डूंगरपुर. हम सभी ने अंग्रेजों के जमाने के जेलर और जेल फिल्मों में बहुत देखा होगा. ऐसी ही एक पुलिस चौकी है, जो वास्तविक में अंग्रेजों के जमाने की ही बनी है और आजादी के इतने सालों बाद यहां कुछ भी नहीं बदला है. आजादी के पहले वाली इस पुलिस चौकी की दीवारें भी अब जर्जर होने लगी है. जी हां, हम बात कर रहे हैं आदिवासी बाहुल्य डूंगरपुर जिले की मेवाड़ा पुलिस चौकी की, जो आज भी बिल्कुल वैसी ही है, जैसे अंग्रेजों के जमाने में हुई करती थी. दो कमरों के पुराने केलूपोश घर में संचालित मेवाड़ा चौकी की हालत जानने के लिए ईटीवी भारत वहां तैनात पुलिस अधिकारियों से भी बात की.
जानकारी के अनुसार इस चौकी की स्थापना साल 1947 के करीब हुई थी. यह चौकी पहले बिछीवाड़ा थाना क्षेत्र में आती थी, लेकिन करीब 8 साल पहले रामसागड़ा थाना बनने के बाद यह चौकी अब उसी में आती है. गुजरात बॉर्डर से नजदीक होने के कारण इस चौकी का महत्व और भी बढ़ जाता है. यह पुलिस चौकी मेवाड़ा गांव के बीचो-बीच घनी आबादी वाले क्षेत्र में स्थित है. लेकिन चौकी के दूसरी तरफ खेतीबाड़ी की जमीन है. यह चौकी आज भी मिट्टी की दीवारों से बने दो कमरों में चल रही है.
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इसकी छत भी बांस, नीलगिरी या सागवान की लकड़ियों के डांडे और पाट (लकड़ी का मोटा व लंबा बिम्ब) के साथ ही मिट्टी से बने कवेलू से ही ढकी हुई है. इस चौकी में एक हेड कांस्टेबल और 4 कांस्टेबल के पद स्वीकृत है, जिसमें से एक चौकी प्रभारी और हेड कांस्टेबल सहित 3 पद भरे हुए है. वहीं, चौकी के एक कमरे में वायरलैस सिस्टम लगा हुआ है और यही इन पुलिसकर्मियों का बैठक रूम भी है. वहीं, चौकी का दूसरा कमरा मेस (रसोई) है, जहां पुलिसकर्मियों के लिए खाना बनता है. इसके अलावा बाहर की तरह एक खुला बरामदा है, तो अंग्रेजों के जमाने की बनी हुई एक बैरक भी है.
इस पुलिस चौकी में पुलिसकर्मियों के लिए एक आवासीय क्वॉर्टर भी है और यह भी उसी दौरान की मिट्टी और केलु से बनी हुई है. इन जर्जर हो रही दीवारों से बारिश का पानी भी टपकता है. जब ईटीवी भारत ने पुलिस चौकी को लेकर वहां तैनात पुलिसकर्मियों से बातचीत की तो उनका कहना था कि चौकी की दीवारें पुरानी और अंग्रेजों के जमाने के समय की होने के कारण भवन काफी जर्जर हो चुकी है. कई जगह पर तो दरारें आ गई है. खासकर बारिश के मौसम में भी परेशानी झेलनी पड़ती है, जब बारिश का पानी छत से टपकता है. उस दौरान तो चौकी में बैठना भी मुश्किल भरा हो जाता है.
पुलिसकर्मियों ने बताया कि चौकी के वायरलैस सेट को भी एक कोने में पॉलीथिन से ढककर रखना पड़ता है. वहीं, बारिश के दौर में जहरीले जीवों के आने का डर भी हमेशा बना रहता है. यहां कई अधिकारी आए और बदले, लेकिन अंग्रेजों के जमाने की यह चौकी आज तक नहीं बदली. इस बीच कई आईपीएस, आरपीएस और थानाधिकारियों ने भी इस चौकी का निरीक्षण किया. लेकिन आज भी यहां किसी प्रकार के कोई बदलाव देखने को नहीं मिले. जबकि जिले में अन्य कई पुलिस चौकियों के सूरत बदल चुकी है.
नए भवन का इंतजार
बता दें कि मेवाड़ा पुलिस चौकी के लिए बजट पारित हो चुका है. इसके नवनिर्माण को लेकर मेवाड़ गांव में ही मुख्य सड़क के किनारे जमीन का आवंटन भी हो चुका है. इसके लिए जिला पुलिस अधीक्षक कार्यालय की ओर से बजट प्रस्ताव भी पुलिस मुख्यालय को भेजा जा चुका है.
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एसपी जय यादव ने बताया कि मेवाड़ा चौकी के लिए 52 लाख रुपये का बजट आवंटित हो चुका है. इसके अलावा 5 अन्य पुलिस चौकियों के लिए भी बजट आ चुका है और अब जल्द ही नए भवन का निर्माण करवाया जाएगा. इसके अलावा जिले के साबला पुलिस थाने के लिए भी जमीन का आवंटन हो गया है, उसके लिए भी बजट के प्रस्ताव भेज दिए गए है. इसी तरह गुजरात बॉर्डर से सटी बिछीवाड़ा थाने की रतनपुर पुलिस चौकी भी सिक्स लेन में चली गई है, जिसके लिए भी जमीन के प्रस्ताव दे दिए गए है. जैसे ही मंजूरी मिलती है, उस पर तुरंत कार्य करवाया जाएगा.