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Special: फाइलों में दबा कारकस प्लांट, कबाड़ हो रही मशीनें...मृत पशुओं के निस्तारण की व्यवस्था नहीं - etv bharat Rajasthan news

जयपुर में मृत पशुओं के निस्तारण के लिए उचित व्यवस्था नहीं की जा सकी (Carcas plant machines became scrapped) है. पशुओं के निस्तारण के लिए बना कारकस प्लांट करीब दस साल से बंद पड़ा है. ऐसे में बड़े पशुओं का निस्तारण हिंगोनिया गोशाला में और छोटे पशुओं का निस्तारण निगम के डंपिंग यार्ड में होता है.

Carcas plant machines became scrapped
Carcas plant machines became scrapped
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Published : Nov 9, 2022, 10:28 PM IST

जयपुर. राजधानी जयपुर में हर दिन कई छोटे-बड़े पशु बीमारी या दुर्घटना का शिकार होकर जान गंवा रहे हैं, लेकिन विडंबना ये है कि स्मार्ट बन रहे इस शहर में मृत पशुओं के निस्तारण की उचित व्यवस्था नहीं है. हालांकि साल 2008 में निगम प्रशासन ने मृत पशुओं का वैज्ञानिक पद्धति से निस्तारण करने के लिए चैनपुरा में कारकस प्लांट (Carcas plant machines became scrapped) स्थापित किया था, लेकिन साल 2011-12 में जनाक्रोश के चलते उसको बंद कर दिया गया. तब से कारकस प्लांट (closure of Carcas plant) की मशीनें पड़े-पड़े जंग खा रही हैं. बड़े पशुओं के शवों का निस्तारण हिंगोनिया गोशाला में गड्ढे में दफन कर और छोटे पशुओं के शव कचरे में निस्तारित किए जा रहे हैं.

करीब 10 साल से बंद है प्लांट
करीब 10 साल पहले नगर निगम की ओर से संचालित कारकस प्लांट बंद हो गया है. उसके बाद से मृत पशुओं के शवों का निस्तारण की कोई स्थाई व्यवस्था (No arrangement for dead animals disposal) नहीं हो पाई है. हालांकि साल 2017 में नगर निगम ने श्री कृष्ण बलराम सेवा ट्रस्ट को हिंगोनिया गोशाला के संचालन की जिम्मेदारी सौंपी थी. तब एमओयू में स्पष्ट किया गया था कि 1 साल में कारकस प्लांट स्थापित करना होगा, लेकिन ये प्लांट अब तक नहीं लगाया गया है.

फाइलों में दबा कारकस प्लांट

पढ़ें. स्पेशलः राजधानी जयपुर में कैसे हो मृत पशुओं के शवों का निस्तारण...निगम के पास नहीं है कोई इंतजाम

हिंगोनिया गोशाला में दफनाए जाते हैं बड़े पशु
फिलहाल बड़े पशु और गोवंश के शवों को तो हिंगोनिया गोशाला में एक स्थान पर दफना दिया जाता है, लेकिन छोटे पशु फिलहाल कचरागृह में खुद-ब-खुद निस्तारित हो रहे हैं. जब नए कारकस प्लांट को लेकर निगम के अधिकारियों से सवाल किया गया तो उन्होंने हिंगोनिया गोशाला का काम देख रही ट्रस्ट की ओर से कारकस प्लांट बनाए जाने के एमओयू का जिक्र किया. हालांकि इस एमओयू को किए 5 साल बीत चुके हैं, लेकिन अब तक निगम प्रशासन की उदासीनता और ट्रस्ट की लापरवाही के चलते अब तक ये प्लांट फाइलों में ही दबा है.

Carcas plant machines became scrapped
बंद पड़ा प्लांट

पढ़ें. जयपुर में अफ्रीकन स्वाइन फीवर का अंदेशा, नाले में 15 सुअर मृत मिले

हेरिटेज नगर निगम आयुक्त विश्राम मीणा ने बताया कि मृत पशुओं की शिकायत प्राप्त होने पर उन्हें उठावाया जाता है. इस काम को ठेके पर दिया गया है. बड़े मृत पशुओं को हिंगोनिया गोशाला में एक गड्ढे में दफना दिया जाता है. हालांकि कारकस प्लांट को लेकर निगम प्रशासन ने हिंगोनिया गोशाला का काम देख रही ट्रस्ट के साथ एक एमओयू किया था. फिर भी अब तक ये प्लांट स्थापित नहीं हो पाया है. अब इस प्रकरण पर दोबारा काम शुरू करते हुए ट्रस्ट के साथ पत्र व्यवहार करेंगे. जहां तक छोटे मृत पशुओं का सवाल है तो उन्हें डंपिंग यार्ड में ही अलग से दफन किया जाता है.

पढ़ें. अलवर में लम्पी का कहर: खुले में पड़ी हैं मृत गाय, कई किलोमीटर तक फैली बदबू

टीम ने हरियाणा जाकर कारकस प्लांट की स्टडी की
ग्रेटर नगर निगम पशु प्रबंधन उपायुक्त हेमाराम चौधरी ने भी ट्रस्ट के साथ हुए एमओयू की बात को दोहराते हुए कहा कि फिलहाल बड़े मृत पशुओं को हिंगोनिया गोशाला में ही एक अलग एरिया में वैज्ञानिक तरीके से दफनाते हुए निस्तारित करने का काम किया जा रहा है. वहीं निगम की ओर से ट्रस्ट पर दबाव बनाने का प्रयास किया जा रहा है. इस संबंध में नोटिस भी दिया गया है. उन्होंने बताया कि ट्रस्ट की टीम हाल ही में हरियाणा गई थी जहां कारकस प्लांट की मैन्युफैक्चरिंग की स्टडी की. वहां से दीपावली से पहले टीम आने वाली थी जो सर्वे कर लोकेशन देखती, लेकिन अब तक वहां से कोई आया नहीं है. ऐसे में ट्रस्ट को नोटिस देकर दोबारा ताकीद की जा रही है कि एमओयू की शर्तों की पालना करें अन्यथा आगामी भुगतान नहीं किया जाएगा.

बहरहाल जयपुर शहर के नागरिकों के बुनियादी ढांचे को बनाए रखने और संबंधित प्रशासनिक कर्तव्यों को पूरा करने की जिम्मेदारी जयपुर के दोनों नगर निगमों पर है. इसी निगम प्रशासन के पास आवारा पशुओं की समस्या से शहर को निजात दिलाने और मृत पशुओं के निस्तारण की भी जिम्मेदारी है, लेकिन शायद नागरिकों के प्रति अपने कर्तव्यों की पालना करने में निगम प्रशासन इतना व्यस्त हो गया है कि पशुओं के प्रति जिम्मेदारी ही भुला बैठा है. मृत पशुओं के शवों के निपटान की जब बात आती है, तो निगम के आला अधिकारी पुराने राग अलापने लगते हैं.

जयपुर. राजधानी जयपुर में हर दिन कई छोटे-बड़े पशु बीमारी या दुर्घटना का शिकार होकर जान गंवा रहे हैं, लेकिन विडंबना ये है कि स्मार्ट बन रहे इस शहर में मृत पशुओं के निस्तारण की उचित व्यवस्था नहीं है. हालांकि साल 2008 में निगम प्रशासन ने मृत पशुओं का वैज्ञानिक पद्धति से निस्तारण करने के लिए चैनपुरा में कारकस प्लांट (Carcas plant machines became scrapped) स्थापित किया था, लेकिन साल 2011-12 में जनाक्रोश के चलते उसको बंद कर दिया गया. तब से कारकस प्लांट (closure of Carcas plant) की मशीनें पड़े-पड़े जंग खा रही हैं. बड़े पशुओं के शवों का निस्तारण हिंगोनिया गोशाला में गड्ढे में दफन कर और छोटे पशुओं के शव कचरे में निस्तारित किए जा रहे हैं.

करीब 10 साल से बंद है प्लांट
करीब 10 साल पहले नगर निगम की ओर से संचालित कारकस प्लांट बंद हो गया है. उसके बाद से मृत पशुओं के शवों का निस्तारण की कोई स्थाई व्यवस्था (No arrangement for dead animals disposal) नहीं हो पाई है. हालांकि साल 2017 में नगर निगम ने श्री कृष्ण बलराम सेवा ट्रस्ट को हिंगोनिया गोशाला के संचालन की जिम्मेदारी सौंपी थी. तब एमओयू में स्पष्ट किया गया था कि 1 साल में कारकस प्लांट स्थापित करना होगा, लेकिन ये प्लांट अब तक नहीं लगाया गया है.

फाइलों में दबा कारकस प्लांट

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हिंगोनिया गोशाला में दफनाए जाते हैं बड़े पशु
फिलहाल बड़े पशु और गोवंश के शवों को तो हिंगोनिया गोशाला में एक स्थान पर दफना दिया जाता है, लेकिन छोटे पशु फिलहाल कचरागृह में खुद-ब-खुद निस्तारित हो रहे हैं. जब नए कारकस प्लांट को लेकर निगम के अधिकारियों से सवाल किया गया तो उन्होंने हिंगोनिया गोशाला का काम देख रही ट्रस्ट की ओर से कारकस प्लांट बनाए जाने के एमओयू का जिक्र किया. हालांकि इस एमओयू को किए 5 साल बीत चुके हैं, लेकिन अब तक निगम प्रशासन की उदासीनता और ट्रस्ट की लापरवाही के चलते अब तक ये प्लांट फाइलों में ही दबा है.

Carcas plant machines became scrapped
बंद पड़ा प्लांट

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हेरिटेज नगर निगम आयुक्त विश्राम मीणा ने बताया कि मृत पशुओं की शिकायत प्राप्त होने पर उन्हें उठावाया जाता है. इस काम को ठेके पर दिया गया है. बड़े मृत पशुओं को हिंगोनिया गोशाला में एक गड्ढे में दफना दिया जाता है. हालांकि कारकस प्लांट को लेकर निगम प्रशासन ने हिंगोनिया गोशाला का काम देख रही ट्रस्ट के साथ एक एमओयू किया था. फिर भी अब तक ये प्लांट स्थापित नहीं हो पाया है. अब इस प्रकरण पर दोबारा काम शुरू करते हुए ट्रस्ट के साथ पत्र व्यवहार करेंगे. जहां तक छोटे मृत पशुओं का सवाल है तो उन्हें डंपिंग यार्ड में ही अलग से दफन किया जाता है.

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टीम ने हरियाणा जाकर कारकस प्लांट की स्टडी की
ग्रेटर नगर निगम पशु प्रबंधन उपायुक्त हेमाराम चौधरी ने भी ट्रस्ट के साथ हुए एमओयू की बात को दोहराते हुए कहा कि फिलहाल बड़े मृत पशुओं को हिंगोनिया गोशाला में ही एक अलग एरिया में वैज्ञानिक तरीके से दफनाते हुए निस्तारित करने का काम किया जा रहा है. वहीं निगम की ओर से ट्रस्ट पर दबाव बनाने का प्रयास किया जा रहा है. इस संबंध में नोटिस भी दिया गया है. उन्होंने बताया कि ट्रस्ट की टीम हाल ही में हरियाणा गई थी जहां कारकस प्लांट की मैन्युफैक्चरिंग की स्टडी की. वहां से दीपावली से पहले टीम आने वाली थी जो सर्वे कर लोकेशन देखती, लेकिन अब तक वहां से कोई आया नहीं है. ऐसे में ट्रस्ट को नोटिस देकर दोबारा ताकीद की जा रही है कि एमओयू की शर्तों की पालना करें अन्यथा आगामी भुगतान नहीं किया जाएगा.

बहरहाल जयपुर शहर के नागरिकों के बुनियादी ढांचे को बनाए रखने और संबंधित प्रशासनिक कर्तव्यों को पूरा करने की जिम्मेदारी जयपुर के दोनों नगर निगमों पर है. इसी निगम प्रशासन के पास आवारा पशुओं की समस्या से शहर को निजात दिलाने और मृत पशुओं के निस्तारण की भी जिम्मेदारी है, लेकिन शायद नागरिकों के प्रति अपने कर्तव्यों की पालना करने में निगम प्रशासन इतना व्यस्त हो गया है कि पशुओं के प्रति जिम्मेदारी ही भुला बैठा है. मृत पशुओं के शवों के निपटान की जब बात आती है, तो निगम के आला अधिकारी पुराने राग अलापने लगते हैं.

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