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Special: मल्टीनेशनल ब्रैंड्स और खादी, किस ओर है युवाओं का रूझान? देखें ये रिपोर्ट

खादी को लेकर आज ये बहस होती रहती है कि क्या खादी मल्टीनेशनल कंपनियों के प्रोडक्ट के आगे बाजार में अपनी जगह बना पा रही है. क्या उन ब्रैंड्स को टक्कर दे पा रही है. क्या है खादी के लिए काम करने वाले लोगों और युवाओं की सोच. पढ़ें ये खास रिपोर्ट...

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किस ओर है युवाओं का रूझान
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Published : Oct 14, 2020, 10:07 PM IST

दौसा. खादी को लेकर लंबे समय से यह बहस चलती आ रही है. यह बहस कई बिंदुओं पर होती है. पहली क्या खादी आज के दौर में जहां दुनिया भर की मल्टीनेशनल कंपनियां कपड़ों के बाजार में हावी हैं, क्या ऐसी मल्टीनेशनल कंपनियों से खादी मुकाबला कर पाएगी. क्या नौजवानों की पहली पसंद खादी बन पाएगी. जहां आम धारणा है कि खादी से बने कपड़े पुराने फैशन के माने जाते हैं लेकिन एक्सपर्टस का कहना है कि खादी का चलन धीरे-धीरे युवाओं में बढ़ा है.

किस ओर है युवाओं का रूझान

महात्मा गांधी ने खादी को जहां आत्मनिर्भरता से जोड़ा था और उनका यह प्रयोग काफी सफल भी हुआ था. स्वतंत्रता आंदोलन के समय अंग्रेजी सामान के बहिष्कार और स्वदेशी अपनाने पर जोर देने का ही परिणाम था कि खादी लोगों की पसंदीदा बन गई. लेकिन धीरे-धीरे सरकारी उदासीनता के कारण खादी को जहां होना चाहिए था एक ब्रैंड के रूप में वहां नहीं पहुंच पाई.

पढ़ें: Special : स्मार्ट सिटी और बड़े-बड़े ख्वाब...यहां तो खुले में शौच करने को मजबूर लोग

दौसा के खादी मंत्री अनिल शर्मा का कहना है कि खादी ने वर्तमान में अपने आप को बदलते जमाने के साथ ढाला है, जिसकी वजह से खादी के प्रति युवाओं का रूझान बढ़ा है. उन्होंने बताया कि मल्टीनेशनल कंपनियों से मुकाबला करने के लिए खादी में भी नए-नए डिजाइनों को लाया जा रहा है. साथ ही खादी के खुद के शॉपिंग मॉल भी बनाए जा रहे हैं.

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खादी के कपड़े

युवाओं के खादी के तरफ रूझान को लेकर अनिल शर्मा ने बताया कि कॉलेजों में पढ़ने वाले लड़के, लड़कियों का खादी की तरफ रूझान बढ़ा है. इसका कारण वो खादी में नए जमाने के डिजाइनर कपड़ों को मानते हैं. पिछले कुछ सालों में दुनिया भर के फेमस फैशन डिजाइनर खादी से जुड़े हैं. अनिल शर्मा बताते हैं कि पिछले साल जब राजस्थान सरकार ने खादी के कपड़े खरीदने पर 50 प्रतिशत की छूट दी तो खादी के कपड़ों की रिकॉर्ड बिक्री हुई.

खादी को राजनेताओं का परिधान और पुराने जमाने के लोगों के पहनावे से जोड़ने की बात पर अनिल शर्मा का तर्क है कि इसके चलते हम खादी को एक छोटे से दायरे में बांध देते हैं. जिससे खादी का नुकसान हो रहा है. उन्होंने कहा कि अब खादी के लिए काम करने वाले लोग भी समझ गए हैं कि जब तक युवा इसको नहीं अपनाएगा तब तक खादी दुनिया में अपनी पहचान नहीं बना सकेगी. इसके लिए लगातार एग्जीबिशन लगाई जा रही हैं, जिससे खादी की तरफ युवा आकर्षित हो रहे हैं.

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मल्टीनेशनल ब्रैंड्स और खादी

पढ़ें: Special: राजस्थान के इस गांव में दूसरी मंजिल नहीं बनाते ग्रामीण...500 साल पुरानी परंपरा आज भी कायम

मल्टीनेशनल कंपनियों से कैसे मुकाबला करेगी खादी

वर्तमान में जहां मल्टीनेशनल कंपनियां अपने ब्रैंड्स की बेहतर मार्केंटिंग करके बाजारों में युवाओं की पहली पसंद बनी हुई हैं. इसके मुकाबले खादी को प्रमोट करने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं. इसके बारे में अनिल शर्मा ने बताया कि खादी ग्रामोद्योग आयोग लगातार नए नए प्रयास कर रहा है. उन्होंने बताया कि दिल्ली भवन जो कनॉट प्लेस में स्थित है, वहां खादी की रिकॉर्ड बिक्री होती है. वहां खादी से बने कपड़े खरीदने वाले अधिकतर युवा होते हैं. विश्व पटल पर खादी पर को नई पहचान दिलाने के लिए लगातार सरकारी स्तर पर भी प्रयास किए जा रहे हैं. खादी के लिए काम करने वाले लोगों का कहना है कि आने वाले समय में खादी और भी ज्यादा युवाओं की पहचान बनाएगी.

खादी को लेकर युवाओं का क्या कहना है

युवाओं का मानना है कि खादी में जब कपड़े खरीदने जाते हैं तो दो या तीन कलर के ही डिजाइन आते हैं. वहीं अगर मल्टीनेशनल कंपनी के शोरूम में ढ़ेरों वैरायटी मिल जाती हैं. जिसकी वजह से भी खादी लगातार पिछड़ती जा रही है. युवाओं का मानना है कि आज के दौर में लोग स्टाइलिश दिखने के हिसाब से कपड़े खरीदते हैं लेकिन खादी में दूसरे ब्रैंड्स के मुकाबले उतने स्टाइलिश उत्पाद नहीं मिल पाते.

कई मल्टीनेशनल कंपनियों के ब्रैंड्स बेचने वाले दुकानदार कहते हैं कि खादी आज के पॉपुलर कल्चर में फिट नहीं हो रही है. खादी ने अपने आप को नए जमाने के साथ नहीं बदला, जिससे वो आउटडेटेड होती गई. जहां स्वतंत्रता के दौर में गांधीजी ने खादी को भारतीयों के आत्मसम्मान से जोड़ दिया था. लोग ब्रितानिया हुकुमत के विरोध का इसे एक स्वर मानते थे. लेकिन आज खादी को आम लोगों से वापस जोड़ने के लिए ना तो उत्पादों को स्टाइलवाइज ज्यादा आकर्षक बनाया जा रहा है ना ही आज वो भावना लोगों में खादी को लेकर दिखती है. लेकिन अब धीरे-धीरे खादी में भी नवाचार को बढ़ावा मिल रहा है. जिससे वो युवाओं को आकर्षित कर रही है. एक बार फिर से आमजन का पहनावा खादी को बनाने के लिए एक लंबी लड़ाई लड़नी अभी बाकी है.

दौसा. खादी को लेकर लंबे समय से यह बहस चलती आ रही है. यह बहस कई बिंदुओं पर होती है. पहली क्या खादी आज के दौर में जहां दुनिया भर की मल्टीनेशनल कंपनियां कपड़ों के बाजार में हावी हैं, क्या ऐसी मल्टीनेशनल कंपनियों से खादी मुकाबला कर पाएगी. क्या नौजवानों की पहली पसंद खादी बन पाएगी. जहां आम धारणा है कि खादी से बने कपड़े पुराने फैशन के माने जाते हैं लेकिन एक्सपर्टस का कहना है कि खादी का चलन धीरे-धीरे युवाओं में बढ़ा है.

किस ओर है युवाओं का रूझान

महात्मा गांधी ने खादी को जहां आत्मनिर्भरता से जोड़ा था और उनका यह प्रयोग काफी सफल भी हुआ था. स्वतंत्रता आंदोलन के समय अंग्रेजी सामान के बहिष्कार और स्वदेशी अपनाने पर जोर देने का ही परिणाम था कि खादी लोगों की पसंदीदा बन गई. लेकिन धीरे-धीरे सरकारी उदासीनता के कारण खादी को जहां होना चाहिए था एक ब्रैंड के रूप में वहां नहीं पहुंच पाई.

पढ़ें: Special : स्मार्ट सिटी और बड़े-बड़े ख्वाब...यहां तो खुले में शौच करने को मजबूर लोग

दौसा के खादी मंत्री अनिल शर्मा का कहना है कि खादी ने वर्तमान में अपने आप को बदलते जमाने के साथ ढाला है, जिसकी वजह से खादी के प्रति युवाओं का रूझान बढ़ा है. उन्होंने बताया कि मल्टीनेशनल कंपनियों से मुकाबला करने के लिए खादी में भी नए-नए डिजाइनों को लाया जा रहा है. साथ ही खादी के खुद के शॉपिंग मॉल भी बनाए जा रहे हैं.

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खादी के कपड़े

युवाओं के खादी के तरफ रूझान को लेकर अनिल शर्मा ने बताया कि कॉलेजों में पढ़ने वाले लड़के, लड़कियों का खादी की तरफ रूझान बढ़ा है. इसका कारण वो खादी में नए जमाने के डिजाइनर कपड़ों को मानते हैं. पिछले कुछ सालों में दुनिया भर के फेमस फैशन डिजाइनर खादी से जुड़े हैं. अनिल शर्मा बताते हैं कि पिछले साल जब राजस्थान सरकार ने खादी के कपड़े खरीदने पर 50 प्रतिशत की छूट दी तो खादी के कपड़ों की रिकॉर्ड बिक्री हुई.

खादी को राजनेताओं का परिधान और पुराने जमाने के लोगों के पहनावे से जोड़ने की बात पर अनिल शर्मा का तर्क है कि इसके चलते हम खादी को एक छोटे से दायरे में बांध देते हैं. जिससे खादी का नुकसान हो रहा है. उन्होंने कहा कि अब खादी के लिए काम करने वाले लोग भी समझ गए हैं कि जब तक युवा इसको नहीं अपनाएगा तब तक खादी दुनिया में अपनी पहचान नहीं बना सकेगी. इसके लिए लगातार एग्जीबिशन लगाई जा रही हैं, जिससे खादी की तरफ युवा आकर्षित हो रहे हैं.

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मल्टीनेशनल ब्रैंड्स और खादी

पढ़ें: Special: राजस्थान के इस गांव में दूसरी मंजिल नहीं बनाते ग्रामीण...500 साल पुरानी परंपरा आज भी कायम

मल्टीनेशनल कंपनियों से कैसे मुकाबला करेगी खादी

वर्तमान में जहां मल्टीनेशनल कंपनियां अपने ब्रैंड्स की बेहतर मार्केंटिंग करके बाजारों में युवाओं की पहली पसंद बनी हुई हैं. इसके मुकाबले खादी को प्रमोट करने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं. इसके बारे में अनिल शर्मा ने बताया कि खादी ग्रामोद्योग आयोग लगातार नए नए प्रयास कर रहा है. उन्होंने बताया कि दिल्ली भवन जो कनॉट प्लेस में स्थित है, वहां खादी की रिकॉर्ड बिक्री होती है. वहां खादी से बने कपड़े खरीदने वाले अधिकतर युवा होते हैं. विश्व पटल पर खादी पर को नई पहचान दिलाने के लिए लगातार सरकारी स्तर पर भी प्रयास किए जा रहे हैं. खादी के लिए काम करने वाले लोगों का कहना है कि आने वाले समय में खादी और भी ज्यादा युवाओं की पहचान बनाएगी.

खादी को लेकर युवाओं का क्या कहना है

युवाओं का मानना है कि खादी में जब कपड़े खरीदने जाते हैं तो दो या तीन कलर के ही डिजाइन आते हैं. वहीं अगर मल्टीनेशनल कंपनी के शोरूम में ढ़ेरों वैरायटी मिल जाती हैं. जिसकी वजह से भी खादी लगातार पिछड़ती जा रही है. युवाओं का मानना है कि आज के दौर में लोग स्टाइलिश दिखने के हिसाब से कपड़े खरीदते हैं लेकिन खादी में दूसरे ब्रैंड्स के मुकाबले उतने स्टाइलिश उत्पाद नहीं मिल पाते.

कई मल्टीनेशनल कंपनियों के ब्रैंड्स बेचने वाले दुकानदार कहते हैं कि खादी आज के पॉपुलर कल्चर में फिट नहीं हो रही है. खादी ने अपने आप को नए जमाने के साथ नहीं बदला, जिससे वो आउटडेटेड होती गई. जहां स्वतंत्रता के दौर में गांधीजी ने खादी को भारतीयों के आत्मसम्मान से जोड़ दिया था. लोग ब्रितानिया हुकुमत के विरोध का इसे एक स्वर मानते थे. लेकिन आज खादी को आम लोगों से वापस जोड़ने के लिए ना तो उत्पादों को स्टाइलवाइज ज्यादा आकर्षक बनाया जा रहा है ना ही आज वो भावना लोगों में खादी को लेकर दिखती है. लेकिन अब धीरे-धीरे खादी में भी नवाचार को बढ़ावा मिल रहा है. जिससे वो युवाओं को आकर्षित कर रही है. एक बार फिर से आमजन का पहनावा खादी को बनाने के लिए एक लंबी लड़ाई लड़नी अभी बाकी है.

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