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चूरू का घंटेल गांव; यहां एक भी मुस्लिम परिवार नहीं, हिंदू भाई करते हैं पीर बाबा की दरगाह में पूजा और मांगते हैं दुआएं

गंगा जमुनी तहजीब का एक बेमिसाल उदाहरण देखना है तो चूरू जिले से सिर्फ 6 किलोमीटर दूर गांव घंटेल चले आइए. कहने को तो गांव में करीब 6 हजार की आबादी है और यहां की पहाड़ी पर पीर बाबा की दरगाह भी है. लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि गांव में एक भी मुस्लिम परिवार नहीं है. जबकि दरगाह में नियमित रूप से पूजा होती है और दुआओं के लिए लोगों की भीड़ लगी रहती है. यहां इसकी पूजा हिंदू परिवार के लोग ही करते हैं. इतना ही नहीं यहां हर शुक्रवार को मेला लगता है. जिसमें आस-पास के कई गांवों के अकीदतमंद शामिल होते हैं.

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Published : Nov 15, 2019, 10:34 AM IST

चूरू. जिला मुख्यालय से करीब 6 किमी दूर रेतीले धोरों के बीच बसा गांव घंटेल कौमी एकता और भाईचारे की एक ऐसी इबारत लिख रहा है, जिसका हर कोई कायल है. करीब छह हजार की आबादी वाले इस गांव में एक भी मुस्लिम परिवार नहीं है. लेकिन गंगा-जमुनी तहजीब को गांव के हिंदू परिवार पूरी शिद्दत के साथ सहेजे हुए हैं.

कौमी एकता की मिसाल है चूरू जिले का घंटेल गांव

यहां धर्म से बढ़कर उस परंपरा और आस्था को निभाया जा रहा है, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी यहां के बाशिंदों को विरासत में मिली है. इस गांव के लोगों में पीर बाबा के प्रति भी गहरी आस्था है. यह एक ऐसी दरगाह है जो सर्व धर्म सद्भाव का संदेश देती है. यहां हिंदू समाज के लोग पूजा करते हैं तो मुस्लिम अपना शीश नवाते हैं. यानी हर मजहब के लोग यहां आते हैं. कोई इस स्थान को पीर साहब की दरगाह कहता है तो कोई इसे पीर साहब का थान मानता है. खास बात तो यह है कि इस दरगाह के पुजारी हिंदू है. इस गांव की पीर बाबा दरगाह पर हर शुक्रवार को छोटा मेला भी लगता है.

यह भी पढ़ें : जिस पार्टी में भ्रष्टाचार होता है उस पार्टी का पूर्व वित्त मंत्री जेल में होता है: गुलाबचंद कटारिया

दरगाह की सार-संभाल करने वाले गांव के संतलाल का मानना है कि पीर-देवता किसी धर्म में बंटे हुए नहीं होते. बल्कि, लोगों के कल्याण के लिए होते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि फिलहाल 70 फीट से अधिक ऊंचे टीले पर यह दरगाह है और हर साल इस दरगाह की थोड़ी ऊंचाई बढ़ती जाती है. इस दरगाह की ऊंचाई के बराबर गांव में अब तक कोई भवन नहीं बना हुआ है.

मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु कराते हैं जागरण, कव्वालियों की होती है प्रस्तुति

जहां पर हिंदू व दूसरे गांव के मुस्लिम बंधु यहां आकर मन्नतें मांगते हैं. ग्रामीण झड़ूला और गंठजोड़े की धोक लगाने सबसे पहले पीर बाबा की दरगाह पर आते हैं. इतना ही मन्नत पूरी होने पर जागरण लगता है. जिसमें भी कव्वालियों की शानदार प्रस्तुतियां दी जाती है. यह सिलसिला दशकों से अनवरत जारी है. बाबा की समाधि के पास अखंड ज्योत जलाई जाती है.

ऐसी आस्था कि मिट्टी खुदाई के कुछ समय बाद हो जाती है बारिश

राजपूत बाहुल्य इस गांव के ग्रामीणों का कहना है कि पीर बाबा ने ही गांव घंटेल की आक्रांताओं से रक्षा की थी. लोगों की मान्यता है कि आज भी किसी घर में आग लगती है तो पीर बाबा की कृपा दृष्टि से आग कभी दूसरे घर में नहीं फैलती है. गांव में जिस साल बारिश नहीं होती है तो गांव के लोग दरगाह के पास हाथ से मिट्टी खोदते हैं तो कुछ ही दिनों में बारिश हो जाती है. गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि एक हजार से अधिक वर्ष पहले हुए किसी युद्ध के दौरान पांच योद्धा लड़ाई के लिए जोधपुर से रवाना हुए. यहां आकर एक योद्धा युद्ध में काम आ गए. जिनकी यह मजार दरगाह के रूप में आज यहां स्थापित है. दूसरे योद्धा की मजार झुंझुनू जिले के नरहड़ में है. घंटेल के पीर नरहड़ के पीर के बड़े भाई बताए जाते हैं.

चूरू. जिला मुख्यालय से करीब 6 किमी दूर रेतीले धोरों के बीच बसा गांव घंटेल कौमी एकता और भाईचारे की एक ऐसी इबारत लिख रहा है, जिसका हर कोई कायल है. करीब छह हजार की आबादी वाले इस गांव में एक भी मुस्लिम परिवार नहीं है. लेकिन गंगा-जमुनी तहजीब को गांव के हिंदू परिवार पूरी शिद्दत के साथ सहेजे हुए हैं.

कौमी एकता की मिसाल है चूरू जिले का घंटेल गांव

यहां धर्म से बढ़कर उस परंपरा और आस्था को निभाया जा रहा है, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी यहां के बाशिंदों को विरासत में मिली है. इस गांव के लोगों में पीर बाबा के प्रति भी गहरी आस्था है. यह एक ऐसी दरगाह है जो सर्व धर्म सद्भाव का संदेश देती है. यहां हिंदू समाज के लोग पूजा करते हैं तो मुस्लिम अपना शीश नवाते हैं. यानी हर मजहब के लोग यहां आते हैं. कोई इस स्थान को पीर साहब की दरगाह कहता है तो कोई इसे पीर साहब का थान मानता है. खास बात तो यह है कि इस दरगाह के पुजारी हिंदू है. इस गांव की पीर बाबा दरगाह पर हर शुक्रवार को छोटा मेला भी लगता है.

यह भी पढ़ें : जिस पार्टी में भ्रष्टाचार होता है उस पार्टी का पूर्व वित्त मंत्री जेल में होता है: गुलाबचंद कटारिया

दरगाह की सार-संभाल करने वाले गांव के संतलाल का मानना है कि पीर-देवता किसी धर्म में बंटे हुए नहीं होते. बल्कि, लोगों के कल्याण के लिए होते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि फिलहाल 70 फीट से अधिक ऊंचे टीले पर यह दरगाह है और हर साल इस दरगाह की थोड़ी ऊंचाई बढ़ती जाती है. इस दरगाह की ऊंचाई के बराबर गांव में अब तक कोई भवन नहीं बना हुआ है.

मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु कराते हैं जागरण, कव्वालियों की होती है प्रस्तुति

जहां पर हिंदू व दूसरे गांव के मुस्लिम बंधु यहां आकर मन्नतें मांगते हैं. ग्रामीण झड़ूला और गंठजोड़े की धोक लगाने सबसे पहले पीर बाबा की दरगाह पर आते हैं. इतना ही मन्नत पूरी होने पर जागरण लगता है. जिसमें भी कव्वालियों की शानदार प्रस्तुतियां दी जाती है. यह सिलसिला दशकों से अनवरत जारी है. बाबा की समाधि के पास अखंड ज्योत जलाई जाती है.

ऐसी आस्था कि मिट्टी खुदाई के कुछ समय बाद हो जाती है बारिश

राजपूत बाहुल्य इस गांव के ग्रामीणों का कहना है कि पीर बाबा ने ही गांव घंटेल की आक्रांताओं से रक्षा की थी. लोगों की मान्यता है कि आज भी किसी घर में आग लगती है तो पीर बाबा की कृपा दृष्टि से आग कभी दूसरे घर में नहीं फैलती है. गांव में जिस साल बारिश नहीं होती है तो गांव के लोग दरगाह के पास हाथ से मिट्टी खोदते हैं तो कुछ ही दिनों में बारिश हो जाती है. गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि एक हजार से अधिक वर्ष पहले हुए किसी युद्ध के दौरान पांच योद्धा लड़ाई के लिए जोधपुर से रवाना हुए. यहां आकर एक योद्धा युद्ध में काम आ गए. जिनकी यह मजार दरगाह के रूप में आज यहां स्थापित है. दूसरे योद्धा की मजार झुंझुनू जिले के नरहड़ में है. घंटेल के पीर नरहड़ के पीर के बड़े भाई बताए जाते हैं.

Intro:चूरू_गंगा जमुनी तहजीब को सहज रहा है गांव घँटेल.6 हजार की आबादी के गांव में नही है एक भी मुस्लिम परिवार.रेतीले टीले पर बनी पीर बाबा की दरगाह की हिन्दू परिवार कर रहा है सम्भाल.धर्म से बढ़कर परम्परा और आस्था को निभाया जा रहा है गांव घँटेल में।


Body:चूरू जिला मुख्यालय से 6 किमी दूर रेतीले धोरों के बीच बसा गांव घंटेल एक ऐसी इबारत लिख रहा है जिसका हर कोई कायल है. करीब छह हजार की आबादी वाले इस गांव में एक भी मुस्लिम परिवार नहीं है लेकिन गंगा जमुनी तहजीब को गांव के हिंदू परिवार पूरी शिद्दत के साथ सहेजे हुए हैं। यहां धर्म से बढ़कर उस परंपरा और आस्था को निभाया जा रहा है जो पीढ़ी दर पीढ़ी यहां के बाशिंदों को विरासत में मिली है इस गांव के लोगों में पीर के प्रति मुस्लिम परिवारों के समान ही आस्था है यह एक ऐसी दरगाह है जो सर्व धर्म सद्भाव का संदेश देती है हिंदू समाज के लोग पूजा करते हैं तो मुस्लिम शीश नवाते हैं हर मजहब के लोग यहां आते हैं कोई इस स्थान को पीर साहब की दरगाह कहता है तो कोई इसे पीर साहब का थान, खास बात तो यह है कि इस दरगाह के पुजारी हिंदू है इस गांव की पीर दरगाह पर हर शुक्रवार को छोटा मेला लगता है।


Conclusion:जहां पर हिंदू व दूसरे गांव के मुस्लिम आकर मन्नते मांगते हैं ग्रामीण झडूला और गंठजोडें की धोक लगाने सबसे पहले पीर बाबा की दरगाह पर आते हैं. मन्नत पूरी होने पर जागरण लगता है जिसमें कव्वालियां की शानदार प्रस्तुतियां दी जाती है यह सिलसिला दशकों से अनवरत जारी है बाबा की समाधि के निकट अखंड ज्योत जलाई जाती है दरगाह को संभालने वाले गांव के संतलाल महा ब्राह्मण का मानना है कि पीर देवता किसी धर्म मे बंटे हुए नही होते अपितु लोगो के कल्याण के लिए होते है। ग्रामीणों का कहना है कि अब 70 फीट से अधिक ऊंचे टीले पर यह दरगाह है हर साल इस दरगाह की ऊंचाई बढ़ती जाती है पीढ़ी दर पीढ़ी दरगाह के मिट्टी में दबने के बाद उस पर नया निर्माण करवा दिया जाता है इस दरगाह की ऊंचाई के बराबर गांव में अब तक कोई भवन नहीं बना हुआ राजपूत बाहुल्य इस गांव के ग्रामीणों का कहना है कि पीर बाबा ने ही गांव घंटेल की आक्रांताओं से रक्षा की थी. लोगों की मान्यता है कि आज भी किसी घर में आग लगती है तो पीर की कृपया दृष्टि से आग कभी दूसरे घर में नहीं फैलती है गांव में जिस साल बारिश नहीं होती है तो गांव के लोग दरगाह के पास हाथ से मिट्टी खोदते हैं तो कुछ ही दिनों में बारिश हो जाती है गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि एक हजार से अधिक वर्ष पहले हुए किसी युद्ध के दौरान पांच योद्धा लड़ाई के लिए जोधपुर से रवाना हुए यहां आकर एक योद्धा युद्ध में काम आ गए जिनकी यह मजार दरगाह के रूप में आज यहां स्थापित है दूसरे योद्धा की मजार झुंझुनू जिले के नरहड़ में है घंटेल के पीर नरहड़ के पीर के बड़े भाई बताए जाते हैं

बाईट_लीलाधर,ग्रामीण गांव घँटेल
बाईट_संतलाल आचार्य,पुजारी पीर बाबा दरगाह
बाईट_रतनलाल स्वामी,ग्रामीण गांव घँटेल
बाईट_प्रताप सिंह,ग्रामीण गांव घँटेल
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