दौसा. नगर परिषद चुनावों का बिगुल बजते ही प्रत्याशी और पार्टियों ने अपनी कमर कस ली है. प्रत्याशी वोट मांगने के लिए जनता के बीच जा रहे हैं और सुनहरे भविष्य का सपना दिखाकर वोट मांग रहे हैं. लेकिन नगर परिषद के अंडर आने वाले इलाकों में विकास के कितने काम हुए हैं. मूलभूत सुविधाओं का क्या हाल है. लोगों को पीने का पानी, बिजली, सड़क और साफ-सफाई जैसे सुविधाएं क्या मिल रही हैं. इसको लेकर ईटीवी भारत की टीम ने ग्राउंड पर जाकर देखा.
आजादी से 2 साल पहले 1945 में दौसा मुख्यालय के विकास के लिए नगरपालिका का गठन हुआ. जिसके बाद नगरपालिका नगर परिषद में बदल गई, लेकिन दौसा की तस्वीर नहीं बदली. 75 साल में 2 दर्जन से अधिक सभापतियों और सैंकड़ों वार्ड पार्षदों को चुनने के बाद भी क्या जनता को रोजाना परेशानियों से दो-चार होना पड़ रहा है. जनता प्रत्याशियों को इस उम्मीद के साथ चुनती है कि क्षेत्र का विकास करेंगे, लेकिन उम्मीदें हर बार उम्मीदें ही बनकर रह जाती हैं.
मकान बनाते समय टैक्स जमा करते हैं, लेकिन सुविधाएं नहीं मिलती...
जिला मुख्यालय पर सड़क, पानी, बिजली, अतिक्रमण और पार्किंग जैसी समस्याओं से लगातार शहरवासी परेशान हो रहे हैं. जिला मुख्यालय पर दर्जनों कॉलोनी ऐसी हैं जो नगर परिषद के क्षेत्र में आती हैं और नगर परिषद की तरफ से कॉलोनियों का मास्टर प्लान के तहत नक्शा भी तैयार किया गया है. कॉलोनियों में रहने वाले लोगों को नगर परिषद ने पट्टे भी जारी कर दिए गए. लेकिन कॉलोनियों में सुविधा की बात करें तो हालात गांव से भी बदतर हैं. नगर परिषद क्षेत्र में मकान निर्माण करने से पहले सभी तरह के टैक्स जमा कर लेने के बाद भी नगर परिषद द्वारा कॉलोनी वासियों को कोई सुविधा नहीं दी जा रही है.
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सीवरेज का पानी खुली नालियों में बहता है...
अधिकांश कॉलोनियों में सड़क व नल बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं भी नहीं हैं. शहर का आलम यह है कि सीवरेज लाइन नहीं होने से शौचालय और दूसरा गंदा पानी खुली नालियों में बह रहा है. बदबू से कॉलोनीवासियों का जीना दूभर हो गया है. गंदगी के चलते सूअरों की समस्या से भी स्थानीय लोग परेशान हैं. लोगों को कई तरह की बीमारियां खराब हवा में सांस लेने से हो रही हैं. आवारा पशु भी इन खुली नालियों में अपना ठेरा जमाए हुए हैं.
जनप्रतिनिधि शहर का नहीं अपना विकास करते हैं...
शहर के बीचोबीच लालसोट रोड पर पार्किंग की सुविधा नहीं होने से दिनभर जाम के हालात बने रहते हैं. बाजार में खरीदारी करने जो लोग आते हैं वो सड़क पर ही वाहन खड़ा कर देते हैं जिसके चलते आए दिन जाम के हालात बने रहते हैं. मुख्यालय पर रहने वाले लोगों का कहना है कि जनप्रतिनिधि बनते तो है लेकिन वह शहर का विकास नहीं खुद का विकास करते हैं. जिसके चलते 75 साल बाद भी जिला मुख्यालय के हालात नहीं बदले हैं.
नगर परिषद के पूर्व सभापति सुरेश घोसी ने कहा कि उनके कार्यकाल में इस दिशा में थोड़ा काम हुआ था. मुख्यालय पर कई सड़कें बनीं, कई कॉलोनियों को पूरी तरह मास्टर प्लान में नक्शे के सुपरविजन के साथ बनाई गई. लेकिन वर्तमान हालात में पार्षद, सभापति खरीद-फरोख्त में उलझे रहते हैं, जिसके चलते जिला मुख्यालय का विकास होना संभव नहीं है.
जिला मुख्यालय के अलावा कॉलोनियों में सड़कों का हाल भी बेहाल है. जगह-जगह से सड़कें उखड़ी हुई हैं. रोज हादसों का अंदेशा बना रहता है लेकिन परिषद की तरफ से कोई ठोस कदम इस दिशा में नहीं उठाया गया है. कई कॉलोनियों में तो कच्ची सड़कें हैं जिनपर गहरे-गहरे गड्ढे हो रखे हैं. आम लोगों का कहना है कि हर बार विकास की बात चुनावों में होती लेकिन फिर कोई भी जन प्रतिनिधी जनता के बीच नहीं आता है.