जयपुर. कहा जाता है कि जो दल सत्ता में होता है वह पार्टी हमेशा स्थानीय निकाय और पंचायती राज चुनाव में बढ़त बनाती है लेकिन राजस्थान में इस बार ऐसा नहीं हुआ. इस बार के परिणामों के जहां कांग्रेस को झटका लगा है तो वहीं अब भाजपा भी बेचैन है. लेकिन इस बार राजस्थान में हुए निकाय चुनावों के परिणाम जो आ रहे हैं वो ये तमाम पुरानी धारणाओं को बदलते नजर आ रहे हैं. आश्चर्यजनक तरीके से पंचायती राज चुनाव में कांग्रेस पार्टी सत्ता में होने के बावजूद भी निराशाजनक प्रदर्शन करती हुए दिखाई दे रही है. वहीं जो कांग्रेस पार्टी हमेशा भाजपा से शहरों में पिछड़ी रहती थी वह इस बार स्थानीय निकाय और निगम चुनाव में भाजपा पर भारी पड़ती दिखी है.
सरपंचों का चुनाव जिला परिषद और पंचायत समिति से पहले हो जाना
कांग्रेस पार्टी का मानना है कि वो इस बार के पंचायत चुनाव में इसलिए पिछड़ी क्योंकि इस बार सरपंचों के चुनाव पहले हुए और जिला परिषद और पंचायत समिति सदस्यों के चुनाव बाद में. जिसके चलते एक तो हारे हुए सरपंच फिर से चुनाव में कूद पड़े और दूसरा जीतने के बाद उन्होंने सीधा कांग्रेस पार्टी को समर्थन ना करके अपने हिसाब से निर्णय लिया कि किसे समर्थन देना है.
जनप्रतिनिधियों की आम जनता से दूरी
जिला परिषद और पंचायती राज चुनाव में सत्ताधारी दल कांग्रेस की हार का एक कारण कोरोना महामारी को माना जा रहा है. कोरोना का प्रसार गांव में ना के बराबर है. ऐसे में सरकार ने जो काम किए उससे गांव वालों का जुड़ाव नहीं हुआ और उन्हें लगा की सरकार कोई काम नहीं कर रही है. वहीं सरकार के मंत्री और जनप्रतिनिधि भी आम जनता से दूरी बनाते नजर आए.
प्रदेश कांग्रेस पार्टी का संगठन नहीं होना
राजस्थान में कांग्रेस पार्टी का संगठन नहीं होना भी गांव में हार का एक प्रमुख कारण माना जा रहा है. क्योंकि गांव में चुनाव का मैनेजमेंट शहरों से अलग होता है. ऐसे में संगठन की आवश्यकता कांग्रेस को थी लेकिन संगठन नहीं होने की वजह से चुनाव मैनेजमेंट नहीं हो सका जिसके चलते पार्टी को हार का सामना करना पड़ा.
स्थानीय निकाय और नगर निगम चुनाव के समीकरण-
प्रदेश में हुए में हुए 50 स्थानीय निकायों और 6 नगर निगम में कांग्रेस पार्टी ने भाजपा पर बढ़त बनाई है. 6 में से चार नगर निगम में कांग्रेस के महापौर बने तो वहीं 50 स्थानीय निकाय में से 36 पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की. क्योंकि कोरोना महामारी शहरों में ज्यादा है ऐसे में सरकार ने जो कोरोना काल में काम किए वह शहरों में आम जनता तक पहुंचे जिसका असर स्थानीय निकाय चुनाव में सीधा दिखाई दिया.
साल 2020 में अभी तक 21 जिलों में ही चुनाव हुए हैं बाकी जिलों में चुनाव होना शेष है. इन नतीजों में साफ देखा जा सकता है कि कांग्रेस चाहे सत्ता में हो या नहीं हो जिला प्रमुख बनाने में वह भाजपा से पीछे नहीं रहती दिखी. साल 2005 में भाजपा सत्ता में थी लेकिन उसके बावजूद कांग्रेस पार्टी के 16 जिला प्रमुख बने थे और भाजपा के केवल 13 ही बने. वहीं साल 2010 में कांग्रेस पार्टी सत्ता में थी तो कांग्रेस के जिला प्रमुख 24 जीते तो भाजपा के केवल 8 कैंडिडेट्स ने जीत दर्ज की.
इसी तरह से साल 2015 में पहली बार भाजपा ने जिला प्रमुख बनाने में बाजी मारी लेकिन उस समय सरकार भी प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की थी. साल 2015 में सत्ताधारी दल भाजपा के 21 जिला प्रमुख बने थे. हालांकि कांग्रेस भी ज्यादा पीछे नहीं थी और 12 जिला प्रमुख बनाने में कामयाब हुई थी. लेकिन इस बार सत्ता में होने के बावजूद कांग्रेस पार्टी भाजपा से पिछड़ गई और केवल पांच जगह ही अपने जिला प्रमुख बना सकी और भाजपा ने 13 जगह अपने जिला प्रमुख बनाने में कामयाब रही.
साल 2020 में अब तक 21 जिलों में ही पंचायत समिति सदस्यों के चुनाव हुए हैं. ऐसे में इन 21 जिलों में ही प्रधान का चुनाव हुआ है. प्रधान की बात करें तो साल 2005 में जब भाजपा सत्ता में थी तो उसके 124 प्रधान बने थे वहीं कांग्रेस पार्टी के 90 प्रधान बने. साल 2010 में जब कांग्रेस सत्ता में थी तो भाजपा के 72 प्रधान थे. और कांग्रेस के 159 प्रधान बने थे. इसी तरीके से साल 2015 में भाजपा बड़े बहुमत के साथ सरकार में आई थी तो भाजपा के 163 और कांग्रेस के 118 प्रधान बने थे.
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ऐसे में साफ है कि सत्ता में होने वाली पार्टी के प्रधान ज्यादा बनते हैं लेकिन फिर भी कांग्रेस पार्टी सत्ताधारी दल नहीं होने पर भी भाजपा से कोई खास पीछे नहीं थी. जबकि इस बार साल 2020 में हुए चुनाव में वह 98 प्रधान बना सकी है जो भाजपा के 98 प्रधानों के बराबर है. जिस तरह से पंचायत चुनाव कांग्रेस के लिए चौंकाने वाले थे तो स्थानीय निकाय चुनाव में इस बार भाजपा के लिए चौंकाने वाले परिणाम थे.
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हालांकि अभी 13 जिलों में ही यह स्थानीय निकाय चुनाव हुए हैं 20 जिलों में स्थानीय निकाय चुनाव अभी होने हैं. स्थानीय निकाय चुनाव में भाजपा सत्ता में हो या ना हो शहरों में भाजपा की ही सरकार बनी है. साल 2005 में कांग्रेस की राजस्थान में सरकार थी लेकिन स्थानीय निकाय चुनाव में जो नतीजे आए थे उसमें कांग्रेस के महज 31 सभापति और चेयरमैन बने थे तो भाजपा के 77 सभापति और चेयरमैन बने थे.
वहीं साल 2010 में कांग्रेस की सरकार थी तो कांग्रेस के 50 सभापति और चेयरमैन बने थे. इसी तरह से साल 2015 में भाजपा की राजस्थान में सरकार थी तो कांग्रेस के 36 सभापति और चेयरमैन बने थे वहीं भाजपा के 90 सभापति और चेयरमैन चुनाव जीत कर आए थे. साल 2020 में अभी 12 जिलों में चुनाव हुए हैं जिनमें 50 निकायों में से 36 पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की है, तो वहीं भाजपा के खाते में महज 12 स्थानीय निकाय आए हैं. ऐसे में भाजपा चाहे सत्ता में होती या नहीं होती उसे स्थानीय निकाय चुनाव में नतीजे बेहतर ही मिलते हैं लेकिन इस बार जो नतीजे आए हैं वह भाजपा के लिए भी हैरान करने वाले हैं.