जयपुर. पूरी दुनिया 21 जून को 'इंटरनेशनल योग दिवस' के रूप में मनाती है. इस दिन को मनाने के पीछे अच्छी सेहत और स्वस्थ मस्तिष्क को प्रमुख वजह माना जाता है. इस खास मौके पर ईटीवी भारत आपको रूबरू कराएगा एक ऐसे योगा इंस्ट्रक्टर से, जिन्होंने छोटी सी उम्र में ही न सिर्फ अपनी योग शक्ति के दम पर दुनिया भर में मुरीदों की फेहरिस्त बना ली, बल्कि विपरीत परिस्थितियों में योग शक्ति के दम पर खुद को स्थापित भी किया. जयपुर से दुनियाभर में ऑनलाइन योग सिखाने वाले अनुज की उम्र भले ही कम हो पर उनके आसन देखने के बाद हर कोई उनकी तारीफ किए बिना खुद को रोक नहीं सकता.
यूरोप-अमेरिका जैसे देशों से लोग सीखते हैं योग : योग का मकसद दुनिया के लोगों में भौतिक और आध्यात्मिक फायदों के बारे में जागरूकता फैलाना है. हर साल इस आयोजन के लिए एक अलग थीम होती है. इस बार 'अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस' की थीम 'मानवता' रखी गई है. योग के महत्व को अब कई देशों ने भी मान लिया है. यही वजह है कि इस दिन दुनिया के 177 से ज्यादा देशों में योग दिवस मनाया जाता है.
ऑन डिमांड योग सिखाने के लिए पहुंचते हैं : जयपुर में रह कर यूरोप-अमेरिका जैसे देशों से लोगों को योग सिखाने वाले अनुज कहते हैं कि योग मानवता की थीम का पूरक है. नियमित योग साधना के जरिए व्यक्ति मानवता के मूल्य और लक्ष्य को हासिल कर सकता है. फिलहाल इसी वजह से वे दुनिया के आधा दर्जन से ज्यादा देशों के लोगों को योग की शिक्षा दे रहे हैं. वे गोवा जैसी जगहों पर भी कई मर्तबा विदेशी सैलानियों को ऑन डिमांड योग सिखाने के लिए पहुंचते हैं. अनुज बताते हैं कि कोरोना के दौर के बाद योग का प्रचार दुनियाभर में हुआ है और लोग भारतीय संस्कृति की तरफ प्रेरित हुए हैं.
योग है शरीर की शुद्धता का माध्यम : अनुज कहते हैं कि शरीर जीवात्मा का घर है. प्राणों की क्रिया संतुलित और समतापूर्ण हो, इसके लिए इसकी यदा-कदा सफाई करते रहने की आवश्यकता होती है. षट्कर्म का अभ्यास प्रतिदिन नहीं किया जाना चाहिए, जब व्यक्ति अपने शरीर में कफ, पित्त और वायु की अधिकता अनुभव करे तो इसे करना चाहिए. काम, क्रोध, लोभ, द्वेष आदि मानसिक मलिनता शरीर के अंदर विषैले पदार्थ उत्पन्न करते हैं. अशुद्ध भावनाओं के कारण प्राणों में असंतुलन हो जाता है. शरीर के विभिन्न अवयव इससे प्रभावित हो जाते हैं. तंत्रिका तंत्र दुर्बल हो जाता है, इसलिए शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए मानसिक मलिनताओं को दूर करना जरूरी है.
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सिर्फ बाहर की शुद्धता ही पर्याप्त नहीं : इसी तरह से भय से हृदय रोग होता है, जिसमें तंत्रिका तंत्र असंतुलित हो जाता है. निराशा से दुर्बलता होती है. लोभ प्राणों को असंतुलित करता है, जिससे कई तरह के शारीरिक रोग पैदा होते हैं. अहंकार जीवन की पूर्णतः का आनंद नहीं लेने देता. इससे पाचन तंत्र और किडनी संबंधी रोग होते हैं. ज्यादातर बीमारियां मरीज की मानसिक विकृतियों के ही कारण हुआ करती हैं. वे कहते हैं कि राग, द्वेष, अहंकार, काम, क्रोध, लोभ आंतरिक अशुद्धियां हैं. सिर्फ बाहर की शुद्धता ही पर्याप्त नहीं है, योगी को मानसिक शुद्धि भी अवश्य करनी चाहिए.
कोरोना में पिता खोया पर उम्मीद नहीं : अनुज ने कोरोना की दूसरी लहर में अपने पिता को खोने के बाद भी हार नहीं मानी. घर का बड़ा बेटा होने के नाते उन पर कई जिम्मेदारियां भी थीं. छोटा भाई और मां के खराब स्वास्थ्य के बीच उन्हें योग से ताकत मिली. उन्होंने लगातार अभ्यास के जरिए अपनी योग कला को ऊपरी पायदान कर ले जाने की कोशिश की. इसी का नतीजा आज योग की दुनिया में उनकी कामयाबी सभी के सामने है. वे लगातार अब योग को अपने करियर और देश के भविष्य के रूप में देखते हैं.