जयपुर. आमलकी एकादशी पर आंवला वृक्ष के पास बैठकर भगवान का पूजन कर, ब्राह्मणों को दक्षिणा देने की मान्यता है. शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार इस दिन ईश्वरीय शक्ति के प्रदाता अमृतफल आंवला वृक्ष की पूजा अर्चना करने से परम सौभाग्य मिलता है. आंवला एकादशी को सौभाग्य समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक माना जाता है. इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और उन्हें आंवला अर्पित किया जाता है. भक्त इसके बाद अपनी श्रद्धा के अनुसार दान पुण्य भी कर सकते हैं. एकादशी के दिन व्रत रखने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा भी प्राप्त होती है.
फाल्गुन के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी ग्यारस के रूप में जाना जाता है. इस वर्ष 2 मार्च को सुबह 6:00 बजकर 39 मिनट पर ग्यारस प्रारंभ होगी, जो 3 मार्च सुबह तक रहेगी. ग्यारस की तिथि खत्म होने के बाद ही एकादशी की व्रत का पारण किया जाएगा. आपको बता दें कि आंवला एकादशी के इस व्रत का खासतौर पर उत्तर भारत में विशेष रुझान है. राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में आमलकी एकादशी पर व्रत रखा जाता है.
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मारवाड़ के लोकगीतों में आंवला एकादशी- मारवाड़ के लोकगीतों में होली पर गाये जाने वाले गीतों में भी आमलकी एकादशी का विशेष रूप में उल्लेख किया गया है. प्रियतमाएं सांवरिया को होली खेलने के लिए आमंत्रित करने के साथ ही परदेस गए प्रीतम को होली के अवसर पर जल्दी बुलाने की गुहार लगाती हैं-"आंवळी ईगियारस माथै बेगौ आईजै रे के महीनों फागण रो"... "हां रे महीनो फागण रो, सांवरियां थारी ओळूं आवै रे, के महीनो फागण रो".
आमलकी एकादशी पर आंवले का सेवन शुभ- हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार आंवला एकादशी के दिन आमलकी का सेवन शुभ होता है. वहीं आयुर्वेद के अनुसार कई बीमारियों का समाधान नियमित आवली के सेवन से किया जा सकता है. सुपारी चटपटी बनाकर खाना आंवला खाने का एक आसान और पसंद किया जाने वाला तरीका है. इसका चटपटा स्वाद सबको भाता है. इसके अलावा आवला कैंडी की तरह आंवला सुपारी भी लंबे समय तक ख़राब नहीं होती है. आंवले का सेवन किसी भी तरीके से किए जाने से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और शरीर आसानी से बीमारियों की जद में नहीं आता है.