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स्पेशल: यहां डॉक्टरों के खाली पद भरने में नाकाम सरकार की नई तरकीब, भगवान भरोसे चल रहे कई अस्पताल

आदिवासी बहुल डूंगरपुर जिले में चिकित्सा सेवाएं लड़खड़ाती नजर आ रही है. इसकी वजह जिले में डॉक्टरों के खाली पद. यहां 100 से ज्यादा डॉक्टरों के पद खाली पड़े हैं. यहां तक कि कई अस्पताल तो बिना डॉक्टरों के ही नर्सिंग स्टाफ के भरोसे ही चल रहे हैं. लेकिन इन सब से निजात पाने के लिए सरकार ने एक तरकीब जरूर निकाली है, देखिए डूंगरपुर से स्पेशल रिपोर्ट...

Recruitment of temporary doctors, डूंगरपुर में डॉक्टरों की कमी
डूंगरपुर में डॉक्टरों के खाली पद भरने में नाकाम सरकार की नई तरकीब
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Published : Dec 4, 2019, 3:10 PM IST

डूंगरपुर. जिले में लोगों को सुलभ चिकित्सा सेवाओं के लिए सरकार की ओर से ग्रामीण क्षेत्रों में 74 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खोले गए. इनमें डॉक्टरों के करीब 193 पद भी स्वीकृत हैं, जबकि खाली पदों की बहुत ही लंबी सूची है. जिले में स्वीकृत डॉक्टरों के पदों के मुकाबले आधे से ज्यादा 56 प्रतिशत पद खाली है. कार्यरत डॉक्टर केवल 84 ही हैं. ऐसे हालात में जिले में कई अस्पताल बिना डॉक्टरों के ही चल रहे हैं.

डूंगरपुर में डॉक्टरों के खाली पद भरने में नाकाम सरकार की नई तरकीब

आइए जानते हैं क्या है खाली पदों की स्थिति...

जिले में डॉक्टरों के पदों पर नजर दौड़ाया जाए तो सबसे ज्यादा खाली पद चिकित्सा अधिकारियों के है. जिले में 120 चिकित्सा अधिकारियों के पद स्वीकृत हैं. लेकिन इसके मुकाबले 73 कार्यरत हैं और 47 पद खाली पड़े हैं. इस वजह से अस्पतालों में डॉक्टर तक नहीं मिलते. वहीं विशेषज्ञ डॉक्टरों की बात करें तो जिले में इनकी संख्या न के बराबर है.

पढ़ें- स्पेशल स्टोरी: 24 घंटे डर के साए में जीते हैं सरिस्का के जंगलों में रहने वाले लोग, गांव में पहली बार पहुंचा ईटीवी का कैमरा

कनिष्ठ विशेषज्ञ डॉक्टरों 44 पद खाली...

वहीं डूंगरपुर में कनिष्ठ विशेषज्ञ डॉक्टरों के 47 पद स्वीकृत हैं. लेकिन उसकी जगह केवल 3 डॉक्टर ही पूरे जिले में कार्यरत हैं और 44 पद खाली पड़े हैं. इसी तरह वरिष्ठ विशेषज्ञ चिकित्सा अधिकारी के 17 पद स्वीकृत हैं और केवल 4 डॉक्टर कार्यरत हैं. जबकि 13 पद खाली पड़े हैं. इसके अलावा दंत रोग चिकित्सा अधिकारी के 5 स्वीकृत पदों की जगह केवल 1 डॉक्टर ही है और 4 पद खाली है. लेकिन इन पदों को भरने के लिए न तो यहां के जनप्रतिनिधियों ने कोई पैरवी की और न ही सरकार डॉक्टरो को लगा पाई. ऐसे में मरीज इलाज के लिए तड़पते रहे.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: जालोर में 1 करोड़ की लागत से बनी धर्मशाला को पीएमओ ने बनाया दफ्तर...तिमारदार ठंड में खुले आसमान तले सोने को मजबूर

मेडिसिन और सर्जरी विशेषज्ञों के 15-15 पद खाली...

जिले में विशेषज्ञ डॉक्टर न के बराबर हैं. लेकिन इसमें भी मेडिसिन और सर्जरी के डिपार्टमेंट ही खाली है. सीएचसी दामडी, पुराना अस्पताल डूंगरपुर, बिछीवाड़ा, गेंजी, गामड़ी अहाड़ा, सीमलवाड़ा, गलियाकोट, चिखली, डूंगरसारण, आसपुर, पूंजपुर, साबला, ओबरी, सरोदा और बुचियाबड़ा बड़ा अस्पताल खुलने के बाद से ही इनमें कभी भी विशेषज्ञ डॉक्टर ही नहीं लगे हैं. इसके अलावा नेत्र रोग के 2, स्त्री रोग विशेषज्ञ के 5, शिशु रोग विशेषज्ञ के 5 और एनेस्थिसिया के 2 डॉक्टरों के पद खाली हैं.

यहां तो डॉक्टर ही खाली, नर्सिंग स्टाफ के भरोसे अस्पताल...

जिले के 6 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ऐसे हैं. जहां एक भी डॉक्टर ही नहीं है और वहां नर्सिंग स्टाफ के भरोसे ही चिकित्सा सेवाएं चल रही है. ऐसे अस्पताल सकानी, डूंगर, बौखला, ठाकरडा, मुंगेड और चुंडावाड़ा है, जहां डॉक्टर नहीं है. ऐसे में इन गांवों के मरीज आसपास के किसी अस्पताल या फिर जिला मुख्यालय पर ही जाते हैं.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: नर्मदा नहर से असिंचित क्षेत्र के किसानों को नहीं मिल रहा पानी... गुस्साए किसानों ने दी चेतावनी

सरकार की यह पहल कितनी कारगर, हर सोमवार को इंटरव्यू दो और भर्ती हो जाओ...

सरकार आदिवासी जिले में डॉक्टरों के खाली पद नहीं भर पाई. लेकिन अब इन पदों को वॉक इन इंटरव्यू के जरिये भरने के प्रयास किये जा रहे हैं. टीएसपी एरिया खासकर डूंगरपुर, बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ जिले जहां दूर-दराज के अस्पतालों में कोई भी डॉक्टर जाने को तैयार नहीं है. ऐसी ही जगहों पर सरकार अब वॉक इन इंटरव्यू के जरिये अस्थाई डॉक्टरों की भर्ती करने के आदेश दिए हैं.

एमबीबीएस डॉक्टरों के सीधे ही वॉक इन इंटरव्यू...

वहीं सीएमएचओ डॉक्टर महेंद्र परमार ने बताया कि सरकार की ओर से वॉक इन इंटरव्यू के जरिये चिकित्सा अधिकारियों के पद भरने के आदेश मिले हैं, जिसके तहत जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया गया है. जो हर महीने एमबीबीएस डॉक्टरों के सीधे ही वॉक इन इंटरव्यू से भर्ती कर रहे हैं. हर सोमवार को डॉक्टरों के इंटरव्यू लिए जाते हैं और उनमें चयनित डॉक्टर को हाथों-हाथ नियुक्ति दी जा रही है. सीएमएचओ ने बताया कि अब तो 2 डॉक्टरों को इंटरव्यू के जरिये नियुक्ति दी गई है. जबकि 3 डॉक्टरों के आवेदन आये हुए हैं और जल्द ही उनको भी नियुक्ति के प्रयास किये जायेंगे.

पढ़ें- सीकर में नौनिहालों के पौष्टिक आहार पर लापरवाही की छाया, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

सरकार डॉक्टरों के खाली पदों को नहीं भर पाई, लेकिन अब देखना होगा कि सरकार की इस नई तरकीब से कितने डॉक्टर आते हैं और सरकार का यह नया तरीका कितना सफल होता है और मरीजों को राहत मिलती है. खैर जो भी होगा वह मरीजों के फायदे के लिए ही होगा.

डूंगरपुर. जिले में लोगों को सुलभ चिकित्सा सेवाओं के लिए सरकार की ओर से ग्रामीण क्षेत्रों में 74 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खोले गए. इनमें डॉक्टरों के करीब 193 पद भी स्वीकृत हैं, जबकि खाली पदों की बहुत ही लंबी सूची है. जिले में स्वीकृत डॉक्टरों के पदों के मुकाबले आधे से ज्यादा 56 प्रतिशत पद खाली है. कार्यरत डॉक्टर केवल 84 ही हैं. ऐसे हालात में जिले में कई अस्पताल बिना डॉक्टरों के ही चल रहे हैं.

डूंगरपुर में डॉक्टरों के खाली पद भरने में नाकाम सरकार की नई तरकीब

आइए जानते हैं क्या है खाली पदों की स्थिति...

जिले में डॉक्टरों के पदों पर नजर दौड़ाया जाए तो सबसे ज्यादा खाली पद चिकित्सा अधिकारियों के है. जिले में 120 चिकित्सा अधिकारियों के पद स्वीकृत हैं. लेकिन इसके मुकाबले 73 कार्यरत हैं और 47 पद खाली पड़े हैं. इस वजह से अस्पतालों में डॉक्टर तक नहीं मिलते. वहीं विशेषज्ञ डॉक्टरों की बात करें तो जिले में इनकी संख्या न के बराबर है.

पढ़ें- स्पेशल स्टोरी: 24 घंटे डर के साए में जीते हैं सरिस्का के जंगलों में रहने वाले लोग, गांव में पहली बार पहुंचा ईटीवी का कैमरा

कनिष्ठ विशेषज्ञ डॉक्टरों 44 पद खाली...

वहीं डूंगरपुर में कनिष्ठ विशेषज्ञ डॉक्टरों के 47 पद स्वीकृत हैं. लेकिन उसकी जगह केवल 3 डॉक्टर ही पूरे जिले में कार्यरत हैं और 44 पद खाली पड़े हैं. इसी तरह वरिष्ठ विशेषज्ञ चिकित्सा अधिकारी के 17 पद स्वीकृत हैं और केवल 4 डॉक्टर कार्यरत हैं. जबकि 13 पद खाली पड़े हैं. इसके अलावा दंत रोग चिकित्सा अधिकारी के 5 स्वीकृत पदों की जगह केवल 1 डॉक्टर ही है और 4 पद खाली है. लेकिन इन पदों को भरने के लिए न तो यहां के जनप्रतिनिधियों ने कोई पैरवी की और न ही सरकार डॉक्टरो को लगा पाई. ऐसे में मरीज इलाज के लिए तड़पते रहे.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: जालोर में 1 करोड़ की लागत से बनी धर्मशाला को पीएमओ ने बनाया दफ्तर...तिमारदार ठंड में खुले आसमान तले सोने को मजबूर

मेडिसिन और सर्जरी विशेषज्ञों के 15-15 पद खाली...

जिले में विशेषज्ञ डॉक्टर न के बराबर हैं. लेकिन इसमें भी मेडिसिन और सर्जरी के डिपार्टमेंट ही खाली है. सीएचसी दामडी, पुराना अस्पताल डूंगरपुर, बिछीवाड़ा, गेंजी, गामड़ी अहाड़ा, सीमलवाड़ा, गलियाकोट, चिखली, डूंगरसारण, आसपुर, पूंजपुर, साबला, ओबरी, सरोदा और बुचियाबड़ा बड़ा अस्पताल खुलने के बाद से ही इनमें कभी भी विशेषज्ञ डॉक्टर ही नहीं लगे हैं. इसके अलावा नेत्र रोग के 2, स्त्री रोग विशेषज्ञ के 5, शिशु रोग विशेषज्ञ के 5 और एनेस्थिसिया के 2 डॉक्टरों के पद खाली हैं.

यहां तो डॉक्टर ही खाली, नर्सिंग स्टाफ के भरोसे अस्पताल...

जिले के 6 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ऐसे हैं. जहां एक भी डॉक्टर ही नहीं है और वहां नर्सिंग स्टाफ के भरोसे ही चिकित्सा सेवाएं चल रही है. ऐसे अस्पताल सकानी, डूंगर, बौखला, ठाकरडा, मुंगेड और चुंडावाड़ा है, जहां डॉक्टर नहीं है. ऐसे में इन गांवों के मरीज आसपास के किसी अस्पताल या फिर जिला मुख्यालय पर ही जाते हैं.

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सरकार की यह पहल कितनी कारगर, हर सोमवार को इंटरव्यू दो और भर्ती हो जाओ...

सरकार आदिवासी जिले में डॉक्टरों के खाली पद नहीं भर पाई. लेकिन अब इन पदों को वॉक इन इंटरव्यू के जरिये भरने के प्रयास किये जा रहे हैं. टीएसपी एरिया खासकर डूंगरपुर, बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ जिले जहां दूर-दराज के अस्पतालों में कोई भी डॉक्टर जाने को तैयार नहीं है. ऐसी ही जगहों पर सरकार अब वॉक इन इंटरव्यू के जरिये अस्थाई डॉक्टरों की भर्ती करने के आदेश दिए हैं.

एमबीबीएस डॉक्टरों के सीधे ही वॉक इन इंटरव्यू...

वहीं सीएमएचओ डॉक्टर महेंद्र परमार ने बताया कि सरकार की ओर से वॉक इन इंटरव्यू के जरिये चिकित्सा अधिकारियों के पद भरने के आदेश मिले हैं, जिसके तहत जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया गया है. जो हर महीने एमबीबीएस डॉक्टरों के सीधे ही वॉक इन इंटरव्यू से भर्ती कर रहे हैं. हर सोमवार को डॉक्टरों के इंटरव्यू लिए जाते हैं और उनमें चयनित डॉक्टर को हाथों-हाथ नियुक्ति दी जा रही है. सीएमएचओ ने बताया कि अब तो 2 डॉक्टरों को इंटरव्यू के जरिये नियुक्ति दी गई है. जबकि 3 डॉक्टरों के आवेदन आये हुए हैं और जल्द ही उनको भी नियुक्ति के प्रयास किये जायेंगे.

पढ़ें- सीकर में नौनिहालों के पौष्टिक आहार पर लापरवाही की छाया, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

सरकार डॉक्टरों के खाली पदों को नहीं भर पाई, लेकिन अब देखना होगा कि सरकार की इस नई तरकीब से कितने डॉक्टर आते हैं और सरकार का यह नया तरीका कितना सफल होता है और मरीजों को राहत मिलती है. खैर जो भी होगा वह मरीजों के फायदे के लिए ही होगा.

Intro:डूंगरपुर। आदिवासी बहुल डूंगरपुर जिले में चिकित्सा सेवाएं लड़खड़ाती नजर आ रही है और इसकी वजह है जिले में डॉक्टरों के खाली पद और वह भी 1 या 2 नहीं बल्कि 100 से ज्यादा डॉक्टरों के पद खाली पड़े है। यहां तक कि कई अस्पताल तो बिना डॉक्टरों के ही नर्सिंग स्टाफ के भरोसे ही चल रहे है। सरकार डॉक्टरो के इन खाली पदों को तो भरने में तो नाकाम रही, लेकिन एक तरकीब जरूर निकाली है, जिससे की डॉक्टर आये और सीधे अपना इंटरव्यू देकर जॉइन करें, लेकिन देखना होगा कि सरकार की यह स्कीम भी कितनी कारगर साबित होती है।


Body:डूंगरपुर जिले में लोगों को सुलभ चिकित्सा सेवाओं के लिए सरकार की ओर से ग्रामीण क्षेत्रों में 74 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खोले गए। जिनमे डॉक्टरों के करीब 193 पद भी स्वीकृत है, जबकि खाली पदों की बहुत ही लंबी सूची है। जिले में स्वीकृत डॉक्टरों के पदों के मुकाबले आधे से ज्यादा 56 प्रतिशत पद खाली है। कार्यरत डॉक्टर केवल 84 ही है। ऐसे हालात में जिले में कई अस्पताल बिना डॉक्टरों के ही चल रहे है।

- आइये जानते है क्या है खाली पदों की स्थिति
जिले में डॉक्टरों के पदों पर नजर दौड़ाए तो सबसे ज्यादा खाली पद चिकित्सा अधिकारियों के है। जिले में 120 चिकित्सा अधिकारियों के पद स्वीकृत है लेकिन इसके मुकाबले 73 कार्यरत है और 47 पद खाली पड़े है। इसी की वजह से अस्पतालों में डॉक्टर तक नहीं मिलते।
वहीं विशेषज्ञ डॉक्टरों की बात करे तो जिले में इनकी संख्या नहीं के बराबर है। डूंगरपुर में कनिष्ठ विशेषज्ञ डॉक्टरों के 47 पद स्वीकृत है, लेकिन उसकी जगह केवल 3 डॉक्टर ही पूरे जिले में कार्यरत है और 44 पद खाली पड़े है। इसी तरह वरिष्ठ विशेषज्ञ चिकित्सा अधिकारी के 17 पद स्वीकृत है और केवल 4 डॉक्टर कार्यरत है, जबकि 13 पद खाली पड़े है। इसके अलावा दंत रोग चिकित्सा अधिकारी के 5 स्वीकृत पदों की जगह केवल 1 डॉक्टर ही है और 4 पद खाली है। लेकिन इन पदों को भरने के लिए न तो यहां के जनप्रतिनिधियों ने कोई पैरवी की और न ही सरकार डॉक्टरो को लगा पाई। ऐसे में मरीज इलाज के लिए तड़पते रहे।

- मेडिसिन और सर्जरी विशेषज्ञों के 15-15 पद खाली
जिले में विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं के बराबर है, लेकिन इसमें भी मेडिसिन और सर्जरी के डिपार्टमेंट ही खाली है। सीएचसी दामडी, पुराना अस्पताल डूंगरपुर, बिछीवाड़ा, गेंजी, गामड़ी अहाड़ा, सीमलवाड़ा, गलियाकोट, चिखली, डूंगरसारण, आसपुर, पूंजपुर, साबला, ओबरी, सरोदा और बुचियाबड़ा बड़ा अस्पताल खुलने के बाद से ही इनमें कभी भी विशेषज्ञ डॉक्टर ही नही लगे है। इसके अलावा नेत्र रोग के 2, स्त्री रोग विशेषज्ञ के 5, शिशु रोग विशेषज्ञ के 5 और एनेस्थिसिया के 2 डॉक्टरो के पद खाली है।

- यहां तो डॉक्टर ही खाली, नर्सिंग स्टाफ के भरोसे अस्पताल
जिले के 6 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ऐसे है जहां एक भी डॉक्टर ही नही है और वहां नर्सिंग स्टाफ के भरोसे ही चिकित्सा सेवाएं चल रहे है। ऐसे अस्पताल सकानी, डूंगर, बौखला, ठाकरडा, मुंगेड और चुंडावाड़ा है, जहां डॉक्टर नहीं है। ऐसे में इन गांवों के मरीज आसपास के किसी अस्पताल या फिर जिला मुख्यालय पर ही जाते है।

- सरकार की यह पहल कितनी कारगर, हर सोमवार को इंटरव्यू दो और भर्ती हो जाओ
सरकार आदिवासी जिले में डॉक्टरों के खाली पद नहीं भर पाई लेकिन अब इन पदों को वॉक इन इंटरव्यू के जरिये भरने के प्रयास किये जा रहे है। टीएसपी एरिया खासकर डूंगरपुर, बांसवाडा और प्रतापगढ़ जिले जहां दूर-दराज के अस्पतालों में कोई भी डॉक्टर जाने को तैयार नहीं है। ऐसी ही जगहों पर सरकार अब वॉक इन इंटरव्यू के जरिये अस्थाई डॉक्टरों की भर्ती करने के आदेश दिए है।
सीएमएचओ डॉक्टर महेंद्र परमार ने बताया कि सरकार की ओर से वॉक इन इंटरव्यू के जरिये चिकित्सा अधिकारियों के पद भरने के आदेश मिले है। जिसके तहत जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया गया है जो हर महीने एमबीबीएस डॉक्टरों के सीधे ही वॉक इन इंटरव्यू से भर्ती कर रहे है। हर सोमवार को डॉक्टरों के इंटरव्यू लिए जाते है और उनमें चयनित डॉक्टर को हाथों-हाथ नियुक्ति दी जा रही है। सीएमएचओ ने बताया कि अब तो 2 डॉक्टरो को इंटरव्यू के जरिये नियुक्ति दी गई है, जबकि 3 डॉक्टरो के आवेदन आये हुए है और जल्द ही उनको भी नियुक्ति के प्रयास किये जायेंगे।


Conclusion:सरकार डॉक्टरो के खाली पदों को नहीं भर पाई, लेकिन अब देखना होगा कि सरकार की इस नई तरकीब से कितने डॉक्टर आते है और सरकार का यह नया तरीका कितना सफल होता है और मरीजो को राहत मिलती है। खैर जो भी होगा वह मरीजो के फायदे के लिए ही होगा।

बाईट: डॉ महेंद्र परमार, सीएमएचओ डूंगरपुर।
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