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भीष्म पितामाह ने ऐसे किया पिंडदान की तृप्त हो गए कुल 1000, इन 16 खंभों का है विशेष महत्व

भीष्म पितामह अपने शान्तनु का श्राद्ध करने जब गया जी आए. उन्होंने विष्णु पद पर अपने पितरों का आह्वान किया और श्राद्ध करने को उद्दत हुए. उसी दौरान शान्तनु के हाथ निकले. लेकिन भीष्म पितामह ने शान्तनु के हाथ पर पिंड न देकर विष्णुपद पर पिंडदान किया.

भीष्म पितामाह ने किया पिंडदान , Bhishma Pitamah did this kind of pinddaan
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Published : Sep 18, 2019, 8:20 PM IST

गया: मोक्ष की नगरी गया जी मे पिंडदान के छठवें दिन विष्णुपद मंदिर के ठीक बगल में स्थित 16 पिंडवेदियों पर तर्पण करने का विधान है. यहां लगातार तीन दिनों तक एक-एक कर सभी पिंडवेदियों पर पिंडदान किया जाएगा. ये पिंडवेदियां स्तंभ के रूप में हैं. लोग यहां पितरों को पिंड अर्पित करने के बजाए स्तंभों को पिंड अर्पित किया जाता है. इसके पीछे पौराणिक कथा का महत्व है.

भीष्म पितामाह ने ऐसे किया पिंडदान की तृप्त हो गए कुल 1000

गयाजी में पिंडदान के छठवें दिन विष्णुपद मंदिर स्थित पद रूपी तीर्थों में श्राद्ध करते हैं. छठवें दिन पहले फल्गु नदी में स्नान करके मार्कंडेय महादेव का दर्शन कर विष्णुपद स्थित सोलह वेदियों पर आना चाहिए. यहां आकर विष्णु भगवान सहित अन्य भगवानों को जिनके नाम से वेदी हैं, उनको स्मरण करना चाहिए. उसके बाद पिंडदान का कर्मकांड शुरू करना चाहिए.

ये भी है विधान...
फल्गु नदी मार्कंडेय महादेव से लेकर उत्तर मानस तक ही फल्गु तीर्थ हैं. इतनी दूरी में ही स्नान, तर्पण और श्राद्ध करने से फल्गु तीर्थ का श्राद्ध माना जाएगा. मार्कंडेय से दक्षिण नदी का नाम निरंजना और उत्तर मानस से उत्तर इसका नाम भुतही है.

एक हजार कुलों को तक पहुंचता है पिंडदान
फल्गु के तट पर ही दिव्य विष्णु पद है, जिसके दर्शन ,स्पर्श एवं पूजन से पितरों को अक्षय लोक मिलता है. विष्णुपद पर स्थित सभी पिंडों का श्राद्ध करने से अपने सहित एक हजार कुलों का दिव्य अनन्त कल्याणकारी अव्यय विष्णुपद को पहुंचता हैं.

ये है पौराणिक कहानी...
भीष्म पितामह अपने शान्तनु का श्राद्ध करने जब गया जी आए. उन्होंने विष्णु पद पर अपने पितरों का आह्वान किया और श्राद्ध करने को उद्दत हुए. उसी दौरान शान्तनु के हाथ निकले. लेकिन भीष्म पितामह ने शान्तनु के हाथ पर पिंड न देकर विष्णुपद पर पिंडदान किया. इससे प्रसन्न होकर शांतनु ने आशीर्वाद दिया कि तुम शास्त्रार्थ में निश्चल एवं त्रिकाल में दृष्टा होगे. अंत में विष्णु पद को प्राप्त होगे.

रुद्र पद का विशेष महत्व..
इसी तरह रुद्र पद पर भगवान श्रीराम पिंडदान करने को तैयार हुए. उसी समय राजा दशरथ ने हाथ निकाला. लेकिन राम जी ने हाथ पर पिंड न देकर रुद्रपद पर पिंड दिया. इससे प्रसन्न होकर राजा दशरथ ने राम जी से कहा कि तुमने हमको तार दिया. हम रुद्र लोक के प्राप्त करेंगे. छठवें, सातवें और आठवें दिन विष्णुपद, रुद्रपद, ब्रह्मपद एवं दक्षिणानिग पद पर पिंडदान करें.

16 स्तंभ है 16 भगवानों के प्रतीक...
कहानी है कि जब ब्रह्मा जी गयासुर के शरीर पर यज्ञ कर रहे थे, तब उन्होंने 16 भगवानों का आह्वान किया. सोलह भगवान ब्रह्मा जी के आह्वान पर यज्ञ में शामिल हुए. उन सभी ने यहां स्तंभ रूपी पिंडवेदी बनायीं. जहां-जहां स्तंभ हैं, वहां यज्ञ के दौरान देवताओं ने बैठकर आहुति दी थी.

गया: मोक्ष की नगरी गया जी मे पिंडदान के छठवें दिन विष्णुपद मंदिर के ठीक बगल में स्थित 16 पिंडवेदियों पर तर्पण करने का विधान है. यहां लगातार तीन दिनों तक एक-एक कर सभी पिंडवेदियों पर पिंडदान किया जाएगा. ये पिंडवेदियां स्तंभ के रूप में हैं. लोग यहां पितरों को पिंड अर्पित करने के बजाए स्तंभों को पिंड अर्पित किया जाता है. इसके पीछे पौराणिक कथा का महत्व है.

भीष्म पितामाह ने ऐसे किया पिंडदान की तृप्त हो गए कुल 1000

गयाजी में पिंडदान के छठवें दिन विष्णुपद मंदिर स्थित पद रूपी तीर्थों में श्राद्ध करते हैं. छठवें दिन पहले फल्गु नदी में स्नान करके मार्कंडेय महादेव का दर्शन कर विष्णुपद स्थित सोलह वेदियों पर आना चाहिए. यहां आकर विष्णु भगवान सहित अन्य भगवानों को जिनके नाम से वेदी हैं, उनको स्मरण करना चाहिए. उसके बाद पिंडदान का कर्मकांड शुरू करना चाहिए.

ये भी है विधान...
फल्गु नदी मार्कंडेय महादेव से लेकर उत्तर मानस तक ही फल्गु तीर्थ हैं. इतनी दूरी में ही स्नान, तर्पण और श्राद्ध करने से फल्गु तीर्थ का श्राद्ध माना जाएगा. मार्कंडेय से दक्षिण नदी का नाम निरंजना और उत्तर मानस से उत्तर इसका नाम भुतही है.

एक हजार कुलों को तक पहुंचता है पिंडदान
फल्गु के तट पर ही दिव्य विष्णु पद है, जिसके दर्शन ,स्पर्श एवं पूजन से पितरों को अक्षय लोक मिलता है. विष्णुपद पर स्थित सभी पिंडों का श्राद्ध करने से अपने सहित एक हजार कुलों का दिव्य अनन्त कल्याणकारी अव्यय विष्णुपद को पहुंचता हैं.

ये है पौराणिक कहानी...
भीष्म पितामह अपने शान्तनु का श्राद्ध करने जब गया जी आए. उन्होंने विष्णु पद पर अपने पितरों का आह्वान किया और श्राद्ध करने को उद्दत हुए. उसी दौरान शान्तनु के हाथ निकले. लेकिन भीष्म पितामह ने शान्तनु के हाथ पर पिंड न देकर विष्णुपद पर पिंडदान किया. इससे प्रसन्न होकर शांतनु ने आशीर्वाद दिया कि तुम शास्त्रार्थ में निश्चल एवं त्रिकाल में दृष्टा होगे. अंत में विष्णु पद को प्राप्त होगे.

रुद्र पद का विशेष महत्व..
इसी तरह रुद्र पद पर भगवान श्रीराम पिंडदान करने को तैयार हुए. उसी समय राजा दशरथ ने हाथ निकाला. लेकिन राम जी ने हाथ पर पिंड न देकर रुद्रपद पर पिंड दिया. इससे प्रसन्न होकर राजा दशरथ ने राम जी से कहा कि तुमने हमको तार दिया. हम रुद्र लोक के प्राप्त करेंगे. छठवें, सातवें और आठवें दिन विष्णुपद, रुद्रपद, ब्रह्मपद एवं दक्षिणानिग पद पर पिंडदान करें.

16 स्तंभ है 16 भगवानों के प्रतीक...
कहानी है कि जब ब्रह्मा जी गयासुर के शरीर पर यज्ञ कर रहे थे, तब उन्होंने 16 भगवानों का आह्वान किया. सोलह भगवान ब्रह्मा जी के आह्वान पर यज्ञ में शामिल हुए. उन सभी ने यहां स्तंभ रूपी पिंडवेदी बनायीं. जहां-जहां स्तंभ हैं, वहां यज्ञ के दौरान देवताओं ने बैठकर आहुति दी थी.

Intro:मोक्षधाम गया जी मे पिंडदान के छठा दिन का महत्व विष्णुपद मंदिर के ठीक बगल में स्थित 16 पिंडवेदी पर है। लगातार तीन दिनों तक क्रमशः पिंडवेदी पर पिंडदान किया जाएगा। यहाँ पिंडवेदी स्तंभ के रूप में है लोग यहां पिंड अर्पित करने के बजाए स्तंभ पिंड को साट देते हैं।


Body:गयाजी में पिंडदान के छठे दिन विष्णुपद मंदिर स्थित पद रूप तीर्थों में श्राद्ध करते हैं छठे दिन पहले फल्गु नदी में स्नान करके मार्कंडेय महादेव का दर्शन कर विष्णुपद स्थित सोलह वेदियों पर आना चाहिए। यहां आकर विष्णु भगवान के सहित अन्य भगवानों को जिनके नाम से वेदी है उनको स्मरण करना चाहिए। उसके बाद पिंडदान का कर्मकांड शुरू करना चाहिए।

फल्गू नदी मार्कण्डेय महादेव से लेकर उत्तर मानस तक ही फल्गु तीर्थ हैं इतनी दूरी में ही स्नान,तर्पण श्राद्ध करने से फल्गु तीर्थ का श्राद्ध माना जाएगा।मार्कंडेय से दक्षिण नदी का नाम निरंजना और उत्तर मानस से उत्तर इसका नाम भुतही हैं।

फल्गू के तट पर ही दिव्य विष्णु पद है जिसके दर्शन ,स्पर्श एवं पूजन से पितरों को अक्षय लोके मिलता है विष्णुपद पर सपिंडों का श्राद्ध करने से अपने सहित एक हजार कुलो को दिव्य अनन्त कल्याणकारी अव्यय विष्णुपद को पहुंचाता हैं।

भीष्मा पितामह अपने शान्तनु का श्राद्ध करने जब गया आए और विष्णु पद पर अपने पितरों का आह्वान किया और श्राद्ध करने को उद्दत हुए तब शान्तनु के हाथ निकले किंतु हाथ पर पिंड न देकर विष्णुपद पर दिए है इससे प्रसन्न होकर शांतनु ने आशीर्वाद दिया कि तुम शास्त्रार्थ में निश्चल एवं त्रिकाल में दृष्टा हो तथा अंत में विष्णु पद को प्राप्त हो। इसी तरह रुद्र पद पर भगवान श्रीराम पिंडदान करने को तैयार हो उसी समय राजा दशरथ ने हाथ निकाला लेकिन राम जी ने हाथ पर पिंड न देकर रुद्र पद पर पिंड दिए, राजा दशरथ ने राम जी से कहा कि तुमने हमको तार दिया हम रुद्र लोग के प्राप्त करेंगे। कल विष्णुपद,रुद्रपद, ब्रह्मपद एवं दक्षिणानिग पद पर पिंडदान करे।


Conclusion:जब ब्रह्मा जी गयासुर के शरीर पर यज्ञ कर रहे थे 16 भगवान का आह्वान किये थे। सोलह भगवान ब्रह्मा जी के आह्वान पर यज्ञ में शामिल हुए। उन सभी सोलहो भगवान पर यहाँ पिंडवेदी बनाया गया। जहां जहां स्तंभ हैं वहां यज्ञ के दौरान देवता बैठकर यज्ञ किये थे। यहां लगातार तीन दिनों तक पिंडदान होगा।
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