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भू-रूपांतरण के 13 साल बाद भी नहीं हुआ 103 बीघा जमीन का नियमन

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Published : Jul 29, 2020, 9:11 PM IST

जयपुर के रेनवाल कस्बे में 13 साल पहले 103 बीघा की चारागाह भूमि नगरपालिका के नाम हुई थी. लेकिन आज तक उस भूमि का नियमन तक नहीं कराया गया. अगर नगरपालिका उक्त भूमि को नियमन करे तो पालिका को करोड़ों रुपए की आय हो सकती है.

जयपुर समाचार, jaipur news
13 साल बाद भी नहीं हुआ 103 बीघा जमीन का नियमन

रेनवाल (जयपुर). जिले के रेनवाल कस्बे में 13 साल पहले 103 बीघा चारागाह भूमि नगरपालिका के नाम हुई थी. लेकिन आज तक भूमि का ना तो नियमन हुआ और ना ही अतिक्रमियों को हटाने की कार्रवाई हुई. सालों पहले ही इस पूरी चारागाह भूमि पर धीरे-धीरे अतिक्रमियों द्वारा अतिक्रमण कर लिया गया. जिसे ना तो राजस्व विभाग ने रोका और ना हीं नगरपालिका ने कोई हस्तक्षेप जताया.

जयपुर समाचार, jaipur news
13 साल बाद भी नहीं हुआ 103 बीघा जमीन का नियमन

दरअसल, साल 2007 में खारड़ा क्षेत्र की चारागाह भूमि को सरकार ने भू-रूपांतरण कर रेनवाल नगरपालिका के नाम कर दी. लेकिन नगरपालिका ने आज तक नियमन करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया. चारागाह भूमि आबादी में होने के बाद नगरपालिका ने पूरी चारागाह भूमि में मौजूदा स्थिति का नक्शा बनाया था. इस नक्शे को भी फरवरी 2013 में नगर नियोजक द्वारा स्वीकृत करा दिया गया. लेकिन इसके बावजूद भी नगरपालिका प्रशासन ने आगे कोई कार्रवाई नहीं की. जबकि इस प्रक्रिया में पालिका के लाखों रुपए खर्च हो गए.

पढ़ें- विशेष: राजस्थान में पुरानी है सत्ता के लिए संघर्ष की कहानी...सुनें- इतिहासकार की जुबानी...

वहीं, सरकार के नियमों के अनुसार सालों से 300 वर्ग गज पर काबिज लोगों को निर्धारित दर पर नियमन किया जा सकता है. इससे ज्यादा के कब्जों काे बोर्ड बैठक में प्रस्ताव लेकर अलग से दरें तय कर नियमन हो सकता है. साथ ही अधिक जमीन पर काबिज लोगों को बेदखल भी किया जा सकता है. लेकिन 6 साल बाद भी प्रशासन ने ना तो नियमन की कार्रवाई शुरू की और ना हीं बोर्ड नियमन का प्रस्ताव लेने की हिम्मत जुटा सका.

इसका मुख्य कारण है कि चारागाह भूमि पर सैकड़ों लोगों के अवैध कब्जे हैं, जिनमें कई रसूखदार हजार से अधिक वर्ग गज पर काबिज है. अगर नगरपालिका उक्त भूमि को नियमन करें तो पालिका को करोड़ों रुपए की आय हो सकती है. इस चारागाह से लगती भूमि पर आवासीय जमीन के भाव 2 से 3 हजार रुपए वर्ग गज है. जबकि दुकान के भाव 5 से 10 लाख रुपए प्रति दुकान है.

इस संबंध में नगर पालिका अधिशाषी अधिकारी नमन शर्मा का कहना है कि भूमि को नियमन के लिए बोर्ड में पहले प्रस्ताव रखा गया था. लेकिन बोर्ड में सहमति नहीं बनने पर प्रस्ताव पारित नहीं हो सका. अब नियमन के लिए सरकार से दिशा-निर्देश लिए जाएंगे.

रेनवाल (जयपुर). जिले के रेनवाल कस्बे में 13 साल पहले 103 बीघा चारागाह भूमि नगरपालिका के नाम हुई थी. लेकिन आज तक भूमि का ना तो नियमन हुआ और ना ही अतिक्रमियों को हटाने की कार्रवाई हुई. सालों पहले ही इस पूरी चारागाह भूमि पर धीरे-धीरे अतिक्रमियों द्वारा अतिक्रमण कर लिया गया. जिसे ना तो राजस्व विभाग ने रोका और ना हीं नगरपालिका ने कोई हस्तक्षेप जताया.

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13 साल बाद भी नहीं हुआ 103 बीघा जमीन का नियमन

दरअसल, साल 2007 में खारड़ा क्षेत्र की चारागाह भूमि को सरकार ने भू-रूपांतरण कर रेनवाल नगरपालिका के नाम कर दी. लेकिन नगरपालिका ने आज तक नियमन करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया. चारागाह भूमि आबादी में होने के बाद नगरपालिका ने पूरी चारागाह भूमि में मौजूदा स्थिति का नक्शा बनाया था. इस नक्शे को भी फरवरी 2013 में नगर नियोजक द्वारा स्वीकृत करा दिया गया. लेकिन इसके बावजूद भी नगरपालिका प्रशासन ने आगे कोई कार्रवाई नहीं की. जबकि इस प्रक्रिया में पालिका के लाखों रुपए खर्च हो गए.

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वहीं, सरकार के नियमों के अनुसार सालों से 300 वर्ग गज पर काबिज लोगों को निर्धारित दर पर नियमन किया जा सकता है. इससे ज्यादा के कब्जों काे बोर्ड बैठक में प्रस्ताव लेकर अलग से दरें तय कर नियमन हो सकता है. साथ ही अधिक जमीन पर काबिज लोगों को बेदखल भी किया जा सकता है. लेकिन 6 साल बाद भी प्रशासन ने ना तो नियमन की कार्रवाई शुरू की और ना हीं बोर्ड नियमन का प्रस्ताव लेने की हिम्मत जुटा सका.

इसका मुख्य कारण है कि चारागाह भूमि पर सैकड़ों लोगों के अवैध कब्जे हैं, जिनमें कई रसूखदार हजार से अधिक वर्ग गज पर काबिज है. अगर नगरपालिका उक्त भूमि को नियमन करें तो पालिका को करोड़ों रुपए की आय हो सकती है. इस चारागाह से लगती भूमि पर आवासीय जमीन के भाव 2 से 3 हजार रुपए वर्ग गज है. जबकि दुकान के भाव 5 से 10 लाख रुपए प्रति दुकान है.

इस संबंध में नगर पालिका अधिशाषी अधिकारी नमन शर्मा का कहना है कि भूमि को नियमन के लिए बोर्ड में पहले प्रस्ताव रखा गया था. लेकिन बोर्ड में सहमति नहीं बनने पर प्रस्ताव पारित नहीं हो सका. अब नियमन के लिए सरकार से दिशा-निर्देश लिए जाएंगे.

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