सरदारशहर (चूरू). 16 साल की उम्र में बंशीधर पारीक को जो शौक लगा, वो धीरे-धीरे जुनून बना. अब ये आलम है, कि 84 साल के बंशीधर पारीक के पास 130 साल से भी पुरानी मुगलकालीन और अंग्रेज रियासतकालीन मुद्राओं का संग्रहण है. जब पुराने सिक्कों का संग्रहण करना शुरू किया था, तब शायद ही उन्होंने सोचा था, कि इतने सिक्के जमा करने में वो कामयाब होंगे, लेकिन आज यही सिक्के उनकी पहचान बन गए हैं.
दुर्लभ सिक्कों और नोटों का कलेक्शन
दुर्लभ सिक्कों और नोटों का कलेक्शन ऐसा है, कि उनके पास चंद्रगुप्त, सम्राट अशोक से लेकर मुगल, शिवाजी और ब्रिटिश पीरियड के सिक्के हैं. इन सिक्कों के माध्यम से पुरातन संस्कृति को भी जान सकते हैं. सिक्कों की आज ना सिर्फ प्रदर्शनी होती है, बल्कि इतिहास के छात्रों को भी इतिहास समझने में आसानी होती है.
अंग्रेजों को पढ़ाई हिंदी
चूरू जिले के सरदारशहर तहसील के गांव पूलासर में रहने वाले बीडी पारीक ने 1955 से लेकर 1957 तक अंग्रेजों को पढ़ाया भी है. बीडी पारीक महज दसवीं क्लास तक पढ़े हैं. साल 1955 में दसवीं पास करने के बाद उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी. उसके बाद आसाम में अंग्रेजों के अध्यापक रहे. वे यहां अंग्रेजों को हिंदी पढ़ाते थे. पारीक को यहीं से नायाब सिक्के इकट्ठे करने का जुनून सवार हुआ.
मुगलकालीन, अंग्रेजी रियासत के भी सिक्के
बीडी पारीक ने मुगलकालीन और अंग्रेजी रियासत से लेकर आज तक के सिक्के इकट्ठे किए हुए हैं. उन्होंने ना सिर्फ भारतीय बल्कि विदेशी मुद्राएं भी संग्रहित की हैं. मुद्रा के साथ-साथ ही पुरानी टिकट और मैगजीन इकट्ठे करने का भी शौक रहा है.
विदेशी सैलानियों के खत भी
बीडी पारीक भारत में जो टूरिस्ट घूमने आते थे, उन्हें अपने घर बुलाते थे और भारतीय संस्कृति से परिचित कराते थे. टूरिस्ट विदेशों में जाकर उन्हें खत लिखा करते थे. उन्होंने वे खत आज भी संजो कर रखे हैं. पारीक ने चूरू जिले के आसपास के स्कूल-कॉलेज में व्याख्यान भी दिए हैं.
30 से ज्यादा देशों की करेंसी
पारीक के पास 30 से ज्यादा देशों की करेंसी है. ये सिक्के और नोटों के रूप में है. उन्हें पुरानी डाक टिकट का संग्रहण का भी शौक है. देश की आजादी से लेकर अबतक की डाक टिकटें हैं, बल्कि इससे पुरानी भी डाक टिकटें हैं. आजादी के समय छपने वाले पुराने अखबारों की कटिंग भी है.
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ग्रामीणों के लिए आदर्श बने बीडी पारीक
पारीक के सिक्कों का संग्रहण भविष्य और वर्तमान से परिचित कराता है. जब संग्रहण करना शुरू किया था, तब काफी चुनौतियां सामने आईं थीं.
महारानी विक्टोरिया से लेकर कई मुगलकालीन सिक्के
इतिहास के प्रोफेसर डॉक्टर ओपी बोरा का कहना है, कि बीडी पारीक का संग्रहण काफी पुराना और शानदार है. जिसमें महारानी विक्टोरिया से लेकर कई मुगलकालीन सिक्के हैं. ये सिक्के अब देखने को नहीं मिलते हैं. ये बच्चों को इतिहास समझने में काफी मददगार हैं.
सिक्कों से बनी पहचान
वहीं बीडी पारीक की पत्नी सोना देवी का कहना है, कि पति द्वारा इकट्ठा किए गए सिक्कों से आज उनकी पहचान बनी है. खुशी होती है, जब गांव में और क्षेत्र में इनकी चर्चा होती है. स्थानीय निवासी धनपत सारण ने बताया, कि बीडी पारीक का सिक्कों का कलेक्शन अद्भुत है.