जयपुर. गहलोत सरकार के 4 साल पूरे होने और अब तक कर्मचारियों की मांगे पूरी नहीं होने पर प्रदेश के 8 लाख कर्मचारी सरकार (Employees Protest in Rajasthan) के खिलाफ लामबंद हो गए हैं. राज्य सरकार की कर्मचारी विरोधी नीतियों और संवादहीनता के विरोध में अखिल राजस्थान राज्य कर्मचारी संयुक्त महासंघ ने राज्यव्यापी आंदोलन का निर्णय लिया है. 28 दिसम्बर से चरणबद्ध आंदोलन शुरू होगा जो 23 जनवरी को राजधानी में कर्मचारी आक्रोष महारैली तक होगा.
82 कर्मचारियों के संगठनों ने भरी हुंकारः खण्डेलवाल ऑडिटोरियम, वैशाली नगर में महासंघ का 'संघर्ष चेतना महाधिवेशन' सम्पन्न हुआ. जिसमें महासंघ से सम्बद्ध 82 घटक संगठनों के पदाधिकारियों ने भाग लिया. महासंघ की संघर्ष समिति के प्रदेश संघर्ष संयोजक महावीर प्रसाद शर्मा एवं सचिव अर्जुन शर्मा ने बताया कि राज्य सरकार लगातार कर्मचारियों की उपेक्षा कर रही है. साथ ही लिखित समझौतों से मुकर रही है, जिससे प्रदेश के लाखों कर्मचारी स्वंय को ठगा सा महसूस कर रहे हैं.
राज्य सरकार बड़े-बड़े विज्ञापनों के माध्यम से आम-जन में यह भ्रम फैला रही है कि राज्य कर्मचारियों की कोई मांग शेष नहीं रही है. जबकि वास्तविकता इसके ठीक विपरीत है. राज्य सरकार कर्मचारियों के साथ छलावा कर रही है जिसको बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. प्रदेश का कर्मचारी राज्य सरकार की चालाकी को समझ गया है और सरकार से दो-दो हाथ करने को तैयार है. सरकार की ओर से पिछले 4 वर्षों में महासंघ से एक बार भी संवाद कायम नहीं किया गया, जो कि लोकतांत्रिक परम्पराओं के विपरीत है.
पढ़ें. CM in Bharatpur: राजस्थान में सरकार विरोधी लहर नहीं, जनता फिर हमें मौका देगी: अशोक गहलोत
जन घोषणा पत्र के एक बिंदू की पालना नहीं हुईः महासंघ के महामंत्री तेजसिंह राठौड़ ने कहा (Employees against Gehlot government) अखिल राजस्थान राज्य कर्मचारी संयुक्त महासंघ प्रदेश के राज्य कर्मचारी, बोर्ड, निगम, स्वायत्तशाषी संस्थाओं के अंतर्गत कार्यरत 8 लाख कार्मिकों का प्रतिनिधित्व करता है. राज्य सरकार ने चुनाव पूर्व जारी किए गए जन घोषणा-पत्र के एक भी बिन्दू की पालना नहीं करते हुए अपने वादे से मुकर रही है.
राज्य सरकार ओर से घोषित राजस्थान संविदा नियम 2022 विरोधाभाषी कानून हैं. राज्य सरकार ने इस प्रकार के नियम संविदा कार्मिकों को भविष्य में स्थायी कर्मचारी बनने के सभी रास्ते बंद कर दिए हैं. संविदा नियम 2022 प्रदेश में आजादी के बाद कर्मचारियों/श्रमिकों पर सबसे बड़ा हमला है, जिसका महासंघ पुरजोर विरोध करता है.
महासंघ के प्रदेशाध्यक्ष आयुदान सिंह कविया ने आरोप लगाते हुए कहा कि राज्य सरकार नौकरशाहों के चुंगल में फंस गई है. उन्होंने आरोप लगाया कि नौकरशाह सरकार की छवि खराब कराने में लगे हुए हैं. महासंघ से सम्बद्ध विभिन्न संवर्गों की ओर से किए गए आंदोलनों में सरकार व संगठनों के मध्य हुए लिखित समझौतों/सहमतियों को लागू नहीं किया जा रहा है. जिससे राज्य कर्मचारियों में सरकार के प्रति भयंकर असंतोष और आक्रोश व्याप्त है.
साथ ही सरकार ने समय रहते महासंघ के 15 सूत्रीय मांग पत्र पर द्विपक्षीय वार्ता आयोजित कर मांगों का निराकरण नहीं किया तो राज्य कर्मचारी आम हड़ताल जैसा कदम उठाने के लिए विवश होंगे. उन्होंने बताया कि सरकार नहीं मानी तो वर्ष 1999-2000 में आम हड़ताल की पुनरावृत्ति होगी. जिसकी जिम्मेदारी राज्य सरकार की होगी. राठौड़ ने बताया कि राज्य सरकार की ओर से कर्मचारियों की समस्याओं के निराकरण के लिए कमेटियों का गठन किया गया है जो हास्यास्पद है. विगत सरकार की गठित डी.सी. सामंत कमेटी की रिपोर्ट उजागर किए बगैर ही खेमराज कमेटी का गठन किया गया जो रिपोर्ट आज तक लम्बित है. महासंघ का यह मानना है कि राज्य कर्मचारियों की समस्याओं का समाधान महासंघ और सरकार के मध्य द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से किया जाए. उन्होंने कहा कि कमेटियों पर किए जा रहे निष्फल व्यय से प्रदेश को राजकीय कोषीय घाटा होता है.
ये हैं महासंघ की मांगें (Demands of Employee Organizations)
- कर्मचारियों की वेतन विसंगति दूर कर वर्ष 2013 की अनुसूची 5 के अनुसार सातवें वेतन आयोग में वेतन निर्धारण किया जाए और न्यूनतम वेतन 26000 किया जाए.
- 9, 18 एवं 27 वर्ष की सेवा पर एसीपी के स्थान पर 7, 14, 21 और 28 वर्ष की सेवा पर पदोन्नति पद का वेतनमान स्वीकृत किया जाए.
- विभिन्न कर्मचारी संगठनों की ओर से किए गए समझौतों और सहमतियों को लागू किया जाए.
- सहायक कर्मचारियों को एमटीएस घोषित किया जाए.
- नियमित पदों पर संविदा कार्मिकों के भर्ती के लिए जारी संविदा नियम 2022 को प्रत्याहारित कर रिक्त पदों पर नियुक्त संविदा कार्मिकों व अस्थाई कार्मिकों को नियमित किया जाए.
- परादर्शी स्थानांतरण नीति जारी की जाए.
- प्रदेश में लागू की गई पुरानी पेंशन योजना के पश्चात कर्मचारियों के एनपीएस की राशि जीपीएफ खाते में स्थानांतरित की जाए. साथ ही कर्मचारियों की ओर से लिए गए ऋण की वसूली के जारी आदेशों को प्रत्याहारित किया जाए.
- प्रदेश के मंत्रालयिक कर्मचारियों को शासन सचिवालय के समान वेतन भत्ते स्वीकृत किए जाएं.
- कर्मचारी संगठनों के धरना प्रदर्शन पर रोक के लिए सरकार की ओर से लिए अलोकतांत्रिक निर्णय 'नो वर्क नो पे' के आदेश 5 अक्टूबर 2018 को प्रत्याहरित किया जाए.
- आंदोलन के कार्यक्रम घोषित किया जाए.
- ब्लॉक स्तर पर संघर्ष समितियों/तहसील उपशाखाओं/विभागीय समितियों का गठन 28 दिसम्बर से 31 दिसम्बर 2022.
- जिला स्तर पर संघर्ष चेतना बैठकें 28 दिसम्बर से 31 दिसम्बर 2022 तक होगी.
- समस्त जिला मुख्यालयों पर प्रदेश पदाधिकारियों की ओर से संघर्ष चेतना यात्रा 4 जनवरी 2023 से 6 जनवरी 2023 तक होगी.
- समस्त ब्लॉक स्तर पर धरना/ प्रदर्शन 11 जनवरी 2023 को होगा.
- समस्त जिला मुख्यालयों पर वाहनों से आक्रोश रैली 18 जनवरी 2023 को होगा.
- राजधानी जयपुर में आक्रोष महारैली 23 जनवरी 2023 को होगा.