जयपुर. बीते दिनों मैरिज सर्टिफिकेट बनवाने के लिए दूसरे राज्य से राजस्थान में आकर बसे लोगों को जन आधार कार्ड की बाध्यता में शिथिलता दी गई. वहीं, पुराने दंपती, आर्य समाज या सामूहिक विवाह सम्मेलन में शादी करने वाले दंपती को मैरिज कार्ड की भी शिथिलता दी गई है. लेकिन अब दंपती को निगम कार्यालय आकर फोटो खिंचवाना होगा, इसके साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया है कि आर्य समाज में शादी करने वाले दंपती का वहां से मिलने वाला सर्टिफिकेट मान्य नहीं है. हालांकि आर्य समाज का सर्टिफिकेट उनके निगम रजिस्ट्रेशन का आधार जरूर बन सकता है.
26 मई, 2006 से नगर निगम प्रशासन को मैरिज रजिस्ट्रेशन का जिम्मा सौंपा गया था. सरकार ने इस संबंध में पहले गाइडलाइन लागू की और उसके बाद 2009 में एक्ट बन गया. जिसके तहत हिंदू और मुस्लिम मैरिज का रजिस्ट्रेशन निगम प्रशासन करता है. जबकि क्रिश्चियन मैरिज का रजिस्ट्रेशन कलेक्ट्रेट में होता है. विवाह पंजीयन रजिस्ट्रार प्रदीप पारीक ने बताया कि मैरिज सर्टिफिकेट बनाने के लिए चार शपथ पत्र (वर-वधु और दोनों पक्ष के एक-एक गवाह) लगते हैं. वर-वधु के आधार कार्ड जन आधार कार्ड और डेट ऑफ बर्थ के लिए कोई भी एक अन्य आईडी जरूरी है.
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हालांकि, पुराने दंपती के लिए मैरिज कार्ड की बाध्यता को खत्म कर दिया गया है. उन्होंने बताया कि पहले मैरिज सर्टिफिकेट बनाने के लिए वर-वधु का फोटो मंगवा लिया जाता था, लेकिन अब निगम परिसर में ही हवा महल के चित्र के साथ दंपती का फोटो क्लिक किया जाता है. शादी के एक महीने तक रजिस्ट्रेशन कराने पर महज 10 रुपए शुल्क लगता है. इसके बाद कराने पर 100 रुपए का भुगतान करना होता है.
चूंकि निगम प्रशासन की ओर से कलर्ड प्रति दी जाती है, जिसका शुल्क 100 निर्धारित किया हुआ है. ऐसे में एक महीने में रजिस्ट्रेशन कराने वालों को 110 रुपए, जबकि 20 महीने के बाद रजिस्ट्रेशन कराने वालों को 200 रुपए शुल्क देना होता है. उन्होंने बताया कि कुछ लोग आर्य समाज में शादी करते हैं, जिन्हें आर्य समाज की ओर से ही सर्टिफिकेट दिया जाता है. उसी को ही डॉक्यूमेंट के तौर लेते हुए निगम की ओर से मैरिज सर्टिफिकेट जारी किया जाता है. जबकि सामूहिक विवाह में पंपलेट या विवाह समारोह समिति का लेटर हेड इस्तेमाल किया जाता है. प्रदीप पारीक ने यह भी स्पष्ट किया कि निगम प्रशासन के पास मैरिज सर्टिफिकेट को कैंसिल करने का कोई अधिकार नहीं है, इसके लिए कोर्ट जाना होता है.