जयपुर. मीरा की भक्ति और पद्मावत के जौहर वाले इस मरू प्रदेश में एक से बढ़ कर एक कलाकार भी हुए. जिन्होंने न केवल राजस्थान में बल्कि देश विदेश में अपनी कला से लोहा मनवाया है. फिर वो हुसैन बंधु हो या गुलाबो सपेरा. राजस्थान की माटी में लोकगीतों की मिठास है, तो यहां की आबोहवा में मेलों और उत्सवों का संगम. यहां की कला संस्कृति देश-विदेश में अपनी एक अलग पहचान रखती है.
तीन साज की जुगलबंदी में मंत्रमुग्ध कर देती है ममताः आज हम बात करेंगे राजस्थान की उस लड़की की जिसने पुरुषों के एकाधिकार को न केवल चुनौती दी बल्कि अपने हुनर से सफलता की कहानी भी लिख दी.हम बात कर रहे हैं ममता सपेरा की.18 साल से कम उम्र की इस कलाकार ने मोर चंग, खड़ताल और भपंग की जुगलबंदी में महारथ हासिल की है. कहा जाता है कि इन वाद्य यंत्रों को आमतौर पुरुष कलाकार ही बजाते नजर आते हैं, लेकिन ममता राजस्थान की संभवतः पहली ऐसी महिला कलाकार है, जो पुरुषों के इस क्षेत्र में अपने तीन साज की जुगलबंदी में हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देती है.
![mamta sapera wrote a success story](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/18023831_tttt.jpg)
बचपन से कुछ अलग करना थाः कालबेलिया जाति में जन्मी ममता सपेरा को लोककला विरासत में मिली. मां राजकी सपेरा कालबेलिया नृत्यांगना है. बेटी के जन्म के बाद राजकी सपेरा को लगा कि उसकी इस विरासत को आगे बढ़ाने के लिए कोई आ गई है. नियति को कुछ और मंजूर था. ममता जैसे-जैसे बड़ी हुई उसका रुझान कालबेलिया नृत्य की तरफ बिलकुल नहीं था. वह बचपन से ही ऐसे वाद्य यंत्रों के साथ खेलना पसंद करती जो कला उनके समाज की परम्परा में नहीं थी. इससे बड़ी बात यह थी कि इन वाद्य यंत्रों को किसी महिला को बजाते हुए भी नहीं देखा गया. धीरे-धीरे संगीत ममता सपेरा के लिए जुनून बन गया. ममता बताती हैं कि बचपन में जब वो मोरचंग और खड़ताल को बजने की कोशिश करती तो मां उसे आकर मना करती, वो कहती थी कि इन वाद्य यंत्रों को लड़किया नहीं बजा सकतीं. तुझे तो अपने परम्परागत कालबेलिया नृत्य को ही सीखना है. मगर ममता को तो लीक से हट कर कुछ करना था. इसलिए उसने अपने जन्म दिन पर पिता पूरण नाथ सपेरा से मोर चंग और खड़ताल की डिमांड कर दी. पिता ने भी बेटी के सपनों को मरने नहीं दिया और जन्मदिन पर मन माफिक तोहफा दे दिया. यहीं से ममता का एक अलग तरह का सफर शुरू हो गया.
पहली बार मंच पर मिला सम्मानः ममता बताती हैं कि बचपन से उसका मन था की वो कुछ अलग करें, ऐसा जिससे उसकी अपनी पहचान हो. कालबेलिया नृत्य तो उनका पारंपरिक नृत्य था, इसलिए उसे डांस नहीं करना था. इसलिए उसने मोर चंग और खड़ताल बजाने का मन बनाया. ममता कहती है कि पहले तो उसे पता नहीं था कि इन वाद्य यंत्रों को लड़कियां या महिलाएं नहीं बजाती. जब मां ने उससे इन इस्टूमेंट्स को छीना और कहा की ये लड़कियों के बजाने का नहीं है. तब ही तय कर लिया था कि अब सीखना है तो बस यही सीखना है. उसके बाद जन्मदिन पर मिले इन तोहफे से स्वयं सोशल मीडिया के जरिये इनको बजाना सीखा. ममता कहती है कि महज 15 दिन में उसने कड़ी मेहनत से मोर चंग, खड़ताल और भपंग को बजाना सीख लिया. अच्छा तो तब लगा जब एक दिन जवाहर कला केंद्र गई और अचानक पापा ने मंच पर परफॉर्म करने के लिए कहा. पहले तो घबराहट हुई, लेकिन बाद में जब परफॉर्म किया तो लोगों ने तारीफ की. पहले कभी किसी लड़की ने मोर चंग और खड़ताल नहीं बजाई थी.
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गाजी खान के साथ मंच साझा कियाः ममता ने बहुत कम समय में अपनी एक अलग पहचान बना ली. सिर पर पगड़ी बांध मोर चंग, खड़ताल और भपंग की ऐसी जुगलबंदी करती देखने वाले भी मोहित हो जाते. ममता अपनी कला का प्रदर्शन न केवल राजस्थान बल्कि अन्य राज्यों में भी कर चुकीं हैं. उसे सबसे ज्यादा मजा तब आया जब उसने गाजी खान के साथ मंच साझा किया. ममता कहती हैं कि “यह मेरे जीवन का एक निर्णायक क्षण था. जब मैंने अपने आदर्श लोक कलाकार गाजी खान के साथ खड़ताल और मोर चंग बजाया. मैं उनके शो और वीडियो देखकर इस तकनीक को सीखा था. ममता कहती है कि उसे मोरचंग बहुत पसंद है, क्योंकि यह सबसे छोटा और बजाने में सबसे मुश्किल वाद्य यंत्र है. इस को सीखते वक्त जीभ से खून निकलने लगा गया था.
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समाज की लड़कियों के लिए कुछ करना हैः ममता कहती हैं वो अपने और अन्य समाज की लड़कियों के लिए कुछ करना चाहती है. ममता का सपना है कि एक स्टूडियो शुरू हो जहां लड़कियां वाद्य यंत्र बजाना सीख सकें. ममता ने कहा कि ऐसा कोई काम नहीं है जो लड़किया नहीं कर सकतीं. वर्तमान में कुछ लड़कियों के साथ काम कर रही हैं. उन्हें खड़ताल बजाने के लिए प्रशिक्षित करतीं हैं. इसके साथ ममता को संगीत भी पसंद है. अपनी मां के साथ वो पारम्परिक लोक गीतों पर ताल से मिलाती हैं. ममता कहतीं हैं उसे अभी कई तरह से इस्टूमेंट्स बजाना सीखना है.
पसंद है पगड़ी पहननाः ममता ने न केवल पुरुष कलाकारों की कला को अपनाया बल्कि वह लैंगिक रूढ़िवादिता के भी खिलाफ हैं. ममता को हमेशा कुर्ता-पायजामा पहनना पसंद है. पगड़ी तो मानों ममता के सर का ताज बन गई है. ममता कहतीं हैं कि साफा पहनना अच्छा लगता है. इसलिए परफॉर्म करते समय ज्यादातर कुर्ता पायजामा के साथ साफा पहनतीं हैं. ममता सपेरा को संगीत का शौक है, जो उनके काम और शिल्प के साथ बहुत कुछ बयां करता हैं. वह कालबेलिया जनजाति से हैं, जो अपनी प्रदर्शन कलाओं के लिए लोकप्रिय है. ममता कई तरह के वाद्य यंत्र बजाती हैं और उन्होंने दुर्लभ और अनोखे वाद्य मोरचंग में महारत हासिल की है.