चित्तौड़गढ़. कोरोना महामारी के साथ-साथ किसान मौसम की मार भी झेलने को मजबूर हैं. एक ओर जीवन की गाड़ी एक बार फिर पटरी पर लौटने की आस में किसानों ने मानसून पूर्व की बारिश में खरीफ फसलों की बुवाई कर दी, लेकिन मक्का और ज्वार की फसलें अंकुरण के बाद ईल्ली के प्रकोप के शिकार होती दिखाई दे रही है.
अगले कुछ दिनों में इसका प्रकोप और भी बढ़ने की आशंका है, क्योंकि कीटनाशक भी इस पर बेअसर हो रहा है. ऐसे में ईल्ली का फैलाव और भी तेजी से होने की जताई जा रही है, जिसे लेकर किसान भी चिंतित है. फिलहाल किसानों की उम्मीद कंपनी के कस्टमर केयर सेंटर पर टिकी है. किसानों का कहना है कि पिछले 3-4 साल से इन दोनों ही फसलों पर इसका प्रकोप देखा जा रहा है और कीटनाशक किसी भी प्रकार से ईल्ली के प्रकोप को रोकने में नाकाम साबित हो रहा है.
वहीं, कृषि विभाग के आंकड़े बताते हैं कि अनाज की फसलों मैं मक्का अब तक जिले की सर्वाधिक पसंदीदा फसल रही है, लेकिन धीरे-धीरे किसानों का मन इससे हटता जा रहा है. इस साल जिले में बुवाई का लक्ष्य 323020 हेक्टेयर क्षेत्र रहा, जिसमें से डेढ़ लाख हेक्टेयर में मक्का और करीब 16000 हेक्टेयर में ज्वार की बुवाई का लक्ष्य निर्धारित किया गया था.
कृषि विभाग के अनुसार अब तक 70 फीसदी बुवाई कर दी गई है. जून के दूसरे पखवाड़े में मानसून पहले की बारिश के दौरान किसानों ने अधिकांश फसलों की बुवाई कर दी. करीब 20 दिन से अधिक समय के बावजूद मानसून सक्रिय नहीं हो पाया है. इस कारण एक तरफ फसलें सूखने के कगार पर हैं. वहीं. ईल्ली के प्रकोप ने रही सही उम्मीदों को भी झटका दे दिया. फसलों के अंकुरण के बाद से ही ईल्ली का प्रकोप काश्तकारों को रुलाता दिखाई दे रहा है. धीरे धीरे ये कीट आस-पास की फसलों को भी चपेट में लेता जा रहा है.
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किसान दिनेश मीणा के अनुसार फसल अंकुरित होने के बाद यह कीट सक्रिय हो जाता है. जो कि चने को पूरी तरह से खोखला कर देता है. हालांकि, हम लोग कीटनाशक का भी उपयोग कर रहे हैं. लेकिन. थमने की बजाय ये तो लगातार फैलता जा रहा है. वहीं, किसान पवन गुर्जर के अनुसार पिछले साल भी इस ईल्ली ने फसलों को चौपट कर दिया था. कंपनी और कृषि विभाग के विशेषज्ञों के सलाह के आधार पर पेस्टिसाइड्स भी यूज किए, लेकिन कोई फायदा नहीं मिल पाया. अब हमारे पास फसल को काटकर पशुओं को डालने के अलावा अन्य कोई भी विकल्प नहीं रहा.