जयपुर. डचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (डीएमडी) जैसी जानलेवा बीमारी से ग्रसित बच्चों ने अपने परिजनों के साथ सोमवार को जयपुर जिला कलेक्टर कार्यालय पर प्रदर्शन किया और देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से अपने इलाज के लिए गुहार लगाई. इस रोग का इलाज महंगा होने के कारण परिजन बच्चों का इलाज कराने में असमर्थ हैं. अमरीका में इस इलाज पर करीब 17 करोड़ रुपए का खर्च आता है.
एक बच्चे पर 17 करोड़ रुपये से अधिक होता है खर्च: रामगोपाल शर्मा ने बताया कि फिलहाल इंडिया में इसका प्रॉपर इलाज संभव नहीं है. इसका इलाज अमेरिका में ही संभव है. यदि एक डीएमडी पीड़ित बच्चे का अमेरिका में इलाज कराया जाता है, तो उस पर 17 करोड़ से अधिक का खर्च आता है. इंडिया में exon skipping अस्थायी इलाज है. यह इलाज 5 साल तक कराना पड़ता है. इलाज के दौरान एक साल में मरीज पर 2 करोड़ रुपए खर्च होता है.
इस तरह डीएमडी पीड़ित बच्चे पर 5 साल में 10 करोड़ रुपए खर्च होता है. इस इलाज के बाद मरीज की उम्र केवल 2 से 5 साल बढ़ जाती है. इसमे भी 100 प्रतिशत डेथ रेट है. इसका एकमात्र उपाय जीन थेरेपी है, जो केवल अमेरिका में ही संभव है. डीएमडी पीड़ित बच्चे का इलाज महंगा होने के कारण अभिभावक अपने बच्चों का इलाज नहीं करा पा रहे हैं. इसलिए उन्होंने राष्ट्रपति प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से इलाज के लिए गुहार लगाई है.
जयपुर जिला कलेक्टर कार्यालय पर अलग-अलग जगह से पीड़ित बच्चे अपने परिजनों के साथ पहुंचे और इलाज के लिए गुहार लगाई. यह बच्चे लंबे समय से मस्कुलर डिस्ट्रॉफी रोग से पीड़ित हैं. इस संबंध में कई बार केंद्र और राज्य सरकार से मदद भी मांगी गई, लेकिन अभी तक इन बच्चों को कोई मदद नहीं मिल पाई है. डीएमडी कोर कमेटी ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय संयोजक रामगोपाल शर्मा ने बताया कि हमारी यही मांग है कि डीएमडी रोग से पीड़ित बच्चों का इलाज किया जाए और उनके दिए लिए दवाई मुहैया करवाई जाएं.
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उन्होंने कहा कि हम लोग 10 साल से इस रोग के इलाज के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन अभी तक हमें कोई मदद नहीं मिल पाई है. इससे पहले हमने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और चिकित्सा मंत्री को कई बार पत्र भी लिखा और यहां तक चेतावनी भी दे दी कि यदि आप इलाज नहीं कर सकते हैं, तो हमें आत्महत्या करने की अनुमति दी जाए. इसके बावजूद भी हमारी सुनवाई नहीं हो रही.
डीएमडी रोग के इलाज के लिए बेंगलुरु के नारायण अस्पताल में काम करने वाले डॉक्टर आरका सुब्रा घोष जीन थैरेपी पर काम कर रहे हैं. पहले दौर में इन्हें सफलता भी मिली है. अभी भी उन्हें इस रोग के इलाज पर काम करने के लिए 100 करोड़ रुपयों की जरूरत है. जीन थैरेपी से ही इस रोग का इलाज कर सकते हैं. लेकिन डॉक्टर घोष को इसके लिए आर्थिक मदद नहीं मिल पा रही है. यदि सरकार उन्हें 100 करोड़ रुपए का अनुदान दे, तो वह जीन थैरेपी के जरिए इस रोग का इलाज उपलब्ध करा सकते हैं. बच्चों को समय पर इलाज के लिए मदद नहीं मिलने पर रामगोपाल शर्मा ने नाराजगी भी जताई.
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उन्होंने कहा कि जब कोरोना जैसी बीमारी के लिए सरकार 6 महीने में वैक्सीन निकाल सकती है तो हम लोग 10 साल से मस्कुलर डिस्ट्रॉफी रोग के लिए संघर्ष कर रहे हैं. हमारे लिए भी सरकार कुछ ना कुछ कर सकती है, ताकि इस रोग से पीड़ित बच्चों को इलाज मिल सके और वे खुशहाल जिंदगी जी सकें. उन्होंने कहा कि बिना इलाज के इस रोग से पीड़ित बच्चे मौत के मुंह में जा रहे हैं. इसलिए हमारे बच्चों को इलाज मिलना ही चाहिए.
रामगोपाल शर्मा ने कहा कि डीएमडी रोग अनुवांशिक रोग है और यह मां से बच्चे में आता है. शुरुआत में बच्चा स्वस्थ होता है, लेकिन जैसे-जैसे चलने फिरने लगता है तो वह कंपकंपाता है और कोई वस्तु भी नहीं पकड़ पाता. इसमें मांसपेशियां कमजोर होती हैं और समय निकलने पर और कमजोर होती चली जाती हैं. जीन थेरेपी से ही इसका इलाज संभव है. शर्मा ने बताया कि डीएमडी रोग से पीड़ित बच्चों की औसत उम्र 20 से 22 साल होती है और रोग के 10 साल बाद बच्चा व्हील चेयर पर आ जाता है.
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ज्ञापन के जरिए बताया कि राजस्थान में से 3000 बच्चे इस रोग से पीड़ित हैं. सर्वे कराने पर यह आंकड़ा बढ़ सकता है. उनकी मांग है कि रेयर डिजीज के बच्चों और दिव्यांग बच्चों को अलग-अलग श्रेणी में रखा जाए. डीएमडी से पीड़ित बच्चा अपनी दिनचर्या के कार्यों के लिए परिजनों पर ही आश्रित रहता है. 15 साल की उम्र में अपने हाथ से मच्छर भी नहीं उड़ा सकता. आंध्र प्रदेश में सरकार 5 हजार रुपए प्रतिमाह बच्चों को पेंशन दी जा रही है. इसी तरह की पेंशन राजस्थान में भी दी जाए.
बिहार सरकार ने भी प्रति बच्चे के परिवार को 6 लाख रुपए की आर्थिक सहायता दी है. उनकी मांग है कि इसी तरह की सहायता राजस्थान में भी डीएमडी पीड़ित बच्चे के परिजनों को दी जाए. पीड़ित बच्चों के लिए पावर व्हीलचेयर उपलब्ध कराने की भी मांग ज्ञापन के जरिए की गई है. प्रदर्शन में शामिल हुए पीड़ित बच्चों के परिजनों ने इस बात पर नाराजगी जताई कि सरकार की ओर से उन्हें कोई मदद नहीं मिल रही है. इसके लिए वे कई जगह गुहार भी लगा चुके हैं. उन्होंने कहा कि इन बच्चों का दिमाग बहुत तेज चलता है. यदि सरकार की ओर से उन्हें मदद मिले, तो वे राजस्थान ही नहीं देश का नाम भी रोशन कर सकते हैं.