चूरू. राजस्थान के कई हिस्सों में आज भी अंधविश्वास और कुरीतियों का बोलबाला है. घूंघट प्रथा भी प्रदेश में सदियों से चली आ रही कुप्रथाओं में से एक कुप्रथा है. खुद सीएम अशोक गहलोत भी घूंघट प्रथा के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर चुके हैं. आधी आबादी को इस अभिशाप से निजात दिलाने की दिशा में महिला एवं बाल विकास विभाग के माध्यम से जागरूकता अभियान प्रदेश भर में शुरू किया, लेकिन सरकार का यह सरकारी अभियान कागजों में ही सिमट कर रह गया.
अगर धरातल पर अभियान शुरू होता तो शायद प्रदेश में आधी आबादी को आज इस घूंघट प्रथा के इस अभिशाप से मुक्ति मिलती. लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए और इस अभिशाप और कुरीति पर चोट करने के लिए आधी आबादी वोट की चोट तो करती है, लेकिन इस अभिशाप से उसे मुक्ति नहीं मिल पाती है. प्रदेश की यह आधी आबादी चूल्हा चौका छोड़ जब प्रदेश की मुखिया बन सकती है. शहर की प्रथम महिला बन सकती है जब महत्वपूर्ण पदों पर काम कर अपनी जिम्मेदारी का निवर्हन बखूबी कर सकती है, तो उसे इस घूंघट प्रथा से मुक्ति क्यों नहीं मिल रही है.
पढ़ें- कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर फंड से गांवों में बनेंगे कोल्ड स्टोरेज और वेयर हाउस : कैलाश चौधरी
ईटीवी भारत ने जब इस प्रथा का दंश झेल रही महिलाओं से बात की तो उनका अजीबो गरीब जवाब था. शायद खुद आधी आबादी अपना हक और अपने हक की आवाज को बुलंद करना जैसे भूल गयी हो. इस अभिशाप को झेल रही कई महिलाओं ने कहा कि उनके घर के बड़े बुजुर्गों का फरमान है कि महिलाएं घूंघट निकाले तो कुछ महिलाओं का कहना था कि वह अपनी इज्जत रखने के लिए और घर पर बड़ों का मान रखने के लिए घूंघट निकालती है.