जयपुर. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश दीपक गुप्ता का कहना है कि कई बार विदेशी दंपत्ति बच्चे को गोद लेकर चले जाते हैं, लेकिन वहां बच्चे के साथ होने वाले व्यवहार की निगरानी के लिए हमारे पास कोई व्यवस्था नहीं है. हम सोचते हैं कि विदेशी हैं तो बच्चे के साथ अच्छा व्यवहार ही करेंगे. लेकिन क्या वास्तव में ऐसा होता है? जस्टिस गुप्ता ने यह विचार राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण की ओर से आयोजित किशोर न्याय अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन को लेकर आयोजित कार्यशाला में रखे.
उन्होंने कहा कि कई सीडब्ल्यूसी सही काम नहीं कर रही हैं. क्योंकि उनमें नियुक्ति के समय यह नहीं देखा गया कि वो बच्चे की देखभाल सही ढ़ंग से कर पाएंगे या नहीं. जस्टिस गुप्ता ने कहा कि किशोर गृह कितनी भी सुविधाओं से युक्त क्यों नहीं हो, वह बच्चे के घर की जगह नहीं ले सकता है. किशोर गृह में रहने वाले 50 फीसदी बच्चों के माता-पिता जीवित होते हैं, फिर भी बच्चों को घर नसीब नहीं होता.
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हर बच्चे का अधिकार है कि वह अपने घर में पले और अपने पूर्वजों की भाषा सीखे. किशोर गृह में रहने के दौरान बच्चे को स्नेह दिया जाता है, लेकिन 18 साल की उम्र पूरी होते ही किशोर गृह से उन्हें बाहर कर दिया जाता है. यह नहीं देखा जाता कि वह समाज में किस तरह रहेगा. कार्यशाला को संबोधित करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश मनीष भंडारी ने कहा कि किशोर गृह में कुछ महीने या साल रहने के बाद बच्चे को मुख्यधारा से जोडने के लिए वोकेशनल ट्रेनिंग और शिक्षा की जरुरत है.
वहीं जस्टिस सबीना ने कहा कि 40 फीसदी बच्चों को देखभाल और सुरक्षा की जरुरत है. जरुरत है कि हर वंचित बच्चे तक सहायता पहुंचे. उन्होंने कहा कि किशोर न्याय अधिनियम के प्रावधानों का प्रभावी क्रियान्वयन हमारे लिए चुनौती से कम नहीं है.
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कार्यशाला को न्यायाधीश संदीप मेहता, न्यायाधीश इन्द्रजीत सिंह, एसीएस रोहित कुमार सिंह और युनिसेफ की चीफ फील्ड ऑफिसर ईसाबेल ने भी संबोधित किया. कार्यक्रम में किशोर गृह के बच्चों की ओर से बनाए गई पेटिंग और हैंडीक्राफ्ट की प्रदर्शनी भी लगाई गई.