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स्पेशल: करीब 300 साल के इतिहास को समेटे है 'बेणेश्वर धाम', मान्यता है कि श्रीकृष्ण ने यहां रास लीला रचाई

सोम और माही नदी के संगम तट पर स्थित बेणेश्वर धाम लाखों लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है. यहां माघ पूर्णिमा को भरने वाले मेले में लाखों श्रद्धालु इस संगम में डूबकी लगाकर भगवान की आराधना करते हैं. ऐसी मान्यता है कि संत मावजी महाराज भगवान श्रीकृष्ण के अवतार थे और उन्होंने इसी धाम पर रास लीला रचाई थी.

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करीब 300 साल के इतिहास को समेटे है बेणेश्वर धाम
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Published : Feb 7, 2020, 3:21 PM IST

डूंगरपुर. संत मावजी महाराज वागड़ ही नहीं देश और दुनिया के लिए महान संत थे. मावजी महाराज ने करीब 300 साल पहले माही और सोम नदी के संगम पर बेणेश्वर में तपस्या की थी. उन्होंने जनजाति समाज में सामाजिक चेतना जागृत करने के लिए भी प्रयास किए गए थे. उनकी याद में हर साल बेणेश्वर धाम पर माघ पूर्णिमा पर सबसे बड़ा आदिवासी मेला भरता है.

करीब 300 साल के इतिहास को समेटे है बेणेश्वर धाम

मेले में वागड़ ही नहीं राजस्थान सहित मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र से बड़ी संख्या में भक्त हर साल यहां आते हैं और धाम पर स्थित चारो मंदिरों में दर्शन करते हैं. धाम पर प्रमुख 2 मंदिर हैं, जिसमें शिव मंदिर और हरि मंदिर है. वहीं ब्रम्हा मंदिर और वाल्मिकी मंदिर से भी लोगों की आस्था जुड़ी हुई है.

विक्रम संवत 1771 में हुआ था संत मावजी महाराज का जन्म...

संत मावजी महाराज का विक्रम संवत 1771 को माघ शुक्ल पंचमी (बसंत पंचमी) बुधवार को साबला में दालम ऋषि के घर माता केसर बाई की कोख से जन्म हुआ था. इसके बाद कठोर तपस्या उपरांत संवत 1784 में माघ शुक्ल एकादशी को लीलावतार के रूप में संसार के सामने आए. मावजी ने साम्राज्यवाद के अंत, प्रजातंत्र की स्थापना, अछूतोद्धार, पाखंड और कलियुग के प्रभावों में वृद्धि, परिवेश, सामाजिक और सांसारिक परिवर्तनों पर स्पष्ट भविष्यवाणियां की हैं.

आज सार्थक साबित हो रही, मावजी महाराज की भविष्यवाणियां...

ऐसी मान्यता है कि संत मावजी महाराज की ओर से की गई 300 साल पहले जो भविष्यवाणियां की गईं थीं, वो आज आधुनिक युग में सार्थक साबित हो रही हैं. बेणेश्वर धाम के इतिहास के जानकार वीरेंद्र सिंह बेडसा ने कहा कि अपनी दिव्य दृष्टि से देखकर ही मावजी महाराज ने कहा था कि 'गऊं चोखा गणमा मले महाराज' अर्थात गेहूं और चावल राशन से मिलेंगे. मावजी महाराज ने चौपड़े लिखे हैं. महाराज के पांच चौपड़ों में से 4 इस समय सुरक्षित हैं...

  • मेघसागर- हरि मंदिर साबला में है. इसमें गीता ज्ञान उपदेश, भौगोलिक परिवर्तनों की भविष्यवाणियां हैं
  • साम सागर- शेषपुर में है. इसमें शेषपुर और धोलागढ़ के पवित्र पहाड़ का वर्णन तथा दिव्य वाणियां हैं
  • प्रेमसागर- डूंगरपुर जिले के ही पुंजपुर में है. इसमें धर्मोपदेश, भूगोल, इतिहास तथा भावी घटनाओं की प्रतीकात्मक जानकारी है
  • रतनसागर- बांसवाड़ा शहर के त्रिपोलिया रोड स्थित विश्वकर्मा मंदिर में सुरक्षित है. इसमें रंगीन चित्र, रासलीला, कृष्णलीलाओं आदि का मनोहारी वर्णन सजीव हो उठा है

यह भी पढ़ेंः स्पेशल: बेटे की शादी और 'कुंडली' बाप की, ओबामा और शाह दे चुके हैं धन्यवाद...ऐसा दावा

वहीं अनंत सागर नामक पांचवां चौपड़ा मराठा आमंत्रण के समय बाजीराव पेशवा द्वारा ले जाया गया, जिसे बाद में अंग्रेज ले गए. बताया जाता है कि इस समय यह लंदन के किसी म्यूजियम में सुरक्षित है. इसमें ज्ञान-विज्ञान की जानकारियां समाहित हैं.

जानिये बेणेश्वर धाम से जुड़ी आस्था...

माघ पूर्णिमा पर हर साल बड़ी संख्या में लोग बेणेश्वर धाम पर पहुंचते हैं. विक्रम संवत 1605-1637 के बीच महाराज आसकरण का शासन रहा. इसी दौरान सोम और माही नदी के इस टापू पर शिव मंदिर बनवाया गया था. उनके समय मे ही यहां एकत्रित होने वाले जनसमुदाय को व्यवस्थित कर आर्थिक दिशा देते हुए एक मेला आयोजन शुरू किया. इसका पूरा केंद्र आबू दर्रा के साथ-साथ यहां बना शिव मंदिर रहा.

यह भी पढ़ेंः बजट से आस: रिवरफ्रंट की 1 साल में केवल DPR, टेंडर स्वीकृति भी सरकार के पाले में

यहां हर साल नियमित रूप से लगने वाला यह मेला धीरे-धीरे शिव भक्तों का मेला बन गया और आर्थिक गतिविधियां बढ़ने लगी. इसके बाद महाराज शिव सिंह के समय में ही संत मावजी महाराज हुए थे. उन्होंने बेणेश्वर धाम पर साधना की थी. ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण का भ्रज में गोपियों के साथ जब रास खंडित हो गया था, तब श्रीकृष्ण ने वचन दिया था कि इस अधूरे रास को पूरा करने के लिए भी कलयुग में अवतार लेंगे.

संत मावजी महाराज कलयुग में श्रीकृष्ण के अवतार हैं और अपनी अधूरी रासलीला को पूरा करने के लिए ही बेणेश्वरधाम पर रास रचा रहे हैं. माघ पूर्णिमा की रात में होने वाली रासलीला मेले में आने वालों को उनके वृंदावन में होने के आनंद की अनुभूति कराते हैं. एक मान्यता यह भी है कि संवत 1799 में रास की याद में वक्त सम्मेलन किया गया था, जो मेले के रूप में आज तक जारी है.

संगम में प्रवाहित करते हैं अस्थियां...

मान्यता है कि बेणेश्वर धाम पर प्रवाहित होने वाली सोम और माही नदी गंगा समान पवित्र है. ऐसे में जिन परिवारों में किसी की मौत हो जाती है, वे इसी संगम में अस्थियों का विसर्जन कर पवित्र आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं. इसके बाद परिवार के साथ आने वाले लोग धाम पर ही लड्डू और बाटी का प्रसाद बनाकर सामूहिक रूप से ग्रहण भी करते हैं.

डूंगरपुर. संत मावजी महाराज वागड़ ही नहीं देश और दुनिया के लिए महान संत थे. मावजी महाराज ने करीब 300 साल पहले माही और सोम नदी के संगम पर बेणेश्वर में तपस्या की थी. उन्होंने जनजाति समाज में सामाजिक चेतना जागृत करने के लिए भी प्रयास किए गए थे. उनकी याद में हर साल बेणेश्वर धाम पर माघ पूर्णिमा पर सबसे बड़ा आदिवासी मेला भरता है.

करीब 300 साल के इतिहास को समेटे है बेणेश्वर धाम

मेले में वागड़ ही नहीं राजस्थान सहित मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र से बड़ी संख्या में भक्त हर साल यहां आते हैं और धाम पर स्थित चारो मंदिरों में दर्शन करते हैं. धाम पर प्रमुख 2 मंदिर हैं, जिसमें शिव मंदिर और हरि मंदिर है. वहीं ब्रम्हा मंदिर और वाल्मिकी मंदिर से भी लोगों की आस्था जुड़ी हुई है.

विक्रम संवत 1771 में हुआ था संत मावजी महाराज का जन्म...

संत मावजी महाराज का विक्रम संवत 1771 को माघ शुक्ल पंचमी (बसंत पंचमी) बुधवार को साबला में दालम ऋषि के घर माता केसर बाई की कोख से जन्म हुआ था. इसके बाद कठोर तपस्या उपरांत संवत 1784 में माघ शुक्ल एकादशी को लीलावतार के रूप में संसार के सामने आए. मावजी ने साम्राज्यवाद के अंत, प्रजातंत्र की स्थापना, अछूतोद्धार, पाखंड और कलियुग के प्रभावों में वृद्धि, परिवेश, सामाजिक और सांसारिक परिवर्तनों पर स्पष्ट भविष्यवाणियां की हैं.

आज सार्थक साबित हो रही, मावजी महाराज की भविष्यवाणियां...

ऐसी मान्यता है कि संत मावजी महाराज की ओर से की गई 300 साल पहले जो भविष्यवाणियां की गईं थीं, वो आज आधुनिक युग में सार्थक साबित हो रही हैं. बेणेश्वर धाम के इतिहास के जानकार वीरेंद्र सिंह बेडसा ने कहा कि अपनी दिव्य दृष्टि से देखकर ही मावजी महाराज ने कहा था कि 'गऊं चोखा गणमा मले महाराज' अर्थात गेहूं और चावल राशन से मिलेंगे. मावजी महाराज ने चौपड़े लिखे हैं. महाराज के पांच चौपड़ों में से 4 इस समय सुरक्षित हैं...

  • मेघसागर- हरि मंदिर साबला में है. इसमें गीता ज्ञान उपदेश, भौगोलिक परिवर्तनों की भविष्यवाणियां हैं
  • साम सागर- शेषपुर में है. इसमें शेषपुर और धोलागढ़ के पवित्र पहाड़ का वर्णन तथा दिव्य वाणियां हैं
  • प्रेमसागर- डूंगरपुर जिले के ही पुंजपुर में है. इसमें धर्मोपदेश, भूगोल, इतिहास तथा भावी घटनाओं की प्रतीकात्मक जानकारी है
  • रतनसागर- बांसवाड़ा शहर के त्रिपोलिया रोड स्थित विश्वकर्मा मंदिर में सुरक्षित है. इसमें रंगीन चित्र, रासलीला, कृष्णलीलाओं आदि का मनोहारी वर्णन सजीव हो उठा है

यह भी पढ़ेंः स्पेशल: बेटे की शादी और 'कुंडली' बाप की, ओबामा और शाह दे चुके हैं धन्यवाद...ऐसा दावा

वहीं अनंत सागर नामक पांचवां चौपड़ा मराठा आमंत्रण के समय बाजीराव पेशवा द्वारा ले जाया गया, जिसे बाद में अंग्रेज ले गए. बताया जाता है कि इस समय यह लंदन के किसी म्यूजियम में सुरक्षित है. इसमें ज्ञान-विज्ञान की जानकारियां समाहित हैं.

जानिये बेणेश्वर धाम से जुड़ी आस्था...

माघ पूर्णिमा पर हर साल बड़ी संख्या में लोग बेणेश्वर धाम पर पहुंचते हैं. विक्रम संवत 1605-1637 के बीच महाराज आसकरण का शासन रहा. इसी दौरान सोम और माही नदी के इस टापू पर शिव मंदिर बनवाया गया था. उनके समय मे ही यहां एकत्रित होने वाले जनसमुदाय को व्यवस्थित कर आर्थिक दिशा देते हुए एक मेला आयोजन शुरू किया. इसका पूरा केंद्र आबू दर्रा के साथ-साथ यहां बना शिव मंदिर रहा.

यह भी पढ़ेंः बजट से आस: रिवरफ्रंट की 1 साल में केवल DPR, टेंडर स्वीकृति भी सरकार के पाले में

यहां हर साल नियमित रूप से लगने वाला यह मेला धीरे-धीरे शिव भक्तों का मेला बन गया और आर्थिक गतिविधियां बढ़ने लगी. इसके बाद महाराज शिव सिंह के समय में ही संत मावजी महाराज हुए थे. उन्होंने बेणेश्वर धाम पर साधना की थी. ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण का भ्रज में गोपियों के साथ जब रास खंडित हो गया था, तब श्रीकृष्ण ने वचन दिया था कि इस अधूरे रास को पूरा करने के लिए भी कलयुग में अवतार लेंगे.

संत मावजी महाराज कलयुग में श्रीकृष्ण के अवतार हैं और अपनी अधूरी रासलीला को पूरा करने के लिए ही बेणेश्वरधाम पर रास रचा रहे हैं. माघ पूर्णिमा की रात में होने वाली रासलीला मेले में आने वालों को उनके वृंदावन में होने के आनंद की अनुभूति कराते हैं. एक मान्यता यह भी है कि संवत 1799 में रास की याद में वक्त सम्मेलन किया गया था, जो मेले के रूप में आज तक जारी है.

संगम में प्रवाहित करते हैं अस्थियां...

मान्यता है कि बेणेश्वर धाम पर प्रवाहित होने वाली सोम और माही नदी गंगा समान पवित्र है. ऐसे में जिन परिवारों में किसी की मौत हो जाती है, वे इसी संगम में अस्थियों का विसर्जन कर पवित्र आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं. इसके बाद परिवार के साथ आने वाले लोग धाम पर ही लड्डू और बाटी का प्रसाद बनाकर सामूहिक रूप से ग्रहण भी करते हैं.

Intro:डूंगरपुर। सोम और माही नदी के संगम तट पर स्थित बेणेश्वर धाम लाखों लोगों आस्था का प्रमुख केंद्र है तो यहां माघ पूर्णिमा को भरने वाले मेले में लाखों श्रद्धालु इस संगम में डूबकी लगाकर भगवान की आराधना करते है।
मान्यता है कि संत मावजी महाराज भगवान श्रीकृष्ण के अवतार थे और उन्होंने इसी धाम पर रासलीला रचाई।Body:संत मावजी महाराज वागड़ ही नहीं देश और दुनिया के लिए महान संत थे। मावजी महाराज ने करीब 300 वर्ष पूर्व माही, सोम नदी के संगम पर बेणेश्वर में तपस्या की थी। इनके द्वारा जनजाति समाज में सामाजिक चेतना जागृत करने के लिए भी प्रयास किए। उनकी याद में हर वर्ष बेणेश्वर धाम पर माघ पूर्णिमा पर सबसे बड़ा आदिवासी मेला भरता है। मेले में वागड़ ही नहीं राजस्थान सहित मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र से बड़ी संख्या में माव भक्त हर साल यहां आते है और धाम पर स्थित चारो मंदिरों में दर्शन करते है। धाम पर प्रमुख 2 मंदिर है, जिसमें शिव मंदिर और हरिमंदिर है तो वहीं ब्रम्हा मंदिर और वाल्मिकी मंदिर से भी लोगों की आस्था जुड़ी हुई है।

- विक्रम संवत 1771 में हुआ था संत मावजी महाराज का जन्म
संत मावजी महाराज का विक्रम संवत 1771 को माघ शुक्ल पंचमी (बसंत पंचमी), बुधवार को साबला में दालम ऋषि के घर माता केसर बाई की कोख से जन्म हुआ। इसके बाद कठोर तपस्या उपरांत संवत 1784 में माघ शुक्ल एकादशी को लीलावतार के रूप में संसार के सामने आए। मावजी महाराज ने साम्राज्यवाद के अंत, प्रजातंत्र की स्थापना, अछूतोद्धार, पाखंड और कलियुग के प्रभावों में वृद्धि, परिवेश, सामाजिक एवं सांसारिक परिवर्तनों पर स्पष्ट भविष्यवाणियां की हैं।

- आज सार्थक साबित हो रही मावजी महाराज की भविष्यवाणीया
मान्यता है कि संत मावजी महाराज की ओर से की गई 300 साल पहले जो भविष्यवाणीया की गई थी वे आज आधुनिक युग में सार्थक साबित हो रही है। बेणेश्वरधाम के इतिहास के जानकार वीरेंद्रसिंह बेडसा ने कहा कि अपनी दिव्य दृष्टि से देखकर ही मावजी महाराज ने कहा था कि ‘गऊं चोखा गणमा मले महाराज’ अर्थात गेहूं-चावल राशन से मिलेंगे। मावजी महाराज ने चौपड़े लिखे है। मावजी महाराज के पांच चौपड़ों में से 4 इस समय सुरक्षित हैं। इनमें ‘मेघसागर’ हरि मंदिर साबला में है। इसमें गीता ज्ञान उपदेश, भौगोलिक परिवर्तनों की भविष्यवाणियां हैं। ‘साम सागर’ शेषपुर में है। इसमें शेषपुर एवं धोलागढ़ के पवित्र पहाड़ का वर्णन तथा दिव्य वाणियां हैं। तीसरा ‘प्रेमसागर’ डूंगरपुर जिले के ही पुंजपुर में है। इसमें धर्मोपदेश, भूगोल, इतिहास तथा भावी घटनाओं की प्रतीकात्मक जानकारी है, जबकि चौथा चौपड़ा ‘रतनसागर’ बांसवाड़ा शहर के त्रिपोलिया रोड स्थित विश्वकर्मा मंदिर में सुरक्षित है। इसमें रंगीन चित्र, रासलीला, कृष्णलीलाओं आदि का मनोहारी वर्णन सजीव हो उठा है। ‘अनंत सागर’ नामक पांचवां चौपड़ा मराठा आमंत्रण के समय बाजीराव पेशवा द्वारा ले जाया गया, जिसे बाद में अंग्रेज ले गए। बताया जाता है कि इस समय यह लंदन के किसी म्यूजियम में सुरक्षित है। ज्ञान-विज्ञान की जानकारियां समाहित हैं।

- जानिये बेणेश्वर धाम से जुड़ी आस्था
माघ पूर्णिमा पर हर साल बड़ी संख्या में लोग बेणेश्वर धाम पर पहुंचते हैं। विक्रम संवत 1605-1637 के बीच महाराज आसकरण का शासन रहा और इसी दौरान सोम ओर माही नदी के इस टापू पर शिव मंदिर बनवाया गया था। उनके समय मे ही यहां एकत्रित होने वाले जनसमुदाय को व्यवस्थित कर आर्थिक दिशा देते हुए एक मेला आयोजन शुरू किया। इसका पूरा केंद्र आबू दर्रा के साथ-साथ यहां बना शिव मंदिर रहा। हर वर्ष नियमित रूप से लगने वाला यह मेला धीरे-धीरे शिव भक्तों का मेला बन गया और आर्थिक गतिविधियां बढ़ने लगी। इसके बाद महाराज शिवसिंह के समय में ही संत मावजी महाराज हुए थे। उन्होंने बेणेश्वर धाम पर साधना की थी और ऐसा मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण का भ्रज में गोपियों के साथ जब रास खंडित हो गया था, तब श्रीकृष्ण ने वचन दिया था कि इस अधूरे रास को पूरा करने के लिए भी कलयुग में अवतार लेंगे और ऐसी भी मान्यता है कि संत मावजी महाराज कलयुग में श्रीकृष्ण के अवतार हैं और अपनी अधूरी रासलीला को पूरा करने के लिए ही बेणेश्वरधाम पर रास रचा रहे हैं। माघ पूर्णिमा की रात में होने वाली रासलीला मेले में आने वालों को उनके वृंदावन में होने के आनंद की अनुभूति कराते हैं। एक मान्यता यह भी है कि संवत 1799 में रास की याद में वक्त सम्मेलन किया गया था जो मेले के रूप में आज तक जारी है।

- संगम में प्रवाहित करते है अस्थियां
मान्यता है कि बेणेश्वर धाम पर प्रवाहित होने वाली सोम ओर माही नदी गंगा समान पवित्र है। ऐसे में सालभर में जिन परिवारों में किसी की मौत हो जाने पर वे इसी संगम में अस्थियों का विसर्जन कर पवित्र आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते है। इसके बाद परिवार के साथ आने वाले लोग धाम पर ही लड्डू ओर बाटी का प्रसाद बनाकर सामूहिक रूप से ग्रहण भी करते है।

बाईट- वीरेंद्र सिंह बेडसा, बेणेश्वरधाम के जानकारConclusion:
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