जयपुर. राजधानी में दीपोत्सव के दौरान होने वाली रोशनी और आतिशबाजी का इतिहास जयपुर की विरासत से जुड़ा है. कभी यहां राज दरबार और रनिवास भी असंख्य दीपों से जगमग होते थे. नाहरगढ़, गढ़ गणेश दीपावली की रात जगमगाते थे. सिटी पैलेस के प्रीतम निवास में सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ करते थे. जयनिवास बाग और चौपड़ों पर आमजन के लिए आतिशबाजी हुआ करती थी. पूर्व महाराजा और राज परिवार की महिलाएं विशेष पोशाक धारण किया करती थीं. यही नहीं अन्नकूट पर सिटी पैलेस में मौजूद राज राजेश्वर मंदिर आमजन के लिए खुला करता था और महिलाएं ग्वालेरा हाउस में अन्नकूट का प्रसाद तैयार करती थीं.
जयपुरवासियों के लिए खास है दीपावली का पर्व : दीपावली का पर्व जयपुर वासियों के लिए हमेशा से खास रहा है. बात रियासतकाल की करें तो उस दौर में भी जयपुर को सजाया जाता था और आतिशबाजी की जाती थी. इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया- ''जयपुर का राजघराना सूर्यवंशी है. जब भगवान राम वनवास से लौटे तब अयोध्या नगरवासियों ने दीपावली मनाई थी. इसी वजह से ये परंपरा जयपुर राजघराने से भी जुड़ी है. दीपावली का पर्व जयपुर के जनमानस में इतना मिला हुआ था कि दीपावली की तैयारी और उससे जुड़ी बातें दो माह पहले से ही शुरू हो जाती थी.''
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अफगानिस्तान से आए लोग बनाते थे पटाखे : इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया- ''रियासतकाल में दीपावली एक प्रमुख पर्व हुआ करता था. सिटी पैलेस में दीवान-ए-खास में दरबार लगता था. पूर्व महाराजा उस दिन काली अचकन पहन प्रमुख सरदारों के साथ बैठकर दरबार लगाते थे. जनानी ड्योढ़ी में पटरानियों का दरबार लगता था. वहां राज परिवार की महिलाएं नीले रंग की पोशाक धारण करती थीं. दरबार में सामूहिक रूप से लक्ष्मी पूजा हुआ करती थी और हवन होता था. जयपुर में जो पटाखे तैयार किए जाते थे. उस पर भी राजघराने की सील लगी होती थी. इन पटाखों को बनाने वाले लोगों को मिर्जा राजा मानसिंह अफगानिस्तान से लेकर आए थे.''
सामंतों से बढ़ता था मेल-मिलाप : इतिहासकार भगत ने बताया- ''दीवान-ए-खास में जो सभा होती थी, उसका भी अपना एक विशेष महत्व हुआ करता था. उसमें साल भर रियासत में क्या हुआ, उसका ब्यौरा लिया जाता था और जो सामंत-सरदार जयपुर से दूर रहते थे वो भी इस दरबार में पहुंचते थे. उनसे बाकायदा पूछताछ की जाती थी. इसी दौरान राजा का अपना सामंतों से मेल-मिलाप बढ़ता था. लक्ष्मी पूजा हुआ करती थी, जिसमें नगर सेठ भी शामिल हुआ करते थे.''
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नगर के श्रेष्ठ लोगों को दी जाती थी उपाधि : उन्होंने आगे बताया- ''माधो सिंह के जमाने में चौमूं के सरदारों से प्रेम व्यवहार भी रहा. जनरल अमर सिंह की डायरी में इसका विस्तृत उल्लेख मिलता है. 1911 के दरबार में शहर में दीपावली पर्व के मद्देनजर सांस्कृतिक कार्यक्रम और सर्वतोभद्र में बाजीगरी के कार्यक्रम दिखाए गए. कलाकारों को उस जमाने में 12 रुपए दिए गए थे. वहीं, पूर्व राज परिवार जयपुर के श्रेष्ठ लोगों को उपाधि भी दिया करता था.''
यहां आतिशबाजी देखने के लिए लंदन से आते थे लोग : इतिहासकार भगत ने बताया- ''दीवान-ए-खास में सजे दरबार के बाद जयपुर के पूर्व महाराज शहर में निकला करते थे और जयपुरवासियों के लिए विशेष आतिशबाजी का कार्यक्रम हुआ करता था. वहीं, वर्तमान में जयपुर में होने वाली रोशनी और आतिशबाजी कोई नई नहीं है. ये रियासतकाल से ही चला आ रहा प्रचलन है. उस दौर में आतिशबाजी को देखने के लिए जयपुरवासी जयपुर की चौपड़ों पर आया करते थे. यहीं आतिशबाजी का कार्यक्रम हुआ करता था. इस आतिशबाजी को देखने के लिए लंदन तक से लोग यहां आते थे.''
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जनानी ड्योढ़ी दरबार में वर्जित थे पुरुष : भगत ने आगे स्पष्ट किया कि रियासतकाल में होने वाले कार्यक्रमों में पूर्व जयपुर महाराज के साथ ही राजमाता भी शामिल होती थी, लेकिन जनानी ड्योढ़ी में जो दरबार लगता था, वहां पुरुष की उपस्थिति वर्जित थी. पूर्व जयपुर महाराज भी कुछ समय के लिए जाते थे, वो भी सिर्फ राजमाता का आशीर्वाद लेकर लौट आते थे. जनानी ड्योढ़ी में पटरानियों का दरबार लगता था और वहां उनके लिए विशेष आतिशबाजी हुआ करती थी. जयपुर की पुरोहित परिवार की महिलाएं भोजन लेकर पहुंचती थी और दीपावली के अगले दिन अन्नकूट हुआ करता था. वर्तमान पेंशन कार्यालय ग्वालेरा हाउस के नाम से जाना जाता था, जहां बड़ी-बड़ी हांडियों में भोजन बनाया जाता था. इसी अन्नकूट के दिन जयपुर के मंदिरों में भी विशेष पूजा होती थी. राजराजेश्वर मंदिर भी इस दिन आमजन के लिए खुलता था. इसी दिन लोग सिटी पैलेस भी देख पाते थे.