जयपुर. कहते हैं कि राजस्थान की सत्ता का रास्ता (BJP Mission 2023) मेवाड़ से होता हुआ जयपुर जाता है. मेवाड़ ने जिस पार्टी को समर्थन दिया मानो प्रदेश में उसी पार्टी की सरकार बनना तय है. 28 सीटों वाले इस मेवाड़ क्षेत्र को लेकर भाजपा उत्साहित है. इसकी वजह है गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजे. इन नतीजों को लेकर राजस्थान भाजपा में भी उत्साह का संचार हुआ है, खासकर आदिवासी बेल्ट को लेकर.
मूलतः भाजपा से दूर रहा आदिवासी वोट बैंक इस बार गुजरात चुनाव में भाजपा के पक्ष में रहा. राजस्थान से सटे आदिवासी बेल्ट में भाजपा के अच्छे प्रदर्शन ने (BJP Big Win in Gujarat Election) राजस्थान भाजपा को भी 2023 के चुनाव में ये उम्मीद जगा दी है. अगले साल राजस्थान में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा इस जीत का सीधा असर मानकर चल रही है. राजस्थान के मेवाड़ इलाके में करीब 28 विधानसभा सीट आदिवासी बाहुल्य है.
राजस्थान से सटी गुजरात की सीटें : पिछले दिनों गुजरात के चुनाव में भाजपा को प्रचंड बहुमत मिला. खास करके जो आदिवासी वोट था, वो भी इस बार गुजरात भाजपा के साथ गया. आदिवासी वोट बैंक को लेकर अब राजस्थान में भी गुणा-भाग में जुटी भाजपा को लग रहा है कि राजस्थान बॉर्डर से सटे गुजरात के आदिवासी क्षेत्र में पार्टी की जीत का असर राजस्थान में भी दिखेगा.
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गुजरात में आदिवासी प्रभावित जिलों में एसटी की 27 और एससी की 13 विधानसभा सीटें हैं. यहां भाजपा ने 27 में से 23 और 13 में से 11 सीटें जीती है. भाजपा की अब तक कि इस एरिया में भी प्रचंड जीत है. यहां भाजपा ने कांग्रेस, आप और बीटीपी को साफ कर दिया और इनकी झोली में 4 सीटें और 2 सीटें ही आईं. आदिवासी वोटरों के लिए कहा जाता है कि वो एकजुट रहता है. अब राजस्थान भाजपा को उम्मीद है कि गुजरात बॉडर से सटे आदिवासी क्षेत्र में आने वाले विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोटर भाजपा के साथ आएगा.
मोदी ने बदली लहर : गुजरात में हमेशा से भाजपा से दूर रहा आदिवासी वोटर इस बार भाजपा के साथ गया. इसकी बड़ी वजह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभाओं को माना जा रहा है. पिछले महीने ही प्रधामनंत्री नरेंद्र मोदी ने आदिवासियों के आस्था के केंद्र मानगढ़ धाम में सभा की थी. इसके बाद हवा का रुख बदला और गुजरात में आदिवासी सीटों पर भाजपा का कब्जा हो गया. आदिवासी बाहुल्य इलाके को लेकर भी भाजपा का पूरा चुनावी गणित साफ है. भाजपा नेता मानकर चल रहे हैं कि मोदी का इन इलाकों में चुनावी प्रचार पार्टी को कांग्रेस से काफी आगे ले जाएगा. भाजपा ने अब इसको लेकर प्लान भी बनाना शुरू कर दिया है.
28 सीटें मेवाड़ में : राजस्थान में एसटी के लिए आरक्षित सीटों की संख्या वैसे तो 25 है, लेकिन उदयपुर संभाग के बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, चित्तौड़गढ़, राजसमंद और उदयपुर जिले में काफी ज्यादा ऐसी सीटें हैं, जहां आदिवासी वोट बैंक मजबूत है. वैसे राजस्थान में ये भी कहा जाता है कि जिसने मेवाड़ जीत लिया वही प्रदेश की सत्ता पर (Politics of Mewar) काबिज होता है.
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2018 के चुनाव में हालांकि मेवाड़ ने भाजपा को ज्यादा पसंद किया था, लेकिन सरकार कांग्रेस की बनी. उस वक्त 15 सीटों पर भाजपा और 10 सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी. जबकि दो सीटों पर बीटीपी और एक पर निर्दलीय के खाते में रही. हालांकि, उपचुनाव में इनमें से कांग्रेस ने एक सीट भाजपा से छीन ली थी. 2013 के विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखें तो कांग्रेस- 2, भाजपा- 25 और 1 निर्दलीय जीत कर आए. उस वक्त भाजपा की सरकार बनी. इसी तरह से 2008 के विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखें तो कांग्रेस- 20, भाजपा- 6, 1 जनता दल (यू) और 2 निर्दलीय जीत कर आए. उस वक्त कांग्रेस सरकार बनी थी.
28 विधानसभा में कहां किसकी सीट :
उदयपुर जिला 8 सीटें : भाजपा- 6 (मावली, उदयपुर, उदयपुर ग्रामीण, सलूंबर और झाड़ोल, गोगुंदा), कांग्रेस- 2 (वल्लभनगर, खेरवाड़ा)
डूंगरपुर जिला 4 सीटें : कांग्रेस- 1 (डूंगरपुर), भाजपा- 1 (आसपुर), बीटीपी- 2 (सागवाड़ा और चौरासी)
प्रतापगढ़ जिला 2 सीटें : कांग्रेस- 2 (धरियावद और प्रतापगढ़)
बांसवाड़ा जिला 5 सीटें : कांग्रेस- 2 (बांसवाड़ा और बागीदौरा), भाजपा- 2 (गढ़ी और घाटोल), निर्दलीय- 1 (कुशलगढ़)
चित्तौड़गढ़ जिला 5 सीटें : भाजपा- 2 (चित्तौड़गढ़, कपासन), कांग्रेस- 3 (बेगूं, बड़ीसादड़ी, निम्बाहेड़ा)
राजसमंद 4 सीटें : कांग्रेस- 3 (भीम, नाथद्वार, कुम्भलगढ़), भाजपा- 1 (राजसमंद)
बीटीपी दो भागों में विभाजित : मेवाड़ में 16 सीटें ST और 1 सीट SC के लिए रिजर्व हैं. आदिवासी वोटों का ट्रेंड रहा कि वह एकतरफा चलता है. 2018 में राजस्थान में पहली बार चुनाव मैदान में उतरी बीटीपी 4 में से 2 सीटों पर जीतने में कामयाब रही. पहली बार में इस तरह के अच्छे प्रदर्शन के बाद भी उम्मीद की जा रही थी कि आने वाले चुनाव में बीटीपी अपना दायरा बनाएगी, लेकिन गुजरात चुनाव में जिस तरह से बीटीपी का सफाया हुआ है. उसके बाद अब राजस्थान में भी बीजेपी यही उम्मीद कर रही है कि आदिवासी वोट बैंक बीटीपी की बजाय बीजेपी के साथ आएगा.
हालांकि, बीटीपी में भी मौजूदा वक्त में 2 विभागों में भी दिख रही है. पार्टी संगठन और जीते हुए विधायकों में मतभेद लगातार सामने जिसकी वजह से भी यह माना जा रहा है कि बीजेपी को उसका बड़ा लाभ मिलेगा. बीजेपी की कोशिश होगी कि आदिवासी वोट बैंक को साधने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभाएं यहां पर कराई जाए, ताकि जिस तरह से मानगढ़ धाम की सभा के बाद गुजरात में जो समीकरण बदले. वह सब समीकरण राजस्थान में भी दिखे. बीजेपी इस बात को अच्छे से जानती है कि अगर मेवाड़ को फतेह कर लिया तो फिर राजस्थान में सत्ता हासिल करने में ज्यादा दिक्कत नहीं आएगी.