जयपुर. दुनिया में हर वर्ष 15 सितंबर काे अंतरराष्ट्रीय लाेकतंत्र दिवस (International Day of Democracy 2022) मनाया जाता है. यह दिन हर देश के लिए काफी महत्व रखता है. अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस एक प्रस्ताव के माध्यम से स्थापित किया गया था. इस प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र महासभा के जरिए 8 नवंबर 2007 को लाया गया था. यह लोकतंत्र की घटना को प्रोत्साहित करने और मजबूत करने के लिए पारित किया गया था. इस दिन का पहला सेलेब्रेशन 2008 में हुआ था और हर साल एक व्यक्तिगत थीम के तहत कार्यक्रम होते हैं. इस साल का थीम 'लोकतंत्र, शांति और सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिए मीडिया की स्वतंत्रता का महत्व' (Importance of media freedom to democracy, peace and delivering on the Sustainable Development Goals) है.
लोकतंत्र के अंतर्राष्ट्रीय दिवस का इतिहास- अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस (International Day of Democracy 2022) एक प्रस्ताव के माध्यम से स्थापित किया गया था, जिसे संयुक्त राष्ट्र महासभा में 8 नवंबर 2007 को पारित किया गया था. लोकतंत्र की घटना को प्रोत्साहित करने और मजबूत करने के लिए इस प्रस्ताव को पारित किया गया था. संयुक्त राष्ट्र का मानना है कि समाज में मानवाधिकारों और कानूनों के नए नियम की हमेशा रक्षा की जाती है. लोकतंत्र का अंतर्राष्ट्रीय दिवस अपने अस्तित्व का श्रेय लोकतंत्र पर यूनिवर्सल घोषणा को जाता है, जिसे 15 सितंबर, 1997 को अंतर-संसदीय संघ (IPU) के जरिए अपनाया गया था. यह जनता को चिंता के मुद्दों पर शिक्षित करने, दुनिया भर में समस्याओं का समाधान करने के लिए राजनीति इच्छाशक्ति और संसाधान इकट्ठा व मानवता उपलब्धियों को मजबूत करने के लिए मनाया जाता है.
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इस दिन का मुख्य उद्देश्य (Objective of International Day of Democracy) लोगों के अंदर लोकतंत्र के लिए जागरूक करना है, लेकिन क्या मौजूदा समय में लोगों को लोकतांत्रिक अधिकार मिल रहे हैं, इस पर ईटीवी भारत ने अलग-अलग वर्ग के लोगों से बात की. इस दौरान उन्होंने कहा कि देश का लोकतंत्र तो बहुत खूबसूरत है, लेकिन उसमें मिले अधिकारों के लिए आजादी के 75 साल बाद भी संघर्ष करना पड़ता है.
मौलिक अधिकारों के लिए संघर्ष- सामाजिक कार्यकर्ता मनीषा सिंह कहती हैं कि हमारे देश का लोकतंत्र अन्य देशों की तुलना में बहुत ही खूबसूरत और सुव्यवस्थित है. हमारे लोकतंत्र में जो आम व्यक्ति का मौलिक अधिकार है वह हर व्यक्ति को मिला हुआ है, लेकिन चिंता तब बढ़ जाती है जब उन अधिकारों के लिए भी संघर्ष करना पड़े. मनीषा ने कहा कि आजादी के 75 साल बाद भी अगर किसी महिला के साथ कोई हिंसा होती है तो उसे न्याय के लिए संघर्ष करना पड़ता है. बेरोजगार को रोजगार के लिए संघर्ष करना पड़ता है. इससे कहीं न कहीं यह लगता है कि हमें अपने मौलिक अधिकारों से दूर किया जा रहा है. मौजूदा समय में राजनीति इस कदर अपना प्रभाव जमा चुकी है कि आम व्यक्ति सिर्फ और सिर्फ वोट बैंक का जरिया हो गया है.
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लोकतांत्रिक अधिकारों को धरातल पर लाना होगा- लोकतांत्रिक मूल्यों के बारे में युवाओं का कहना है कि लोकतांत्रिक अधिकार तो है, लेकिन वह सही तरीके से धरातल पर नहीं है. इसकी वजह से देश में खासकर युवाओं को उनके जो अधिकार हैं वह नहीं मिल पा रहे हैं. अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए अगर संगठन बनाना पड़े और मांग करनी पड़े इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा. उन्होंने कहा कि सफल लोकतांत्र वही होता है जिसमें हर व्यक्ति को उसके अधिकार दिए जाएं.
निकिता शिल्ला ने कहा कि लोकतंत्र में मिले अधिकारों की जागरूकता भी जरूरी है. लोकतंत्र हमें कई तरह के अधिकार देता है, लेकिन जानकारी के अभाव में इसका लाभ नहीं मिल पाता है. इसके साथ सरकार को चाहिए कि जो लोकतांत्रिक अधिकार है उन्हें सही तरीके से लागू करें और आमजन को उसका लाभ दें.