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विश्व आदिवासी दिवसः अंग्रेजों की बर्बरता का सबूत है मानगढ़ धाम, 1500 आदिवासियों को गोलियों से भून दिया था

विश्व आदिवासी दिवस पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी प्रदेश में विधानसभा चुनाव का शंखनाद मानगढ़ धाम से करेंगे. यह वही जगह है जहां अंग्रेजों ने 1500 आदिवासियों को गोलियों से भून डाला था.

World Tribal Day on August 9, Rahul Gandhi to address public rally in Mangarh Dham, know its history
मानगढ़ पहाड़ी को घेर 1500 आदिवासियों को भूना था गोलियों से, विश्व आदिवासी दिवस पर राहुल गांधी उसी जगह से करेंगे चुनावी शंखनाद
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Published : Aug 8, 2023, 11:21 PM IST

Updated : Aug 9, 2023, 6:23 AM IST

डूंगरपुर. 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस है. देश ही नहीं दुनियाभर में आदिवासी समाज इस दिन को अपनी परंपरा, संस्कृति और लोककलाओं के साथ इसे मनाते हैं. विश्व आदिवासी दिवस को आदिवासियों के साथ मनाने के लिए लिए 9 अगस्त को कांग्रेस नेता राहुल गांधी और राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे बांसवाड़ा के मानगढ़ धाम आ रहे हैं. इसी जगह से राजस्थान में इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों का शंखनाद करते हुए आदिवासियों को साधने का प्रयास भी करेंगे.

मानगढ़ धाम इसलिए भी खास है क्योंकि हजारों आदिवासियों के शहादत का ये प्रमुख केंद्र है. राजस्थान ही नहीं गुजरात, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश क्षेत्र के आदिवासियों का भी ये धार्मिक स्थल बन चुका है. आदिवासी समाज की मानगढ़ के स्मारक से भावनाएं जुड़ी हैं. मानगढ़ धाम का इतिहास उतना ही पुराना भी है. 110 साल पहले 1913 में इसी मानगढ़ धाम की पहाड़ी पर 1500 आदिवासियों को अंग्रेजों ने घेरा डालकर गोलियों से भून दिया था. जबकि कई आदिवासियों को पकड़कर अंग्रेजों ने जेल में डाल दिया.

पढ़ें: विश्व आदिवासी दिवस पर कांग्रेस का चुनावी बिगुल, राहुल गांधी की 3 राज्यों की एसटी सीटों पर नजर, क्या मानगढ़ धाम को कांग्रेस बनाएगी मुद्दा

गोविंद गुरु ने आदिवासी समुदाय को एकजुट करने का किया था प्रयासः मानगढ़ धाम भील आदिवासियों के अदम्य साहस और एकता का परिचय देता है. जिसकी वजह से अंग्रेजों को नाकों चने चबाने पड़े. भील आदिवासियों के नेता गोविंद गुरु की अगुवाई के कारण ये क्रांति शुरू हुई. उनका जीवन भील समुदाय के लिए रहा. इस ऐतिहासिक विद्रोह में भीलों के निशाने पर केवल अंग्रेज थे जो लगातार इन आदिवासियों पर जुल्म ढाह रहे थे. तब उन्होंने लोगों को एकजुट करना शुरू किया. वे बस्तियों में जाते और जागरुकता पैदा करते. साथ ही सामाजिक सुधार और चेतना का संदेश भी देते. उन्होंने बच्चों की शिक्षा के स्कूल खोलने की कोशिश की. गोविंद गुरु अपने लोगों को एक ही बात समझाते थे कि ना तो जुल्म करो और ना इसे सहो. अपनी मिट्टी से प्यार करो.

कविताओं के जरिए किया जागरुकता फैलाने का कामः सामाजिक जागरुकता फैलाने के लिए गोविंद गुरु ने कई कविताएं लिखीं. जिसे खुद गाते और समूह के साथ उन्हें गाया जाता. कविताओं और गीतों से आदिवासी एकजुट होने लगे, असर बढ़ने लगा. दक्षिणी राजस्थान, गुजरात और मालवा के आदिवासी संगठित होकर बड़ी जनशक्ति बन गए. जनाधार को बढ़ाने के बाद गोविंद गुरु ने वर्ष 1883 में ’संप सभा’ की स्थापना की. भील समुदाय की भाषा में संप का अर्थ होता है भाईचारा, एकता और प्रेम. संप सभा का पहला अधिवेशन वर्ष 1903 में हुआ.

पढ़ें: Rajasthan Politics : आदिवासियों को साधने राहुल गांधी आएंगे मानगढ़ धाम, रंधावा बोले- कमजोर सीटों पर जिताऊ प्रत्याशी उतारे जाएंगे

आदिवासियों की एकजुटता खतरे के तौर पर देखी जाने लगीः गोविंद गुरु राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश के आदिवासियों को शिक्षित बनाकर देश की मुख्य आवाज बनाना चाहते थे. एक ओर उनके नेतृत्व में आदिवासी जागरूक हो रहे थे, तो दूसरी ओर अंग्रेजी हुकूमत को लगने लगा कि अगर आदिवासी एकजुट होंगे, तो ये किसी खतरे की तरह होगा. इसलिए अंग्रेज तक उनसे नाराज रहने लगे. गोविंद गुरु के कहने पर आदिवासियों ने शराब पीना बंद कर दिया.

पढ़ें: 'मानगढ़' को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा नहीं, PM ने की सीएम गहलोत की तारीफ...लेकिन डिमांड को किया नजरअंदाज

सभा करने गए तो वहां अंग्रेज सेना लेकर आ गएः 7 दिसंबर, 1908 को संप सभा का वार्षिक अधिवेशन बांसवाड़ा जिला मुख्यालय से 70 किलोमीटर दूर मानगढ़ में हुआ. इसमें हजारों लोग शामिल हुए. 1913 में गोविंद गुरु की अगुवाई में आदिवासी फिर राशन-पानी लेकर वहां जुटे. इसे देखकर विरोधियों ने अफवाह फैला दी कि ये सभी विद्रोह करके रियासतों पर कब्जा करना चाहते हैं. तब अंग्रेज सेना लेकर 10 नवंबर, 1913 को मानगढ़ पहाड़ी के पास पहुंची. सेना पहाड़ी से कुछ दूर पर ठहर गई.

शहादत की याद में मानगढ़ पहाड़ी पर पत्थरों से बनवाया स्मारक: अग्रेजों ने 17 नवंबर, 1913 को मानगढ़ पहुंचते ही फायरिंग शुरू कर दी. आदिवासी मरने लगे. एक के बाद एक कुल 1500 आदिवासी मारे गए. गोविंद गुरु के पैर में गोली लगी. उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. इसके बाद फांसी की सजा सुनाई गई. बाद में फांसी को आजीवन कारावास में बदल दिया गया. अच्छे चाल-चलन के कारण सन 1923 में उन्हें रिहा कर दिया गया. रिहा होने के बाद वे गुजरात के पंचमहल जिला के कंबोई गांव में रहने लगे. जिंदगी के अंतिम दिनों तक वह जन-कल्याण के काम में लगे रहे. 1931 में उनका निधन हो गया. उन 1500 आदिवासियों की शहादत की याद में मानगढ़ पहाड़ी पर पत्थरों से एक स्मारक बनवाया गया है.

डूंगरपुर. 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस है. देश ही नहीं दुनियाभर में आदिवासी समाज इस दिन को अपनी परंपरा, संस्कृति और लोककलाओं के साथ इसे मनाते हैं. विश्व आदिवासी दिवस को आदिवासियों के साथ मनाने के लिए लिए 9 अगस्त को कांग्रेस नेता राहुल गांधी और राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे बांसवाड़ा के मानगढ़ धाम आ रहे हैं. इसी जगह से राजस्थान में इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों का शंखनाद करते हुए आदिवासियों को साधने का प्रयास भी करेंगे.

मानगढ़ धाम इसलिए भी खास है क्योंकि हजारों आदिवासियों के शहादत का ये प्रमुख केंद्र है. राजस्थान ही नहीं गुजरात, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश क्षेत्र के आदिवासियों का भी ये धार्मिक स्थल बन चुका है. आदिवासी समाज की मानगढ़ के स्मारक से भावनाएं जुड़ी हैं. मानगढ़ धाम का इतिहास उतना ही पुराना भी है. 110 साल पहले 1913 में इसी मानगढ़ धाम की पहाड़ी पर 1500 आदिवासियों को अंग्रेजों ने घेरा डालकर गोलियों से भून दिया था. जबकि कई आदिवासियों को पकड़कर अंग्रेजों ने जेल में डाल दिया.

पढ़ें: विश्व आदिवासी दिवस पर कांग्रेस का चुनावी बिगुल, राहुल गांधी की 3 राज्यों की एसटी सीटों पर नजर, क्या मानगढ़ धाम को कांग्रेस बनाएगी मुद्दा

गोविंद गुरु ने आदिवासी समुदाय को एकजुट करने का किया था प्रयासः मानगढ़ धाम भील आदिवासियों के अदम्य साहस और एकता का परिचय देता है. जिसकी वजह से अंग्रेजों को नाकों चने चबाने पड़े. भील आदिवासियों के नेता गोविंद गुरु की अगुवाई के कारण ये क्रांति शुरू हुई. उनका जीवन भील समुदाय के लिए रहा. इस ऐतिहासिक विद्रोह में भीलों के निशाने पर केवल अंग्रेज थे जो लगातार इन आदिवासियों पर जुल्म ढाह रहे थे. तब उन्होंने लोगों को एकजुट करना शुरू किया. वे बस्तियों में जाते और जागरुकता पैदा करते. साथ ही सामाजिक सुधार और चेतना का संदेश भी देते. उन्होंने बच्चों की शिक्षा के स्कूल खोलने की कोशिश की. गोविंद गुरु अपने लोगों को एक ही बात समझाते थे कि ना तो जुल्म करो और ना इसे सहो. अपनी मिट्टी से प्यार करो.

कविताओं के जरिए किया जागरुकता फैलाने का कामः सामाजिक जागरुकता फैलाने के लिए गोविंद गुरु ने कई कविताएं लिखीं. जिसे खुद गाते और समूह के साथ उन्हें गाया जाता. कविताओं और गीतों से आदिवासी एकजुट होने लगे, असर बढ़ने लगा. दक्षिणी राजस्थान, गुजरात और मालवा के आदिवासी संगठित होकर बड़ी जनशक्ति बन गए. जनाधार को बढ़ाने के बाद गोविंद गुरु ने वर्ष 1883 में ’संप सभा’ की स्थापना की. भील समुदाय की भाषा में संप का अर्थ होता है भाईचारा, एकता और प्रेम. संप सभा का पहला अधिवेशन वर्ष 1903 में हुआ.

पढ़ें: Rajasthan Politics : आदिवासियों को साधने राहुल गांधी आएंगे मानगढ़ धाम, रंधावा बोले- कमजोर सीटों पर जिताऊ प्रत्याशी उतारे जाएंगे

आदिवासियों की एकजुटता खतरे के तौर पर देखी जाने लगीः गोविंद गुरु राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश के आदिवासियों को शिक्षित बनाकर देश की मुख्य आवाज बनाना चाहते थे. एक ओर उनके नेतृत्व में आदिवासी जागरूक हो रहे थे, तो दूसरी ओर अंग्रेजी हुकूमत को लगने लगा कि अगर आदिवासी एकजुट होंगे, तो ये किसी खतरे की तरह होगा. इसलिए अंग्रेज तक उनसे नाराज रहने लगे. गोविंद गुरु के कहने पर आदिवासियों ने शराब पीना बंद कर दिया.

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सभा करने गए तो वहां अंग्रेज सेना लेकर आ गएः 7 दिसंबर, 1908 को संप सभा का वार्षिक अधिवेशन बांसवाड़ा जिला मुख्यालय से 70 किलोमीटर दूर मानगढ़ में हुआ. इसमें हजारों लोग शामिल हुए. 1913 में गोविंद गुरु की अगुवाई में आदिवासी फिर राशन-पानी लेकर वहां जुटे. इसे देखकर विरोधियों ने अफवाह फैला दी कि ये सभी विद्रोह करके रियासतों पर कब्जा करना चाहते हैं. तब अंग्रेज सेना लेकर 10 नवंबर, 1913 को मानगढ़ पहाड़ी के पास पहुंची. सेना पहाड़ी से कुछ दूर पर ठहर गई.

शहादत की याद में मानगढ़ पहाड़ी पर पत्थरों से बनवाया स्मारक: अग्रेजों ने 17 नवंबर, 1913 को मानगढ़ पहुंचते ही फायरिंग शुरू कर दी. आदिवासी मरने लगे. एक के बाद एक कुल 1500 आदिवासी मारे गए. गोविंद गुरु के पैर में गोली लगी. उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. इसके बाद फांसी की सजा सुनाई गई. बाद में फांसी को आजीवन कारावास में बदल दिया गया. अच्छे चाल-चलन के कारण सन 1923 में उन्हें रिहा कर दिया गया. रिहा होने के बाद वे गुजरात के पंचमहल जिला के कंबोई गांव में रहने लगे. जिंदगी के अंतिम दिनों तक वह जन-कल्याण के काम में लगे रहे. 1931 में उनका निधन हो गया. उन 1500 आदिवासियों की शहादत की याद में मानगढ़ पहाड़ी पर पत्थरों से एक स्मारक बनवाया गया है.

Last Updated : Aug 9, 2023, 6:23 AM IST
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