जयपुर. किसी के लिए सेहत की सवारी, तो किसी के लिए रोजमर्रा का साधन है साइकिल. बढ़ते वाहनों के दबाव और प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए कई देशों में साइकिल का चलन तेजी से बढ़ा है. राजधानी जयपुर सहित प्रदेश के कई बड़े शहरों में कोरोना काल में साइकिल कल्चर और ज्यादा विकसित हुआ है. ऐसे में आपको ये जानकर हैरानी होगी कि जो साइकिल आज आसानी से बाजारों में उपलब्ध हो जाती है, उसे पहले विदेश से मंगवाया (Cycle used to be status Symbol) जाता था. तब साइकिल एक स्टेटस सिंबल हुआ करती थी.
शौक के लिए रईस लोग चलाते थे साइकिल : जयपुर के राजाओं का साइकिल से खास लगाव (Story of Cycle in Jaipur) रहा है. सवाई राम सिंह ने लंदन से पहली साइकिल मंगवा कर सिटी पैलेस में चलाई थी. महाराजा सवाई राम सिंह के समय अंग्रेजों का दौरा जयपुर में बढ़ गया था. इसी कारण अंग्रेजों के साथ अंग्रेजों के आविष्कार भी यहां आने लगे थे. एक बार राजा राम सिंह कोलकाता गए थे. जहां उन्होंने पहली मर्तबा साइकिल देखी और उसे पाने की इच्छा जताई. तब 1870 में लंदन से रेले कंपनी की तीन पहियों वाली साइकिल मंगवा कर चंद्र महल (सिटी पैलेस) के चौक में चलाया. लोहे के पहियों की इस साइकिल में आगे छोटे और पीछे दो बड़े पहिए थे. कुछ साल बाद कोलकाता की रेले कंपनी के माध्यम से लंदन से साइकिलें आना शुरू हो गई. तब राजे-रजवाड़ों के अलावा रईस लोग अपने शौक के लिए साइकिल मंगवाने लगे.
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इसके बाद सवाई माधो सिंह ने सर पुरोहित गोपीनाथ की सहायता से इसे (How Cycle became Popular in Rajasthan) चलाया था. बाद में उन्होंने जयपुर की सड़कों पर भी साइकिल दौड़ाई, जो लोगों के लिए अचरज का विषय था. इस दौरान नई-नई खुली हरकुलिस कंपनी की साइकिल सवाई माधो सिंह ने चलाई. साइकिल के लिए जुनून के कारण महाराजा माधो सिंह खासे चर्चित भी रहे. 1902 में सम्राट एडवर्ड की ताजपोशी में माधो सिंह द्वितीय ओलंपिया नामक जहाज से इंग्लैंड गए थे. भारत लौटने पर लंदन की साइकिल कंपनी ने उनके लिए साइकिल जयपुर भेजी. इस साइकिल को चलाने के लिए महाराजा को जुनून सा चढ़ गया था.
उस जमाने में शान थी साइकिल : आम लोगों के लिए पहली बार हाजी हफीज मोहम्मद खान ने साइकिल चलाई और साइकिल बनाई भी. उस जमाने में साइकिल रखना और उसे चलाना लोग अपनी शान समझते थे. जिसको दहेज में साइकिल मिलती, उसकी चर्चा पूरे मोहल्ले में होती थी. उन दिनों दहेज के अन्य सामान के साथ साइकिल को भी ठेले पर रखकर बैंड बाजे के साथ नुमाइश की जाती थी.
जयपुर में साइकिल की पहली दुकान 1912-13 में किशनपोल में आकड़ एंड कंपनी नाम से खुली थी, जो आज भी संचालित है. 1920 में आम लोगों ने साइकिल चलाना शुरू कर दिया था. तभी से म्युनिसिपल कमेटी ने साइकिल पर भी टैक्स लगा दिया था. इसके तहत मासिक और सालाना 2 से 4 आना टैक्स लगता था. साइकिल पर एल्युमीनियम का टोकन लगाया जाता था. रोशनी के लिए साइकिल पर बैटरी लगाना जरूरी था. साइकिल पर घंटी और बच्चों को बैठाने की छोटी सीट भी लगवाते थे. वहीं स्टूडेंट की साइकिल में आगे और पीछे स्प्रिंग नुमा कैरियर होता था, जिसमें कॉपी-किताबें और दूसरे सामान रखे जा सकते थे. 1980 तक जयपुर में साइकिल पर टैक्स लगा करता था. इसके बाद ये एक आम सवारी हो गई.