जयपुर. राजस्थान में सरकार पर संकट एक सियासी web series की तरह हो गया है, जिसमें नए-नए Episode जुड़ते जा रहे हैं। राजनीतिक ड्रामे में पायलट खेमे की बगावत की कहानी का कांग्रेस के लिहाज से तब सुखद अंत हुआ जब सभी बागी सकुशल लौट आए और सरकार गिरते-गिरते बच गई. लेकिन अब नए Episode में कयास लगाए जा रहे हैं कि पायलट गुट जिन शर्तों पर लौटकर आया था, उन शर्तों पर अब तक गहलोत सरकार ने अमल नहीं किया है. मुख्यमंत्री गहलोत ने एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी पर उनकी सरकार को अस्थिर करने की साजिश करने का आरोप तो लगाया है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों को लगता है कि इन आरोपों के पीछे खुद गहलोत सरकार की नाकामी भी हो सकती है.
राजस्थान के पॉलिटिकल ड्रामे के नए Episode की शुरुआत मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने शनिवार को सिरोही के शिवगंज में बने कांग्रेस भवन के वर्चुअल उद्घाटन में की। इस कार्यक्रम में पार्टी के प्रदेश प्रभारी अजय माकन की मौजूदगी में गृह मंत्री अमित शाह को निशाने पर लेते हुए गहलोत ने आरोप दोहराया कि पिछली बार गृह मंत्री ने कांग्रेस के बागी विधायकों से एक घंटे तक वार्ता की थी और उन्हें कई तरह के प्रलोभन दिए थे. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर पहले भी मुख्यमंत्री गहलोत ये आरोप लगाते रहे हैं कि शाह कई राज्यों की गैर-भाजपा सरकारों को अस्थिर करने का षड्यंत्र कर रहे हैं. इस बार मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि महाराष्ट्र में भी भाजपा सत्ता पलट के षड्यंत्र में जुटी है.
सुलह और कलह की वजह
गहलोत की इस बयानबाजी से यह भी साफ हो रहा है कि राजस्थान में कांग्रेस के अंदर 'ऑल इज वेल' वाले हालात के दावे खोखले हैं. बीते कुछ महीनों पहले बागी होकर पार्टी से रूठे पायलट का भले ही गहलोत से सुलह हो गई हो, लेकिन पायलट जिन शर्तों पर पार्टी में लौटे थे क्या उन शर्तों पर अब तक प्रदेश की गहलोत सरकार या कांग्रेस आला कमान ने कोई काम किया है, इस पर संदेह है.
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राजस्थान में कांग्रेस की लड़ाई मुख्यमंत्री पद की है, ये बातें भी जाहिर रही हैं कि प्रदेश कांग्रेस गहलोत और पायलट दो खेमों में बंटी हुई है. बगावत छोड़कर लौटने के बाद चार महीने में अब तक सचिन पायलट को कोई पद मिला है और न ही उन 18 विधायकों को जो अपने पद और प्रतिष्ठा दोनों खो चुके हैं. हालात ये है कि विश्वेन्द्र सिंह और रमेश मीणा के कैबिनेट के पद गए तो मुकेश भाकर को यूथ कांग्रेस अध्यक्ष और राकेश पारीक को सेवादल के अध्यक्ष पद से हाथ खोना पड़ा, वे फिलहाल हाशिये पर दिखाई दे रहे हैं. बाकी बचे विधायकों में से कुछ को भले ही पंचायती राज चुनावों और निकाय चुनावों में पर्यवेक्षक के तौर पर जिम्मेदारी दी गई हो, लेकिन उनके पास करने को कुछ था नही.
इस पूरे प्रकरण के बीच ध्यान देने वाली बात ये भी है कि राजस्थान की सरकार को 17 दिसम्बर को दो साल पूरे होने जा रहे हैं. लेकिन अभी तक गहलोत सरकार में कैबिनेट विस्तार नहीं हो पाया है और न ही विधायकों को राजनीतिक नियुक्तियों के तौर पर एडजस्ट किया गया है. ऐसे में चिंता ये भी है कि कोई नया नाराज़ खेमा न बन जाए. गहलोत की मुश्किल ये है कि जो पायलट, विश्वेंद्र और रमेश मीणा समेत जो बागी विधायक लौटकर सरकार बचाने आए, उन्हें संतुष्ट करने के लिए सत्ता में भागीदारी देनी होगी, उधर, सियासी संकट काल में जो विधायक मुख्यमंत्री गहलोत के साथ लगातार लंबे अरसे तक बाड़ाबंदी में रहे और सरकार बचाने का काम किया, उन्हें भी कैबिनेट विस्तार से उम्मीदें हैं.
9 मंत्री बन सकते हैं पर गहलोत की NO
गौर करने वाली बात है कि गहलोत मंत्रिमण्डल में सचिन पायलट, रमेश मीणा और विश्वेन्द्र सिंह को पदों से बर्खास्त किए जाने और मंत्री मास्टर भंवरलाल मेघवाल के निधन के बाद गहलोत सरकार में मुख्यमंत्री समेत कुल 21 मंत्री हैं. इसमें 9 मंत्री समाहित किए जा सकते हैं. गहलोत मंत्रिमण्डल में जगह होने के बाद भी अब तक कैबिनेट का विस्तार नहीं होने के पीछे यही कहा जा रहा है कि गहलोत नहीं चाहते कि बर्खास्त मंत्रियों को फिर से कैबिनेट में हिस्सेदारी दी जाए. न ही उन विधायकों को जो गहलोत से नाराज होकर पायलट के साथ गये थे.ऐसे में कैबिनेट विस्तार में देरी का एक कारण ये भी है कि गहलोत लगातार जिन विधायकों को सरकार गिराने में भाजपा के षड्यंत्र का हिस्सा बताते रहे हैं, उन्हें वो अपनी कैबिनेट में हिस्सा कैसे दें.
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राजनीतिक अंकगणित
राजनीतिक अंकगणित की बात की जाए तो बसपा विधायकों के कांग्रेस में विलय के बाद कांग्रेस के विधायकों की संख्या 107 हो गई थी. 19 विधायकों के बगावत करने से ये संख्या घटकर 88 रह गई. जिसमें 10 निर्दलीय, 2 बीटीपी, 1 आरलडी और 2 माकपा के विधायकों को जोड़कर संख्या 103 हो गई थी. हालांकि बागियों के लौटने से जब दोनो खेमे मिल गए तो गहलोत को बहुमत साबित करने में दिक्कत नहीं आई, लेकिन कांग्रेस के दो विधायकों कैलाश त्रिवेदी और मास्टर भंवरलाल मेघवाल के निधन के बाद पार्टी सदस्यों की संख्या पहले से कम हो गई है.
गहलोत बिन राजस्थान अधूरा!
कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन होगा, इसे लेकर अभी भी सस्पेंस बना हुआ है. ऐसे में एक बात ये भी कही जा रही है कि वर्तमान हालात में अशोक गहलोत से विश्वसनीय नेता कांग्रेस और गांधी परिवार के पास नहीं है. जो ये पद सम्भाल सके. लेकिन गहलोत खुद राजस्थान मे रहना चाहते हैं. ऐसे में उन्होने कांग्रेस आलाकमान को संकेत भी दे दिए हैं कि उनके बिना राजस्थान में सरकार नहीं चल सकेगी. भाजपा षड्यंत्र कर उसे गिरा देगी.
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'पहले ही दिन से आपका छत्तीस का आंकड़ा था, आपने अपने छत्तीस के आंकड़े को छत्तीस बनाए रखा, असंतोष अंदर ही अंदर पनप रहा था, आपने सरकार बचाने के लिए जो आश्वासन दिए थे उन आश्वासनों को पूरा नहीं कर पाए. ऐसे में लावा विस्फोट होगा ही, अगर आपका घर सुरक्षित है तो दुनिया सुरक्षित है. आरोपों में कोई तुक नहीं है.'
-गुलाब चंद कटारिया, नेता प्रतिपक्ष एवं वरिष्ठ भाजपा नेता, राजस्थान