पर रोक लगाना लोकतंत्र की हत्या है. पिछले चुनाव में कांग्रेस की एनएसयूआई का पूरे राजस्थान में सूपड़ा साफ हुआ था. इस बार राजस्थान का युवा और नौजवान इस सरकार से त्रस्त है. लगातार पेपर लीक हो रहे हैं, बेरोजगारी भत्ता नहीं मिल रहा, स्टूडेंट को स्कॉलरशिप नहीं मिल रही.
विश्वविद्यालय और हॉस्टल के बुरे हालात हैं और प्रदेश का युवा इस सरकार से खुद को ठगा महसूस कर रहा है. राजस्थान का युवा सरकार के पुरजोर विरोध के लिए तैयार था, और विधानसभा चुनाव से पहले इन चुनावों में कांग्रेस का पूरा सूपड़ा साफ हो रहा था. इसलिए डर के मारे इन चुनावों को रोका गया. उन्होंने कहा कि आज वो खुद जहां पर भी हैं, छात्र संघ चुनाव के कारण ही हैं. वंशवाद की राजनीति को रोकने के लिए छात्र संघ के चुनाव अहम हैं.
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वहीं, राजस्थान विश्वविद्यालय की ज्वाइंट सेक्रेट्री रहे पूर्व विधायक मोहनलाल गुप्ता ने कहा कि कांग्रेस हार रही है, एनएसयूआई हार रही है. छात्र संघ चुनाव में सभी जगह कांग्रेस हार रही है, इसलिए उन्होंने छात्र संघ चुनाव पर रोक लगा दी. छात्र संघ चुनाव से ही छात्र अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत करते हैं. गुप्ता ने कहा कि उन्होंने भी अपनी राजनीति की शुरुआत राजस्थान विश्वविद्यालय के ज्वाइंट सेक्रेट्री के रूप में की थी. इसलिए छात्र संघ एक ऐसी पीढ़ी है जिससे देश के नवनिर्माण का काम शुरू होता है. नई पीढ़ी को राजनीतिक क्षेत्र में काम करने का अनुभव मिलता है. अगर छात्र संघ चुनाव होते तो विधानसभा चुनाव पर इसका बहुत बड़ा असर पड़ता, और कांग्रेस हार रही है इसका प्रचार-प्रसार भी हो जाता.