जयपुर. ईटीवी भारत की टीम आपको राजस्थान की बदलती तस्वीर दिखाने लापोडिया गांव की सीमा रेखा पर पहुंची. जयपुर के दूदू विधानसभा क्षेत्र के लापोडिया गांव से यह जल यात्रा शुरू हुई. इस दौरान सहेजे गए पानी को देखकर स्थानीय लोगों के साथ समाजसेवी लक्ष्मण सिंह लापोडिया की मेहनत नजर आई. तीन दशक पहले डार्क जोन में तब्दील हो चुकी लापोडिया गांव में अब पानी का कोई संकट नहीं है.
राजधानी के दूदू से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद लापोडिया कस्बा राजस्थान में जल संरक्षण की एक मिसाल के रूप में देखा जा रहा है. समाजसेवी लक्ष्मण सिंह लापोडिया ने करीब 20 साल की उम्र में अपने गांव के छोटे तालाब और गिरते जल स्तर से प्रेरणा लेते हुए बरसात के पानी को सहेजने के साथ-साथ इसे ठीक से संभालने के लिए प्रयास शुरू किए. धीरे-धीरे उनके इस प्रयास में आसपास के 58 गांव शामिल हो गए. इसीका नतीजा है कि अब लापोडिया सहित इन 58 गांवों में पानी का कोई संकट नहीं रहता.
लक्ष्मण सिंह लापोडिया ने दावा किया कि इन 58 गांवों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के संकल्प की तर्ज पर पहले से ही काम हो रहा है. ये 58 गांव ना सिर्फ चारा और पानी के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हैं बल्कि यहां के खेतों में किसान साल में खेतों से तीन तरह की उपज लेते हैं. यहां हर किसान के पास बड़ी संख्या में मवेशी हैं. इनके लिए चारे पानी का इंतजाम भी गांव वाले अपने स्तर पर ही करते हैं.
गांव के लोगों के साथ मिलकर लक्ष्मण सिंह ने बरसात के पानी को व्यर्थ बहने से रोका और इसे गांव के तालाबों में डाइवर्ट किया. अतिरिक्त पानी को सहेजने के लिए उन्होंने परंपरागत तकनीक का इस्तेमाल करते हुए हर गांव के चारागाह क्षेत्र में छोटी-छोटी मुंडेर बनाकर व्यवस्थित तरीके से पानी को बचाने के प्रयास किए.
पढें- स्पेशल: 'वेस्ट को बेस्ट' बनाने का नायाब तरीका...बिना लागत तैयार कर दिए 2 हजार नीम के पौधे
लक्ष्मण सिंह ने बताया कि उनका क्षेत्र पथरीली जमीन का है, ऐसे में पानी तुरंत बह जाता है. पानी को एक जगह जमा करने के लिए शुरुआती तौर पर कई चुनौतियां भी आईं. लेकिन किसी भी मुश्किल से उन्होंने हार नहीं मानी. उन्होंने सबसे पहले अपने गांव में नवयुवक मंडल तैयार किया. जिसने गांव के लोगों को पानी बचाने के लिए समझाने में खासा मशक्कत की. इसके बाद लोग जुड़ते गए और कारवां बनता गया. उनकी इस मुहिम का नतीजा है कि आज आसपास के क्षेत्रों में कुओं में 3 से 4 फीट की गहराई पर पानी उपलब्ध है. साल भर हर गांव के दो से तीन तालाबों में पूरा पानी रहता है. वहीं चारागाह क्षेत्र में पशुओं को चरने के लिए पर्याप्त घास मिल जाती है.
पानी को बचाने के लापोडिया गांव के मॉडल को स्थानीय लोग जल संस्कृति का नाम देते हैं. इन लोगों का कहना है कि पर्यावरण को बचाना अति आवश्यक है, इसलिए उनके क्षेत्र में-
- शिकार प्रतिबंधित है
- जंगलों में पेड़ों को काटा जाना पूर्णतया वर्जित है
- पानी को सहेजना, हर ग्रामीण की जिम्मेदारी है
पढ़ें- कभी गांव की पहचान रहा और आज खुद की ही पहचान को तरस रहा 'तालाब'
गांव में दाखिल होने से पहले परिचय के रूप में एक बोर्ड पर गांव के लोगों ने सब लोगों को यह चेतावनी दी है कि गांव में प्रकृति की रक्षा के लिए काम किया जाए. वहीं गांव से निकलने पर सभी को संकल्प दिलाने के लिए प्रतिज्ञा स्वरूप शपथ को बोर्ड पर अंकित किया गया है. इस गांव में वर्षा जल को रास्तों की ढलान के हिसाब से डायवर्ट करते हुए एक गांव से दूसरे गांव तक पहुंचाने के प्रबंध किए गए हैं. गांव के तालाब ओवर फ्लो हो जाएं तो उस पानी को चारागाह क्षेत्र में भेजा जाता है, चारागाह क्षेत्र में 9 इंच तक पानी को जमा किया जाता है और उसके बाद इस पानी को आगे डायवर्ट कर दिया जाता है. इस तरह से जल संस्कृति में एक गांव से दूसरे गांव को जोड़ते हुए पानी को बचाने के साथ-साथ भूगर्भ में भी पहुंचाया जा रहा है. पानी को साल भर की जरूरतों के लिए सहेजा जा रहा है.
लापोडिया का मॉडल इतना प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका है कि राजस्थान सरकार ने भी अपने कुछ प्रोजेक्ट्स में बीडीओ स्तर के अधिकारियों को यहां भेज कर जल स्वावलंबन की सीख लेने के लिए एक प्रोजेक्ट शुरू किया. वहीं कुछ विदेशी प्रोजेक्ट्स में इस गांव के लोगों के प्रयास का अध्ययन किया जा रहा है.