डूंगरपुर. पूरी दुनिया के साथ देश और राजस्थान प्रदेश इस वक्त कोरोना वायरस की महामारी से जूझ रहा है. सरकार हर कदम पर सावधानी बरतने ओर आवश्यक कड़े कदम उठाने का दावा कर रही है, लेकिन इससे उलट कोरोना प्रभावित डूंगरपुर जिले में जिला प्रशासन की एक बड़ी लापरवाही सामने आई है.
बता दें, कि जिले में इंदौर से आए पिता-पुत्र की 26 मार्च को कोरोना रिपोर्ट पोजेटिव आई. जिसके बाद जिले में हड़कंप मच गया, लेकिन इसके अगले ही दिन इंदौर से आए 11 लोग जिला प्रशासन के बुलावे पर डूंगरपुर आए और घंटो कलेक्ट्रेट परिसर में घूमते हुए अपने घर जाने की गुहार लगाते रहे. लापरवाही की हदें पार करने वाले इस मामले ने डूंगरपुर जिला प्रशासन के कोरोना रोकथाम के दिवेकर कोशिशों की पोल खोलकर रख दी है.
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दरअसल, जिले के मेवाड़ा गांव निवासी काला भाई सहित उसके परिवार के 4 पुरुष और 4 महिलाए मध्यप्रदेश के इंदौर में मजदूरी करते थे. इनके साथ 3 छोटे बच्चे भी है. लॉकडाउन की घोषणा के बाद ये सभी 11 लोग अपने स्तर पर वाहनों में बैठकर 27 मार्च को अपने घर मेवाड़ा पहुंचे.
इधर, डूंगरपुर में 27 मार्च को ही इंदौर से आए पारडा सोलंकी गांव नीवासी पिता-पुत्र की कोरोना जांच रिपोर्ट पोजेटिव आई. जिसके बाद पूरे जिले में अलर्ट घोषित कर दिया गया. इस बीच जिला प्रशासन को इंदौर से 8 वस्यक सहित 11 लोगों के जिले के मेवाडा गांव में आने की सूचना मिली जिस पर जिला प्रशासन ने एम्बुलेंस भेजकर सभी 11 लोगों को 28 मार्च की दोपहर में जिला अस्पताल बुलवा लिया. यहां डॉक्टर ने सभी की स्क्रीनिंग कर 14 दिन तक घर मे रहने की सलाह देते हुए छोड़ दिया.
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इसके बाद काला भाई सहित सभी 11 लोग घर जाने के लिए एम्बुलेंस का इंतजार करने लगे, लेकिन शाम 7 बजे तक उन्हें लेने कोई नहीं आया. थके हारे सभी लोग कलेक्ट्रेट कार्यालय पहुंचे और अधिकारियों को आपबीती सुनाते हुए मदद की गुहार लगाई. लेकिन किसी ने नहीं सुना और रात साढ़े 11 बजे तक मासूम बच्चे, औरते और पुरुष कलेक्ट्रेट परिसर में मदद का इंतजार करते रहे.