जयपुर. एक बार बाल गणेश अपने मित्र मुनि के पुत्रों के साथ खेल रहे थे. खेलते-खेलते उन्हें भूख लगने लगी. तब पास ही गौतम ऋषि का आश्रम था. ऋषि गौतम ध्यान करने में मग्न थे. साथ ही उनकी पत्नी अहिल्या रसोई में भोजन बना रही थी. मौका पाकर गणेश आश्रम में आए और माता अहिल्या का ध्यान बंटते ही रसोई से सारा भोजन चुरा लिया. भोजन लेकर गणेश अपने मित्रों के साथ खाने लगे.
इसके बाद क्या था जैसे ही अहिल्या को इस बात का पता चला, उन्होंने गौतम ऋषि का ध्यान भंग किया और बताया कि रसोई से भोजन गायब हो चुका है. गौतम ऋषि ने जंगल में जाकर देखा तो गणेश अपने मित्रों के साथ भोजन कर रहे थे. गौतम उन्हें पकड़कर माता पार्वती के पास ले गए. माता पार्वती ने जब भोजन चोरी की बात सुनी तो गणेश को एक कुटिया में ले जाकर बांध दिया.
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पार्वती उन्हें बांधकर कुटिया से बाहर आईं तो उन्हें आभास होने लगा जैसे गणेश उनकी गोद में हैं. लेकिन जब वापस जाकर देखा तो गणेश कुटिया में बंधे दिखे. जब माता काम में लग गईं, उन्हें थोड़ी देर बाद फिर आभास होने लगा जैसे गणेश शिवगणों के साथ खेल रहे हैं. उन्होंने कुटिया में जाकर फिर से देखा तो गणेश वहीं बंधे हुए थे. अब माता को हर जगह गणेश नजर आने लगे. कभी खेलते हुए, कभी भोजन करते हुए और कभी रोते हुए. माता ने परेशान होकर फिर कुटिया में देखा तो गणेश आम बच्चों की तरह रो रहे थे. वे रस्सी से छुटने का प्रयास कर रहे थे. माता को उन पर अधिक स्नेह आया और दयावश उन्हें मुक्त कर दिया.
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गणपति बने नागलोक के स्वामी
एक बार गणपति मुनि पुत्रों के साथ पाराशर ऋषि के आश्रम में खेल रहे थे. तभी वहां कुछ नाग कन्याएं आईं. नाग कन्याएं गणेश को अपने लोक लेकर जाने का आग्रह करने लगी. गणपति भी फिर उनका आग्रह ठुकरा नहीं सके और उनके साथ चले गए. नाग लोक पहुंचने पर गणपति का स्वागत-सत्कार किया गया. तभी नागराज वासुकी ने गणेश को देखकर उपहास करने लगे. उनके रूप का वर्णन करने लगे. इस बात से गणेश को क्रोध आ गया. उन्होंने वासुकी के फन पर पैर रख दिया और तो और उनके मुकुट को भी स्वयं ही पहन लिया.
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वासुकी की दुर्दशा का समाचार सुन उनके बड़े भाई शेषनाग आ गए. उन्होंने गर्जना की कि किसने मेरे भाई के साथ इस तरह का व्यवहार किया है. जब गणेश सामने आए तो शेषनाग ने उन्हें पहचान कर उनका अभिवादन किया. साथ ही उन्हें नागलोक यानी पाताल का राजा घोषित कर दिया गया.