रेनवाल (जयपुर). शहर के रेनवाल के नजदीकी गांव मींडा के बचनाश्रम पीठाधेश्वर भूमानंद सरस्वती के देवलोक गमन पर सोमवार को कस्बे में अंतिम यात्रा निकाली गई. महाराज के शव को फूलों से बनाई गई बैकुंठी में रखा गया. अंतिम यात्रा में शंख घ्वनि, रामध्वनी व भजनों की स्वरलहरी बिखेरता बैंड, मंजीरे बजाते सेवक, ऊंट गाड़ी पर बजते नगाड़े शामिल थे.
इनकी अंतिम यात्रा बचनाश्रम से शुरू होकर, रामद्वारा, अंबेडकर कॉलोनी, कबूतर निवास, भारतीय कॉलोनी, मुख्य बाजार, इमाम चौक, सालासर बालाजी, राजपूत मोहल्ला होते हुए कस्बे के मुख्य रास्तों से होती हुई बचनाश्रम पहुंची. श्रद्धालुओं ने जगह-जगह महाराज के अंतिम यात्रा पर पुष्प और कुमकुम वर्षा कर भक्तों ने महाराज को अंतिम विदाई दी.
डूंगरी तपोस्थली के महंत हीरापुरीजी महाराज के सानिध्य में पार्थिव देव को वैदिक मंत्रों के उच्चारण के साथ समाधि स्टकिया गया. इससे पहले रात से ही श्रद्धालुओं का आना प्रारंभ हो गया था. कस्बे सहित क्षेत्र के साथ आकोला, इंदौर, जयपुर, जोधपुर से भी भक्त लोग महाराज के अंतिम दर्शन करने पहुंचे.
बता दें कि अंतिम यात्रा में नरसिंह पुरीजी महाराज, अमनपुरीजी महाराज, भयंकरपुरीजी महाराज सहित आसपास के कई संत सहित सैंकडों श्रद्धालु मौजूद थे. महाराज के कृपापात्र शिष्य केशवानंद जी महाराज के मार्गदर्शन में आगामी कार्यक्रमों का आयोजन होगा.16 दिसंबर को आश्रम के पीठाधीश के लिए चादर पोशी केशवानंदजी महाराज के ऊपर डाली जाएगी.
आस्था का केंद्र है बचनाश्रम-
मींडा का बचनाश्रम लोगों में आस्था का केंद्र रहा है. यहां साल भर श्रद्धालु आते रहते है. गुरूपूर्णिमा पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु महाराज का आर्शीवाद लेने आते रहे है. साल 1910 में बचनरामजी महाराज मींडा में आए थे. यही संत कुटिया में वो साधना किया करते थे. महाराज के उच्च विचारों की ख्याति फेलने से सैंकड़ों श्रद्धुालओं के लिए यह आस्था का केंद्र बन गया.
बचनरामजी महाराज का साल 1970 में स्वर्गवास के बाद उनके शिष्य नित्यानंदजी महाराज और भूमानंदजी महाराज ने उनके विचारों को आगे बढ़ाया. बचनाश्रम में गुरूपूर्णिमा के दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते है. नित्यानंदजी महाराज का साल 2010 में देहावसान हो चुका है. भूमानंदजी महाराज बचनाश्रम में 12 साल की उम्र में आए थे. पूरा जीवन महाराज ने सत्संग व धर्म का ज्ञान बांटने में लगाया.अब बचनाश्रम में भूमानंदजी महाराज के शिष्य केशवानंदजी महाराज है.