जयपुर. जिन चार राज्यों राजस्थान, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर शुक्रवार 26 मई को कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी पार्टी के प्रमुख नेताओं के साथ बैठक करने जा रहे हैं. उसमें हर किसी की नजरें पायलट और गहलोत के बीच चरम पर चल रहे राजनीतिक शीत युद्ध के चलते राजस्थान पर सबसे ज्यादा है. जहां एक ओर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कांग्रेस पार्टी के ही विधायकों पर भाजपा से पैसे लेने के आरोप लगा दिए तो वहीं दूसरी ओर सचिन पायलट अपनी ही सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर अजमेर से जयपुर तक जन संघर्ष यात्रा पैदल मार्च निकालते दिखाई दिए.
पैदल मार्च के बाद सचिन पायलट ने जिस तरह से सरकार को 15 दिन का अल्टीमेटम दिया था. उसके बाद लग रहा था कि अब पायलट और कांग्रेस पार्टी के रास्ते अलग-अलग हो गए हैं, लेकिन 26 मई को दिल्ली में होने जा रही बैठक से पहले जिस तरह से गहलोत और पायलट दोनों नेताओं के तेवर नरम पड़े हैं. उसे देखकर लगता है कि अभी इस बात की संभावना बची है कि दोनों नेता कांग्रेस आलाकमान के कहने पर एक बार फिर एक मंच पर दिखे और राजस्थान में एक साथ मिलकर चुनाव लड़े.
राहुल-खड़गे से बैठक से पहले गहलोत बोले- पूरी कांग्रेस एकजूट तो पायलट ने भी कही ये बड़ी बात : जहां राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करने से पीछे नहीं हट रहे थे वहीं अब जैसे ही कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ चुनाव को लेकर होने जा रही बैठक से पहले दोनों नेताओं के तेवर नरम पड़ चुके हैं.
जहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सचिन पायलट के अल्टीमेटम को लेकर यह कह चुके हैं कि यह सब मीडिया की फैलाई हुई बातें हैं और राजस्थान में कांग्रेस एकजुट होकर चुनाव लड़ेगी और चुनाव जीतेगी. वहीं, सचिन पायलट ने भी ERCP को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तो वादाखिलाफी का आरोप लगाया ही है, इसके साथ ही पहली बार उन्होंने केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत पर भी इस मामले में मौन रहने को समझ से परे बताया है. क्योंकि सचिन पायलट पर अब तक कांग्रेस के नेताओं की ओर से ही यह आरोप लगाए जाते थे कि वह गजेंद्र सिंह शेखावत को लेकर कोई बात नहीं कहते हैं. ऐसे में अब गजेंद्र सिंह शेखावत को लेकर किए गए ट्वीट से यह साफ हो गया की ERCP पर पार्टी का जो स्टैंड है, उसमें पायलट भी साथ खड़े हैं.
रंधावा बोले- हम कर लेंगे स्थितियों को कंट्रोल में : राजस्थान के प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने गुरुवार को यह तो माना कि राजस्थान में नेताओं में आपसी झगड़े हैं, लेकिन इसके साथ ही उन्होंने यह भी कह दिया कि जिस पार्टी में कुछ होता है, वहीं लड़ाई होती है और हम इस स्थिति को कंट्रोल में कर लेंगे. रंधावा अब यह भी कह चुके हैं कि पायलट के 26 मई को होने वाली बैठक में आने पर किसी को शक नहीं होना चाहिए.
ऐसे में लगता है कि अगर गहलोत और पायलट 26 मई को एक साथ बैठक में शामिल होंगे और अगर दोनों नेता कांग्रेस आलाकमान के सामने चुनाव कैसे जीता जाए, इस विषय पर होने वाली चर्चा में शामिल होंगे तो यह भी हो सकता है कि अगले एक-दो दिनों में फिर से राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ खड़े होकर गहलोत और पायलट की एकजुटता की तस्वीरें सामने आए, जैसी राजस्थान विधानसभा चुनाव के बाद गहलोत और पायलट की राहुल गांधी के साथ और भारत जोड़ो यात्रा से पहले संगठन महामंत्री केसी वेणुगोपाल के साथ दिखाई दी थी. बहरहाल, राजस्थान में कांग्रेस की राजनीति अब किस करवट बैठेगा, वह अगले 2 से 3 दिन में साफ हो जाएगा.
बैठक में सबसे बड़ा एजेंडा एकजुटता दिखाना : 26 मई को दिल्ली में होने वाली बैठक में राजस्थान से चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस पार्टी अगर कोई सबसे बड़ा फैसला होगा तो वह पार्टी के नेताओं को एकजुट करना होगा और अगर सब कुछ सही रहा और गहलोत-पायलट एकजुट होने को तैयार हुए तो संभव है कि सचिन पायलट को जल्द ही राजस्थान में चुनाव अभियान समिति के चेयरमैन या संगठन में कोई पद मिल सकता है. इसके साथ ही कल होने वाली बैठक में कर्नाटक चुनाव में जिस स्ट्रेटजी से कांग्रेस को जीत मिली उसका भी राजस्थान में इस्तेमाल किया जा सकता है.
सर्वे रिपोर्ट पर भी होगी चर्चा : दिल्ली में कल होने जा रही बैठक में वह सर्वे की रिपोर्ट भी प्रभारी और प्रदेश अध्यक्ष साथ लेकर जाएंगे, जो उन्होंने मौजूदा मंत्रियों और विधायकों के साथ ही उन नेताओं के लिए तैयार करवाई है जो चुनाव में टिकट के प्रबल दावेदार हैं. सर्वे क्योंकि कांग्रेस पार्टी ने अपनी तरफ से भी करवाया है और मुख्यमंत्री ने अपनी तरफ से भी. ऐसे में दोनों सर्वे का मिलान कर यह देखा जाएगा कि कौन नेता पार्टी को चुनाव जितवा सकते हैं और कौन चुनाव में हार रहे हैं. ऐसे में संभव है कि चुनाव हार रहे नेताओं के टिकट काटने पर भी निर्णय हो.