हनुमानगढ़. जिले के छोटे से गांव भैरूंसरी में किसान परिवार में पैदा हुई पांचों बेटियों ने आरएएस बनकर इतिहास रच दिया. इनमें दो बेटियों ने पहले और तीन बेटियों ने गत दिनों आरएएस 2018 के नतीजों में बाजी मारी. यह एक संदेश है समाज के लिए कि बेटियां किसी से कम नहीं.
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ग्रामीण परिवेश में संसाधनों की कमी के बावजूद बेटियों की ये सफलता समाज के लिए भी एक संदेश है. बेटियों के गांव पहुंचने पर ग्रामीणों ने भी पूरे जोश के साथ सबका स्वागत किया गया.
जिले के भैरूंसरी गांव में पली-बढ़ी इन पांच बेटियों ने 5वीं तक की पढ़ाई गांव में ही की. जिसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए गांव में स्कूल न होने के कारण पांचों बेटियों ने घर बैठकर ही पत्राचार से पढ़ाई की.
इन बेटियों के पिता सहदेव सहारण का सपना था कि पांचों बेटियां प्रशासनिक अधिकारी बनें और इस परिवार में 2010 में सबसे पहले रोमा सहारण आरएएस बनी जो वर्तमान में झुंझुनू जिले में बीडीओ के पद पर कार्यरत हैं. वहीं सबसे बड़ी बहन मंजू 2012 में आरएएस परीक्षा पास कर वर्तमान में सहकारिता विभाग में कार्यरत हैं. RAS 2018 के आए नतीजों में बाकी तीनों बहनें रितु ने 96वीं रैंक, अंशू ने 31वीं रैंक और सुमन ने 98वीं रैंक हासिल कर आरएएस बनकर इतिहास रच दिया.
खास बात यह भी है कि रितु, अंशू और सुमन के नाम के प्रारंभिक अक्षर भी आरएएस ही बनते हैं. आरएएस बनी तीनों बेटियों का कहना है कि प्रारंभिक सफर मुश्किल था, लेकिन उनके पिता चाहते थे कि तीनों बेटियां प्रशासनिक अधिकारी बनें. उन्होंने ही पांचों बेटियों को बचपन से इसके लिए प्रेरित किया.
जिले के ठेठ धोरों से निकली पांचों बेटियों की सफलता पर जहां पूरे गांव और हनुमानगढ़ जिले में खुशी का माहौल है वहीं, पिता सहदेव का कहना है कि वे बचपन से ही बेटियों को प्रशासनिक अधिकारी बनाना चाहते थे और गांव में 5वीं के बाद पढ़ाई की व्यवस्था नहीं होने के कारण उन्होंने बेटियों को घर पर ही पढ़ाई के लिए प्रेरित किया और अब पांचों के आरएएस बनने के बाद उनका सपना है कि वे गांव की 15 और बेटियों को प्रशासनिक अधिकारी बनाने के लिए प्रयास करेंगे.
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पांचों बेटियों की सफलता पर परिजनों और ग्रामीणों में भी खुशी का माहौल है. ग्रामीणों को इस बात की खुशी है कि संसाधनों के अभाव में भी बेटियों ने अपने सपनों को पूरा किया और बेटों से आगे निकली.
ग्रामीणों का कहना है कि ये सफलता सिर्फ पांच बेटियों की नहीं है बल्कि पूरे गांव और जिले की सफलता है. यह एक शुरूआत है जिससे अब गांव में अन्य बच्चों को भी प्रशासनिक अधिकारी बनने की प्रेरणा मिलेगी और भविष्य में गांव से कई बच्चे प्रशासनिक अधिकारी बनकर निकलेंगे.