जयपुर. ऐतिहासिक नगर जयपुर आज अपना 296वां स्थापना दिवस मना रहा है. यहां के किले, महल, चौपड़ और रास्ते जयपुर की विरासत को आज भी समेटे हुए हैं. विकास के नाम पर बहुत कुछ बदलने के बाद भी ऐसा ही लगता है, जैसे आज भी जयपुर में कुछ न बदला हो. यही वजह है कि इसे वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल किया गया और इसकी बसावट निहारने के लिए हर साल लाखों देशी-विदेशी पावणे समंदर पार से खींचे चले आते हैं.
जयपुर की स्थापना के मौके पर इस विश्व धरोहर के इतिहास को याद किया जा रहा है. जयपुर की पहचान सिर्फ हेरिटेज सिटी के तौर पर नहीं बल्कि राजस्थान की राजधानी के रूप में भी है. खास बात है कि बिना स्थाई जल स्रोत के जयपुर बसाया गया और जिस जयपुर का विस्तार सवाई जयसिंह ने अपनी रियासत की सांस्कृतिक राजधानी बनाने के रूप में किया था, आगे चलकर वही प्रदेश की राजधानी भी बना.
दुनिया में अपनी खूबसूरत बसावट के के कारण जयपुर को 'पूर्व के पेरिस' के रूप में पहचान मिली. इस अलहदा शहर में गली-नुक्कड़ पर जलसे और जज्बात बिखरे हैं. गुलाबी ओढ़नी पहने इस नगर के माथे पर मोर मुकुट देखने दुनिया भर से लोग पहुंचते हैं. 1727 में इस स्वप्न को मूर्त रूप भले ही मिला हो, लेकिन राम की संतान कुश के वंशजों ने इसे देश का सांस्कृतिक केंद्र बनाने का संकल्प कई सालों पहले ही ले लिया था. 1727 से 1947 तक के शासकों के सामने एक चुनौती हमेशा रही, वो थी पानी की, जिसका विकल्प हर दौर के हुक्मरानों ने बखूबी निकाला.
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जयपुर के संस्थापक सवाई राजा जयसिंह द्वितीय से पहले मिर्जा राजा जय सिंह के समय आमेर के विस्तार की जरूरत महसूस होने लगी थी. इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत बताते हैं कि मिर्जा राजा जयसिंह की इस योजना को जब सवाई जयसिंह ने मूर्त रूप देने का काम किया. जब सवाई जय सिंह मुगल दरबार में मजबूत हुए तो उन्होंने नए शहर की स्थापना का प्लान तैयार किया. 1709 में ही नए शहर की प्लानिंग कर ली गई थी. हालांकि, उस समय इतने संसाधन नहीं थे. बाद में जब सवाई जयसिंह को मालवा और आगरा की सूबेदारी मिली तो संसाधन बढ़े और जयपुर का निर्माण कार्य शुरू किया गया.
उन्होंने बताया कि वर्तमान चारदीवारी क्षेत्र कभी झील हुआ करती थी. जब झील सूखी तो यहीं चारदीवारी बनाई गई. जयपुर बनाने के पीछे उद्देश्य भी यही था कि एक ऐसा नगर हो जिसमें विभिन्न संस्कृति, जाति और धर्म के लोग रह सकें. सवाई जयसिंह के समय इस बात का विशेष ध्यान रखा गया और उसी के आधार पर मोहल्ले बसाए गए.
देवेंद्र कुमार बताते हैं कि बिना पानी के कोई नगर नहीं बस सकता. बावजूद उसके जयपुर बसा और बचा भी रहा. जयपुर में कोई भी स्थाई नदी नहीं बहती थी. ऐसे में जयपुर की स्थापना के वक्त ही हरमाड़ा के पास एक नहर निकाली गई. उससे चांदपोल के पास स्थित सरस्वती कुंड में पानी आया करता था, जिसे गुप्त गंगा भी कहा गया. ये नहर इतनी बड़ी थी कि उसमें एक घुड़सवार आसानी से निकल सकता था. यही गुप्त गंगा छोटी चौपड़, बड़ी चौपड़ और रामगंज चौपड़ तक जाया करती थी. कुछ मोहल्लों से भी से भी ये गुजरा करती थी (जब वर्ष 2000 में ऑपरेशन पिंक चला, तब वहां मिले पुराने मोखे इसके साक्ष्य हैं). कुछ ऐसे कुएं भी थे, जिन्हें मीठा कुआं कहा जाता था. इससे भी जयपुर में जलापूर्ति हुआ करती थी.
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उन्होंने बताया कि यहां बारिश भी अच्छी हुआ करती थी, ऐसे में उस दौर में भी पानी का संचयन किया जाता था, जो नहर में पहुंचा करता था और इसी सार्वजनिक नहर वितरण प्रणाली से लोगों तक पानी पहुंचता था. जयपुर में नाहरगढ़ की पहाड़ियों में मौजूद आथुनिकुंड से द्रव्यवती नदी निकला करती थी और बारिश के दौर में ये करीब चार से पांच महीने बहा करती थी. आगे चलकर यही नदी डूंड नदी में मिल जाया करती थी. बाद में परकोटा के बाहर के गांवों तक पानी पहुंचाने के लिए नया घाट (वर्तमान पानीपेच की तिराहे) पर पानी की वितरण प्रणाली बनाई गई थी. यहीं से जयपुर में पानी सप्लाई हुआ करता था, ये दौर सवाई राम सिंह तक चला.
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वहीं, आजादी के बाद प्रदेश की राजधानी भी जयपुर को ही बनाया गया. हालांकि, जयपुर के सामने अजमेर, जोधपुर जैसे शहरों का कंपटीशन था, लेकिन जोधपुर मरू क्षेत्र होने के चलते पहले ही इस कंपटीशन से बाहर हो गया, जबकि अजमेर अंग्रेजों की ओर से बसाया गया आधुनिक शहर था. इतिहासकार जितेंद्र सिंह शेखावत ने बताया कि जयपुर की नींव गंगापोल गेट पर रखी गई थी और उस वक्त ऐसा शुभ मुहूर्त था कि स्थापना से लेकर आज तक जयपुर का नाम पूरी दुनिया में रोशन है.
उन्होंने बताया कि यहां के राजाओं की भी इसमें बहुत बड़ी भूमिका रही. बाद में इसे राजधानी बनने का मौका भी मिला. उस वक्त तत्कालीन महाराजा सवाई मानसिंह ने टाउन हॉल को विधानसभा के लिए, भगवान दास बैरक को सचिवालय के लिए और दूसरे सरकारी दफ्तरों के लिए सरकार को दे दिया. हालांकि, राजधानी बनने पर यहां बसने वाले लोगों के लिए जलापूर्ति का भी प्रश्न उठा, तब रामगढ़ बांध से मिल रहे 60 लाख लीटर पानी की बात सामने आई. यहां 1931 में ही पानी की लाइन डाल दी गई थी. इसके अलावा यहां जगह-जगह कुंड, बावड़ी और कुएं की भी व्यवस्था थी. जो जयपुर की बसावट के दौरान ही तैयार कराए गए थे. ऐसे में केंद्र से आई सत्यनारायण राव कमेटी ने जयपुर को राजधानी बनाने पर मोहर लगाई.