जयपुर. जन्माष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है. कृष्ण का जन्म अष्टमी के दिन होने से उनके जन्मदिन जन्माष्टमी कहा जाता है. भगवान कृष्ण का जन्म इस बात को दर्शाता है कि उनका आध्यात्मिक और भौतिक दोनों जगत में आधिपत्य था. भगवान कृष्ण के द्वारा दी गई शिक्षा आज के समय के अनुसार प्रासंगिक है, क्योंकि इसके द्वारा न तो आप भौतिक जगत में पूर्ण रूप से खो जाते हैं और न भौतिक जगत को पूर्ण रूप से छोड़ देते हैं.
कृष्ण का अर्थ होता है, सबसे अधिक आकर्षक- जो आपकी आत्मा है, आपका अस्तित्व है. राधे व्यक्तिगत जीवन हैं और श्याम जीवन का अनंत स्वरूप हैं. कृष्ण प्रत्येक जीव की आत्मा हैं और जब हमारा सच्चा स्वाभाविक स्वरूप चमकता है, तब हमारे व्यक्तित्व में निखार आता है. हमें कुशलताएं प्राप्त होती हैं और जीवन में समृद्धि आती है.
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ऐसा कहा जाता है कि कृष्ण माखन चोर थे. इसके पीछे भी एक तर्क है. मक्खन एक प्रक्रिया में प्राप्त होने वाला अंतिम उत्पाद होता है. सबसे पहले दूध से दही बनाया जाता है और फिर दही को मथ कर मक्खन बनता है. दूध या दही की तरह जीवन भी मंथन की एक प्रक्रिया है, जो बहुत सारी घटनाओं से होकर गुजरता है. अंततः मक्खन ऊपर आ जाता है, जो आपके भीतर की पवित्रता है.
इस प्रक्रिया का सार यही है कि आपके जीवन में संतुलन, आनंद, प्रसन्नता बनी रहे और आपका मन केंद्रित रहे. जब जीवन में सबकुछ ठीक प्रकार से चल रहा हो, तो आपके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान होती है. लेकिन यदि आप विपरीत परिस्थितियों में भी मुस्कुरा सकते हैं. तब आपने जीवन में कुछ प्राप्त किया है. यह स्थिति बिल्कुल इस प्रकार से है कि जैसे भगवान कृष्ण का एक पैर जमीन पर है और एक पैर हवा में उठा हुआ है. फिर भी उनके जीवन में संतुलन है. यह संतुलित जीवन जीने के तरीके को दर्शाता है. मन में उत्पन्न अशांति को साक्षी भाव से देखने पर, आपका मन शांत होने लगता है.
भगवद्गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं," ऐसा क्यों है कि बहुत सारे लोग मुझे नहीं जान पाते हैं? इसका कारण यह है कि वे लगातार अपने राग और द्वेषों में उलझे रहते हैं. " वह व्यक्ति, जिसमें किसी के प्रति बहुत अधिक अनुराग है या उसके मन में किसी के प्रति बहुत अधिक घृणा है, मोह में फंस जाता है. जब उस व्यक्ति के जीवन में कोई समस्या आती है, चाहे वह धन या रिश्तों आदि से संबंधित हो, तब उसका मन पूर्ण रूप से समस्या में उलझा रहता है और वह रात - दिन,यहां तक कि वर्षों तक उसी समस्या के बारे में चिंता करता रहता है. लेकिन,वह उससे बाहर नहीं निकल पाता है.
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इसके लिए भगवान कृष्ण कहते हैं, कि " जिनके पुण्य कर्म फलीभूत होने लगते हैं, वे सभी प्रकार के दुखों से मुक्त हो जाते हैं और मेरी ओर बढ़ने लगते हैं. जिनके पाप कर्मों का अंत नहीं हुआ है, वे अज्ञान और माया में उलझे रहते हैं. " जब आप प्रकाश की ओर चलते हैं, तब अज्ञान का अंधकार स्वतः ही मिटने लगता है लेकिन, पाप वह है, जो आपको प्रकाश की ओर चलने नहीं देता है. और यही आपके दुख,दर्द और पीड़ा का कारण है. जब एक व्यक्ति यह बात पूर्ण रूप से समझ जाता है कि मैं एक शरीर नहीं हूं, मैं शुद्ध चेतना हूं, तब उसके भीतर शक्ति का संचार होता है.
जब आपको एक बार ईश्वर पर विश्वास हो जाता है, तब फिर और कोई आवश्यकता नहीं रहती है. यही सच्चे अर्थों में ईश्वर को जानना है. कृष्ण सभी प्रकार की संभावनाओं तथा मानवीय एवम् ईश्वरीय गुणों के पूर्ण रूप से खिल जाने का प्रतीक है. कृष्ण का जन्मदिन यानी जन्माष्टमी वह दिन है, जब आपकी चेतना में कृष्ण का विराट स्वरूप पुनः जागृत हो जाता है. द्वेष न करना, अपने दैनिक जीवन,अपने वास्तविक स्वभाव में रहना ही,कृष्ण के जन्म का सच्चा रहस्य है.