जयपुर. राजस्थान से दो विधायकों नरेंद्र कुमार और हनुमान बेनीवाल के सांसद बन जाने के चलते प्रदेश की 2 विधानसभा सीटों पर उप चुनाव होने हैं. यह दोनों उप चुनाव सत्ताधारी कांग्रेस के लिए साख का सवाल बने हुए हैं. कांग्रेस के सामने एक और चुनौती यह है कि वह अपनी आंतरिक गुटबाजी को कैसे थामे. वहीं दूसरी चुनौती यह है कि वह कैंडिडेट कौन हो, जो कांग्रेस को इन चुनावों में जीत दिला सके और जिस जीत के बहाने कांग्रेस एक बार फिर से लोकसभा की हार से उबर सके.
इतना ही नहीं कांग्रेस अगर इन दोनों सीटों पर उप चुनाव जीत जाती हैं तो फिर कांग्रेस का विधानसभा में पूर्ण बहुमत हो जाएगा. अभी कांग्रेस के पास अपने 100 विधायक हैं और सुभाष गर्ग ने कांग्रेस को समर्थन दे रखा है. ऐसे में अगर इन 2 सीटों पर कांग्रेस जीतने में कामयाब हो जाती है तो वह 102 सीटों पर आ जाएगी. जो पूर्ण बहुमत होगा.
अभी विधानसभा में कांग्रेस को 12 निर्दलीय विधायकों और 6 बसपा के विधायकों का भी समर्थन प्राप्त है. ऐसे में सरकार को कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन फिर भी कांग्रेस अगर दोनों सीटें जीत जाती है तो उस स्थिति में एक तो लोकसभा चुनाव की हार से कांग्रेस ऊबर सकेगी और दूसरा उसकी स्वयं की मेजॉरिटी सदन में हो जाएगी. आइए जानते हैं, इन दोनों लोकसभा सीटों पर क्या है राजनीतिक गणित
1. खींवसर
राजस्थान में दोनों सीटों में सबसे महत्वपूर्ण सीट अगर कोई है और जिस पर पूरे देश की नजर हो सकती है तो वह है खींवसर विधानसभा सीट. क्योंकि, इस सीट से आरएलपी के संयोजक और विधायक हनुमान बेनीवाल अब सांसद बनकर लोकसभा में पहुंच चुके हैं, लेकिन यह सीट उनकी परंपरागत सीट बन चुकी है. जहां से वे लगातार तीन बार एक बार भाजपा की टिकट पर एक बार निर्दलीय और एक बार आरएलपी की टिकट पर चुनाव जीत चुके हैं.
अभी वह अपने भाई को इस सीट पर चुनाव लड़ा सकते हैं तो ऐसे में कहा जा रहा है कि आगामी उप चुनाव में कांग्रेस यहां से ज्योति मिर्धा को चुनावी मैदान में उतार सकती है और इसका कारण भी है कि ज्योति मिर्धा खुद हनुमान बेनीवाल को राजनीतिक लड़ाई में किसी भी तरीके से हराना चाहती है. वहीं ज्योति मिर्धा अगर इस सीट से चुनाव जीत जाती है तो यह विजय नागौर की राजनीति क्षेत्र में मिर्धा परिवार के लिए फिर से एक संजीवनी का काम कर सकती है. हालांकि अभी तक यह तय नहीं है कि ज्योति खुद भी इस सीट से चुनाव लड़ना चाहती है या नहीं. क्योंकि, विधानसभा चुनाव में उन्होंने इस सीट पर टिकट नहीं मांगा था.
उधर, इस सीट पर गत विधानसभा चुनाव में हारे सवाई सिंह चौधरी भी फिर से तैयारी में जुट गए हैं तो वहीं हरेंद्र मिर्धा भी एक दावेदार है. जिन्होंने विधानसभा चुनाव में नागौर से उम्मीदवारी जताने के बाद भी अचानक पार्टी में आए हबीबुर्रहमान को टिकट देने के बावजूद बागी होकर चुनाव नहीं लड़ा था. इसका ख्याल रखते हुए भी पार्टी उन्हें टिकट दे सकती है तो वहीं एक नाम सहदेव चौधरी का भी है, जो एक बार चुनाव लड़ चुके हैं.
अगर, आरएलपी ने भाजपा से गठबंधन किया तो कांग्रेस और आरएलपी के बीच में मुकाबला से कांग्रेस को फायदा माना जा रहा है, लेकिन अगर भाजपा ने उम्मीदवार उतारा तो बेनीवाल त्रिकोणीय मुकाबले में आसानी से सीट निकाल सकते है.
खींवसर सीट पर परिसीमन के बाद तीन चुनाव हुए हैं. इनमें तीनों बार हनुमान बेनीवाल ने जीत दर्ज की है, लेकिन इन 3 में से 2 चुनाव में हनुमान बेनीवाल को त्रिकोणीय मुकाबले में जीत मिली है. भाजपा के लोकसभा चुनाव में हुए गठबंधन को भाजपा विधानसभा के उप चुनाव में भी अपनाती है तो फिर ऐसे में कांग्रेस और आरएलपी में सीधा मुकाबला होगा. जिसमें कांग्रेस को फायदा मिल सकता है.
क्योंकि, ऐसे में वोट कटेंगे नहीं. वैसे भी इस सीट पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पूरा फोकस करेंगे. क्योंकि, कहा जा रहा है कि राजस्थान में ना केवल जोधपुर बल्कि पूरे राजस्थान में जो कांग्रेस की हार हुई है उसमें एक कारण हनुमान बेनीवाल भी रहे हैं. ऐसे में खुद गहलोत भी इस सीट को नाक का सवाल समझ कर चुनाव में ताकत झोकेंगे. ऐसे में खींवसर सीट पर उप चुनाव खासा दिलचस्प होगा. क्योंकि, हनुमान बेनीवाल इस सीट पर निश्चित तौर पर अपने भाई को चुनाव लड़वाएंगे तो कांग्रेस उन्हें हराने का हर संभव प्रयास करेगी.
2. मंडावा विधानसभा सीट
कभी कांग्रेस की परंपरागत सीट रही मंडावा लगातार दो चुनावों से कांग्रेस पार्टी से दूर जा रही है. इस बार भी कांग्रेस के पास ज्यादा विकल्प नहीं है. यहां से रीटा सिंह सबसे मजबूत दावेदार मानी जा रही है तो वहीं डॉ. चंद्रभान भी उन्हें कड़ी टक्कर दे रहे हैं. वहीं रीटा के भाई को भी दावेदार माना जा रहा है.
मंडावा को कांग्रेस की परंपरागत सीट माना जाता रहा है. क्योंकि, इस सीट से कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष रामनारायण चौधरी ने 3 बार तो उनकी बेटी रीटा चौधरी ने एक बार चुनाव जीता. साल 2013 में कांग्रेस ने तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष डॉ. चंद्रभान को रीटा सिंह का टिकट काटकर टिकट थमा दिया था. ऐसे में नाराज रीटा चौधरी ने निर्दलीय के रूप में चुनाव मैदान में ताल ठोक दी थी. ऐसे में कांग्रेस इस सीट पर चौथे स्थान पर चली गई थी. इस बार चुनाव में कांग्रेस ने फिर से रीटा चौधरी पर दांव खेला था, लेकिन वह इस बार भी जीतने में कामयाब नहीं रही.
ऐसे में इस सीट से अब डॉ. चंद्रभान एक बार फिर से टिकट मांग रहे हैं. हालांकि रीटा चौधरी इस सीट पर ज्यादा मजबूत दावेदार है, लेकिन रामनारायण चौधरी के बेटे राजेंद्र चौधरी भी इस टिकट की दौड़ में बताए जा रहे हैं.
कांग्रेस के सामने दिक्कत कि इन दोनों दावेदारों से कोई मजबूत दावेदार नहीं है तो वहीं दोनों उम्मीदवार 2 बार लगातार चुनाव हार चुके हैं. ऐसे में क्या होगा कांग्रेस के उस फार्मुले का, जिसके अनुसार 2 बार से लगातार हार रहे नेताओं को नहीं दिया जाना था टिकट.
ज्योति मिर्धा हो या फिर मंडावा से रीटा चौधरी दोनों को लेकर कांग्रेस के सामने चुनौती यह है कि दोनों ही लगातार दो बार चुनाव हार चुकी हैं. चाहे रीटा चौधरी एक चुनाव निर्दलीय और दूसरा कांग्रेस से हारी हो या फिर ज्योति मिर्धा सांसद के दोनों चुनाव हारी हो, लेकिन हार दोनों ही नेता दो चुनावों से लगातार रही हैं. ऐसे में कांग्रेस में भी चुनौती है कि किसे इस सीट पर सियासी मैदान में उतारे, जो आगामी उप चुनाव में कांग्रेस को जीत दिला सके. वहीं इन सबके बीच कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई के बीच में इस उप चुनाव को लेकर बेहतर चुनाव प्रबंधन करना भी किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं रहेगा.