दौसा. भयंकर गर्मी और तेज धूप में गरीब आदमी को ठंडा पानी पीने के लिए कच्ची मिट्टी की बनाई हुई मटकी का सहारा मिल जाता है, जिससे मटकी खरीदकर इस भीषण गर्मी में ठंडे पानी से अपने परिवार को तृप्ति मिल जाती है. इससे मटकी बनाने वाले परिवार का भरण-पोषण चलता रहता है. लेकिन लॉकडाउन के चलते वह सहारा भी छिन गया है.
बाजार में गरीबों के लिए बिकने वाला छोटा फ्रिज या यूं कहें कि कुंभकार के द्वारा बनाई हुई कच्ची मिट्टी की मटकियां भी बाजार में नहीं बिक रही हैं और जो बिकने के लिए आ रही हैं उनका कोई खरीदार नहीं है, जिसके चलते मटकी बनाकर बेचने वाले परिवारों के सामने रोजी-रोटी का भी संकट खड़ा हो गया है. जिला मुख्यालय पर ऐसे दर्जनों परिवार हैं, जो सदियों से मटकी, तवे, सकोरे और कच्ची मिट्टी के बर्तन बनाकर बनाकर उन्हें गर्मी के मौसम में या फिर शादी विवाह की सीजन में बेचकर अपना और अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं. लेकिन कोरोना वायरस संक्रमण के खतरे के चलते हुए इस लॉकडाउन में उन कुंभकारों के सामने अपने परिवार चलाने का भी संकट खड़ा हो गया.
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कुंभकारों का कहना है कि लॉकडाउन के कारण कच्ची मिट्टी नहीं मिल रही और न ही मिट्टी से बने बर्तनों को पकाने के लिए लकड़ियां. ऐसे में कुंभकारों के सामने बर्तन बनाने और उन्हें बेचने का बड़ा संकट है. जो कच्ची मिट्टी के बर्तन पहले बना चुके थे, उन्हें बेचने के लिए अगर बाजार भी जाते हैं तो कोई खरीदार नहीं हैं. कुंभकारों का कहना है कि पहले तो कुछ ग्राहक उनके घर पर ही आ जाते थे तो कुछ मटकियों को बाजार में फुटपाथ पर लगाकर भी बेचकर अपना घर परिवार चलाते थे. लेकिन पिछले दो माह से मटकियां खरीदने वाला कोई नहीं है, जिसके चलते वो बेचने बाजार में भी जाते हैं तो दो-तीन दिन तक भी एक भी मटकी नहीं बिकती.
ऐसे में इन परिवारों के सामने परिवार चलाने का बच्चों के पालन-पोषण का बड़ा संकट है. कुंभकारों का कहना है कि इस संकट की घड़ी में प्रशासन ने भी उनकी कोई सुध नहीं ली, जिसके चलते हालात और ज्यादा खराब हो रहे हैं.