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Demand of Bhil Pradesh: राजस्थान के आदिवासियों में पहुंचे नक्सलवाद और माओवाद के बीज: कैलाश मेघवाल

विधानसभा में सोमवार को पूर्व स्पीकर और ​वरिष्ठ विधायक कैलाश मेघवाल ने कहा कि प्रदेश के आदिवासियों में असंतोष है. राजस्थान के आदिवासियों में नक्सलवाद और माओवाद के बीज पहुंच चुके हैं.

MLA Kailash Meghwal on Bhil pradesh demand, says maoism and naxalism rooting in tribes of Rajasthan
Demand of Bhil Pradesh: राजस्थान के आदिवासियों में पहुंचे नक्सलवाद और माओवाद के बीज: कैलाश मेघवाल
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Published : Mar 13, 2023, 6:25 PM IST

Updated : Mar 13, 2023, 10:08 PM IST

विधायक कैलाश मेघवाल ने क्या कहा...

जयपुर. विधानसभा में प्रदेश के पूर्व स्पीकर और सबसे वरिष्ठ विधायक कैलाश मेघवाल ने प्रदेश में आदिवासियों के साथ हो रहे अत्याचार के साथ ही उन्हें अधिकार देने की वकालत की. मेघवाल ने कहा कि दक्षिण राजस्थान से भील स्थान की मांग उठ रही है. यह मांग राजस्थान को खंडित करने वाली है, जिसकी पहुंच राजस्थान विधानसभा तक भी हो चुकी है. मेघवाल ने कहा कि हमें इसे लेकर गंभीरता से विचार करना चाहिए कि ऐसी मांग क्यों उठी और हरा-भरा और रंग रंगीला राजस्थान का एक हिस्सा हमसे अलग क्यों होना चाहता है? ऐसे में इस पर गंभीरता से विचार करते हुए ऐसी नीतियां बनानी चाहिए, जिससे कि आदिवासी वर्गों में संतोष की स्थिति पैदा हो. उन्होंने कहा कि बंगाल में नक्सलवाद से कितना खून खराबा हुआ. यह किसी से छिपा नहीं और दक्षिण राजस्थान में भी नक्सलवाद के बीज पहुंच चुके हैं. आदिवासियों में असंतोष बढ़ गया है, जिससे वहां माओवाद भी बढ़ गया है.

राजस्थान में हो जातिगत जनगणना: कैलाश मेघवाल ने कहा कि दक्षिण राजस्थान विशेष शेड्यूल एरिया कहा जाता है और 8 जिलों में आदिवासी रहते हैं. वहां सर्वे करवा लिया जाए. उस सर्वे में साफ हो जाएगा कि हम आदिवासियों को स्थाई रोजगार नहीं दे पा सके. उन्होंने कहा कि आदिवासी कोई जाति नहीं है. इसकी 12 जातियां हैं, जिन्हें 1950 में नोटिफाई किया गया और इनकी उपजातियां 41 हैं. जिनके रहन-सहन, उठने-बैठने, सांस्कृतिक और सामाजिक पैटर्न अलग-अलग हैं. ऐसे में एक पैटर्न अपनाकर इनका फायदा नहीं हो सकता.

पढ़ें: बीटीपी की भील प्रदेश की मांग पर बीजेपी की निंदा, कहा- जनजाति वर्ग को तोड़ने की साजिश

उन्होंने कहा कि इन 8 जिलों में यह देखा जाए कि कितने आईएएस, आईएफएस, आईपीएस और राज्य सेवा में अधिकारी हैं. उससे हर किसी को आदिवासियों की स्थिति का पता चल जाएगा. कैलाश मेघवाल ने राजस्थान में बिहार की तर्ज पर जातिगत जनगणना की मांग करते हुए कहा कि इन सभी 12 जातियों की जनगणना की जाए और उस जनगणना के आधार पर इसकी संख्या कितनी है. उनमें राज्य का हित और राज्य का लाभ बांटा जाए.

पढ़ें: Tribal religion code: BTP ने आदिवासियों के धर्मकोड बहाल करने की उठाई मांग, डी-लिस्टिंग का किया विरोध

कमीशन की रिपोर्ट को रखा जाए विधानसभा में: कैलाश मेघवाल ने कहा कि मुझे अफसोस है कि विधानसभा की 176 में नियम में लिखा हुआ है कि शेड्यूल ट्राइब की केंद्र की कमिश्नर की रिपोर्ट को विधानसभा में रखा जाएगा, लेकिन ना मेरे समय यह रखा जा सका और ना अभी रखा जा रहा है. यह रिपोर्ट विधानसभा में रखी जानी चाहिए ताकि पता लगे कि आदिवासी की स्थिति क्या है. उन्होंने कहा कि आदिवासी को अगर मुख्यधारा में नहीं लाया गया, तो हिंसक वातावरण बनेगा. अगर आदिवासी भूखा होगा, तो वह हिंसा की ओर आकर्षित होगा और देश के विकास में बाधा बनेगा.

पढ़ें: राजस्थान समेत 4 राज्यों के आदिवासी इलाकों में बीटीपी ने बुलंद की अलग भील प्रदेश की मांग

राजस्थान में बच्चे आज भी गुलामी प्रथा कायम: मेघवाल ने कहा कि अभी विधानसभा में यह कहा जाएगा कि इतने स्कूल, छात्रावास और इतनी सुविधाएं आदिवासियों के लिए दी गईं, लेकिन क्या वह पर्याप्त है. राज के खजाने से कमजोर के लिए ज्यादा खर्च करना जरूरी है. मेघवाल ने कहा कि आदिवासी की स्थिति यह है कि वहां बच्चों को बेचा जा रहा है. क्या अपने कलेजे के टुकड़े को कोई बेचता है, लेकिन ऐसा हो रहा है. उन्होंने कहा कि जो गुलामी की परंपरा पहले चल रही थी, वह आज भी आदिवासियों में चल रही है. ऐसे में आदिवासियों को क्वालिटी एजुकेशन और आर्थिक संबल देना चाहिए.

विधायक कैलाश मेघवाल ने क्या कहा...

जयपुर. विधानसभा में प्रदेश के पूर्व स्पीकर और सबसे वरिष्ठ विधायक कैलाश मेघवाल ने प्रदेश में आदिवासियों के साथ हो रहे अत्याचार के साथ ही उन्हें अधिकार देने की वकालत की. मेघवाल ने कहा कि दक्षिण राजस्थान से भील स्थान की मांग उठ रही है. यह मांग राजस्थान को खंडित करने वाली है, जिसकी पहुंच राजस्थान विधानसभा तक भी हो चुकी है. मेघवाल ने कहा कि हमें इसे लेकर गंभीरता से विचार करना चाहिए कि ऐसी मांग क्यों उठी और हरा-भरा और रंग रंगीला राजस्थान का एक हिस्सा हमसे अलग क्यों होना चाहता है? ऐसे में इस पर गंभीरता से विचार करते हुए ऐसी नीतियां बनानी चाहिए, जिससे कि आदिवासी वर्गों में संतोष की स्थिति पैदा हो. उन्होंने कहा कि बंगाल में नक्सलवाद से कितना खून खराबा हुआ. यह किसी से छिपा नहीं और दक्षिण राजस्थान में भी नक्सलवाद के बीज पहुंच चुके हैं. आदिवासियों में असंतोष बढ़ गया है, जिससे वहां माओवाद भी बढ़ गया है.

राजस्थान में हो जातिगत जनगणना: कैलाश मेघवाल ने कहा कि दक्षिण राजस्थान विशेष शेड्यूल एरिया कहा जाता है और 8 जिलों में आदिवासी रहते हैं. वहां सर्वे करवा लिया जाए. उस सर्वे में साफ हो जाएगा कि हम आदिवासियों को स्थाई रोजगार नहीं दे पा सके. उन्होंने कहा कि आदिवासी कोई जाति नहीं है. इसकी 12 जातियां हैं, जिन्हें 1950 में नोटिफाई किया गया और इनकी उपजातियां 41 हैं. जिनके रहन-सहन, उठने-बैठने, सांस्कृतिक और सामाजिक पैटर्न अलग-अलग हैं. ऐसे में एक पैटर्न अपनाकर इनका फायदा नहीं हो सकता.

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उन्होंने कहा कि इन 8 जिलों में यह देखा जाए कि कितने आईएएस, आईएफएस, आईपीएस और राज्य सेवा में अधिकारी हैं. उससे हर किसी को आदिवासियों की स्थिति का पता चल जाएगा. कैलाश मेघवाल ने राजस्थान में बिहार की तर्ज पर जातिगत जनगणना की मांग करते हुए कहा कि इन सभी 12 जातियों की जनगणना की जाए और उस जनगणना के आधार पर इसकी संख्या कितनी है. उनमें राज्य का हित और राज्य का लाभ बांटा जाए.

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कमीशन की रिपोर्ट को रखा जाए विधानसभा में: कैलाश मेघवाल ने कहा कि मुझे अफसोस है कि विधानसभा की 176 में नियम में लिखा हुआ है कि शेड्यूल ट्राइब की केंद्र की कमिश्नर की रिपोर्ट को विधानसभा में रखा जाएगा, लेकिन ना मेरे समय यह रखा जा सका और ना अभी रखा जा रहा है. यह रिपोर्ट विधानसभा में रखी जानी चाहिए ताकि पता लगे कि आदिवासी की स्थिति क्या है. उन्होंने कहा कि आदिवासी को अगर मुख्यधारा में नहीं लाया गया, तो हिंसक वातावरण बनेगा. अगर आदिवासी भूखा होगा, तो वह हिंसा की ओर आकर्षित होगा और देश के विकास में बाधा बनेगा.

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राजस्थान में बच्चे आज भी गुलामी प्रथा कायम: मेघवाल ने कहा कि अभी विधानसभा में यह कहा जाएगा कि इतने स्कूल, छात्रावास और इतनी सुविधाएं आदिवासियों के लिए दी गईं, लेकिन क्या वह पर्याप्त है. राज के खजाने से कमजोर के लिए ज्यादा खर्च करना जरूरी है. मेघवाल ने कहा कि आदिवासी की स्थिति यह है कि वहां बच्चों को बेचा जा रहा है. क्या अपने कलेजे के टुकड़े को कोई बेचता है, लेकिन ऐसा हो रहा है. उन्होंने कहा कि जो गुलामी की परंपरा पहले चल रही थी, वह आज भी आदिवासियों में चल रही है. ऐसे में आदिवासियों को क्वालिटी एजुकेशन और आर्थिक संबल देना चाहिए.

Last Updated : Mar 13, 2023, 10:08 PM IST
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