चूरू. रंगों का त्योहार होली मस्ती और रसियो का त्योहार है. चंग और ढप की थाप फाल्गुनी मस्ती में जहां चार चांद लगाती है, तो चूरू में पिछले 60 वर्ष से एक परिवार चंग और ढप का निर्माण कर इनमें रंग भर रहा है. बदलते जमाने के साथ सब कुछ बदला. बाजार में प्लास्टिक के चंग और ढप भी आए, लेकिन अपने हाथों की कारीगरी से तैयार किए चूरू के इस परिवार के चंग और ढप देश ही नहीं, बल्कि विदेश में भी जाते हैं. पतासी देवी का परिवार पिछले 60 साल से चंग और ढप का निर्माण कर रहा है. देखें ये खास रिपोर्ट
इस तरह तैयार होता है चंग और ढप...
चंग और नगाड़ों को तैयार करने में इन कारीगरों को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है. फाल्गुन से एक से दो माह पूर्व ही कारीगर इन्हें तैयार करने में जुट जाते हैं. ढप और नगाड़े भेड़ और बकरे की खाल से बनाए जाते हैं, जिसे गंगानगर और बीकानेर से लाया जाता है. उसके बाद ढप बनाने का काम शुरू होता है. इसके लिए खाल को धोकर सुखाया जाता है. फिर लकड़ी की फ्रेम पर खाल को चढ़ाया जाता है और आंकड़े के दूध से फिर इसे धोया जाता है, जब यह सुख कर तैयार हो जाता है, तो इस पर विभिन्न रंगों से चित्र बनाए जाते हैं. होली से पूर्व एक चंग की कीमत साइज के अनुसार 500 से 800 रुपए होती है और होली के दिन चंग के खरीदार बढ़ जाने से इसकी कीमत 1000 से 1500 रुपए भी हो जाती है.
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कोरोना ने किया प्रभावित...
चंग और ढप बनाने वाले इस परिवार ने बताया कि पहले चंग और ढप के खरीददार अधिक होते थे. अब दिनों दिन इनके खरीददारों में कमी आयी है. बदलते वक्त के साथ मटेरियल लाने में भी कासा परेशानियों का सामना करना पड़ता है. पहले आस पास ही इसका मटेरियल आसानी से मिल जाता था. अब दूर दराज से लाना पड़ता है. रही सही कसर इस बार कोरोना महामारी ने पूरी कर दी, जिसके चलते फागोस्तव के कार्यक्रम अब जिले में ना के बराबर हो रहे हैं, जिसके चलते भी इन चंग और ढपो कि बिक्री पर असर पड़ा है.
ढोलक, नगाड़ा का भी निर्माण...
ढप, चंग का निर्माण करने वाले इस परिवार के आवश्यक काम ढप की बिक्री से ही निकलते है. शेखावाटी में फाग उत्सव के रसिये और सामाजिक संस्थाओं के लोग चंग की खरीदारी अवश्य करते हैं. आमजन की ढप की मांग की पूर्ति करता पतासी देवी का परिवार के सात सदस्य एक से डेढ माह तक इसे बनाने में जुटे रहते हैं. इस परिवार के सदस्य कहते हैं कि वे चंग के अलावा ढोलक, नगाड़ा व नगारी बनाते हैं.