जयपुर. राजस्थान में सत्ताधारी दल कांग्रेस के नेता सत्ता में भागीदारी के लिए राजनीतिक नियुक्तियों की मांग करते रहे हैं. बीते 4 सालों में गहलोत सरकार ने राजनीतिक नियुक्तियों में कांग्रेस नेताओं को हिस्सेदारी भी दी है, लेकिन गहलोत सरकार का यह कार्यकाल राजनीतिक नियुक्तियों के मामले में अब सवालों के घेरे में आ गया है. चाहे वह रिटायर्ड अधिकारियों को राजनीतिक नियुक्तियां देनी हो या फिर राजनीतिक नियुक्तियों में हुई देरी.
इसी बीच 13 मार्च को उपभोक्ता संरक्षण राज्य आयोग और जिला आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति पर विवाद खड़ा हो गया है. विवाद यह है कि जयपुर द्वितीय जिला आयोग के अध्यक्ष ग्यारसी लाल मीणा और बांसवाड़ा के सदस्य के तौर पर कमलेश शर्मा की नियुक्ति की गई है, जिन्हें जिला आयोग का पूर्णकालिक अध्यक्ष और सदस्य नियुक्त किया गया है.
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दरअसल, ग्यारसी लाल मीणा भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा के प्रदेश संयोजक व भाजपा विधि विभाग के महासचिव के पद पर तैनात हैं तो वहीं बांसवाड़ा के कमलेश शर्मा भी भाजपा चिकित्सा प्रकोष्ठ से जुड़े हैं. अब इन दोनों की नियुक्तियों से सवाल यह खड़े हो गए हैं कि क्या कांग्रेस के पास ऐसे योग्य नेताओं की कमी है, जिन्हें यह राजनीतिक नियुक्तियां दी जा सके या फिर सरकार को अंधेरे में रखकर यह नियुक्तियां की गई है.
बता दें कि यह पहली बार नहीं है कि जब भाजपा के नेताओं को वर्तमान कांग्रेस सरकार में राजनीतिक नियुक्तियां मिली हो. इससे पहले भी भाजपा के मीडिया संपर्क विभाग के आनंद शर्मा की पत्नी को जिला उपभोक्ता मंच में सदस्य बनाया गया था. वहीं, कई पार्षदों को भी राजनीतिक नियुक्तियां दी गई थी. इतना ही नहीं, महिला कांग्रेस में तो भाजपा से जुड़ी नेताओं को अध्यक्ष भी बना दिया गया था, लेकिन विवाद बढ़ने लगा तब उनकी नियुक्ति को तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया गया. इस मामले में राजस्थान कांग्रेस के पूर्व महासचिव और विधि प्रकोष्ठ के पूर्व अध्यक्ष सुशील शर्मा ने भी सवाल उठाए हैं. साथ ही इन दोनों ही नियुक्तियों को तत्काल प्रभाव से रद्द करने की मांग सरकार से की है.