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इल्ली की चपेट में मक्का की फसल, खेतों में पहुंचे कृषि अधिकारी... किसानों को दी सलाह

चित्तौड़गढ़ में किसानों पर बारिश न होने से दोहरी मार पड़ रही है. एक तरफ बारिश की कमी से फसल अच्छी नहीं हो पा रही है दूसरी ओर मक्का की फसल को इल्ली नुकसान पहुंचा रहे हैं. हालांकि इल्ली के खतरे को देखते हुए खेतों में कृषि अधिकारी भी पहुंचे और किसानों को इस समस्या से निपटने के उपाय बताए.

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इल्ली की चपेट में मक्का की फसल
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Published : Jul 14, 2021, 11:01 PM IST

चित्तौड़गढ़. काश्तकार पहले से ही कोरोना के साथ-साथ बारिश में देरी से परेशान है. इस बीच मक्का में ईल्ली का प्रकोप तेजी से बढ़ता जा रहा है. कृषि विभाग के अधिकारी भी हरकत में आए और किसानों के पास पहुंचे. अधिकारियों की टीम की ओर से प्रभावित काश्तकारों के खेतों का निरीक्षण करने के बाद इससे बचने के लिए किस प्रकार के उपाय किए जा सकते हैं इस बारे में किसानों को बताया गया.

उप निदेशक कृषि दिनेश कुमार जागा, उप निदेशक-पादप रोग ओपी शर्मा, हायक निदेशक कृषि कपासन डॉ. शंकर लाल जाट समेत तमाम अधिकारियों ने किसानों के खेतों पर मक्का की फसल का निरीक्षण किया गया. इस दौरान मक्का फसल में फाल आर्मी वार्म नामक कीट का काफी प्रकोप देखा गया जो मक्का को नुकसान पहुंचा रहा है.

पढ़ें: सिंगल यूज प्लास्टिक पूरी तरह बंद करने पर फिर मंथन, मुख्य सचिव का विस्तृत प्लान बनाने का निर्देश

उप निदेशक कृषि ने बताया कि यह बहु फसल भक्षी कीट है जो 80 से ज्यादा फसलों को नुकसान पहुंचाता है. इस कीट की मादा मोथ मक्का के पौधों की पत्तियों और तनों पर अंडे देती है जो एक बार में 50 से 200 अंडे देती है.यह अंडे 03 से 04 दिनों में फुट जाते हैं. इनसे जो लार्वा निकलता है जो 14 से 22 दिन तक की अवस्था में रहता है. लार्वा के मुख्य पहचान सिर पर उल्टा वाई के आकार का सफेद निशान दिखाई देता. लार्वा पौधों की पत्तियों को खुरचकर खाता है जिससे पत्तियों पर सफेद धारियां दिखाई देती हैं. यह पौधे को नुकसान पहुंचाती है. इस लार्वा से बुवाई से लेकर पौधे की हार्वेस्टिंग अवस्था तक नुकसान पहुंचाता रहता है.

पढ़ें: कोरोना के बीच ठप पड़े उद्योग को "फोकस अप्रोच मिशन" देगा संजीवनी

इसकी ओर से विसर्जित मल तने एवं पत्तियों पर नजर आता है. यह लट सुबह से शाम तक सक्रिय रहती है तथा मुख्यतः दोपहर में नुकसान पहुंचाती है. लार्वा अवस्था पूर्ण हो जाने के पश्चात् प्यूपा अवस्था में बदलकर भूरे से काले रंग का होता है. यह अवस्था 07 से 14 दिन तक रह कर इसके पश्चात पूर्ण नर एवं मादा मोथ बनती है. मक्का के फसल में तीन जीवन चक्र पूर्ण कर लेती है. ऐसी मादा एक रात में 100 से 150 किमी. दूरी तय कर संक्रमण को दूर-दूर तक फेला सकती है.

डॉ . जाट ने किसानों को इसके प्रभावी नियंत्रण के उपाय बताए. बताया कि बारीक रेत/राख का मक्का का पौधे पर भुरकाव, ट्राईकोग्रामा-ट्राईको कॉड 125000/हेक्टर का उपयोग, प्रकाश पाश/फेरोमोन ट्रैप्स 5/ एकड़ का उपयोग कर इससे राहत पाई जा सकती है. कृषि अधिकारी प्रशान्त जाटोलिया ने बताया कि किसानों को हमेशा नियमित रूप से अपने खेतों पर भ्रमण कर कीटों की पहचान करनी चाहिए ताकि समय पर नियंत्रण कर किसान आर्थिक क्षति से बच सके.

चित्तौड़गढ़. काश्तकार पहले से ही कोरोना के साथ-साथ बारिश में देरी से परेशान है. इस बीच मक्का में ईल्ली का प्रकोप तेजी से बढ़ता जा रहा है. कृषि विभाग के अधिकारी भी हरकत में आए और किसानों के पास पहुंचे. अधिकारियों की टीम की ओर से प्रभावित काश्तकारों के खेतों का निरीक्षण करने के बाद इससे बचने के लिए किस प्रकार के उपाय किए जा सकते हैं इस बारे में किसानों को बताया गया.

उप निदेशक कृषि दिनेश कुमार जागा, उप निदेशक-पादप रोग ओपी शर्मा, हायक निदेशक कृषि कपासन डॉ. शंकर लाल जाट समेत तमाम अधिकारियों ने किसानों के खेतों पर मक्का की फसल का निरीक्षण किया गया. इस दौरान मक्का फसल में फाल आर्मी वार्म नामक कीट का काफी प्रकोप देखा गया जो मक्का को नुकसान पहुंचा रहा है.

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उप निदेशक कृषि ने बताया कि यह बहु फसल भक्षी कीट है जो 80 से ज्यादा फसलों को नुकसान पहुंचाता है. इस कीट की मादा मोथ मक्का के पौधों की पत्तियों और तनों पर अंडे देती है जो एक बार में 50 से 200 अंडे देती है.यह अंडे 03 से 04 दिनों में फुट जाते हैं. इनसे जो लार्वा निकलता है जो 14 से 22 दिन तक की अवस्था में रहता है. लार्वा के मुख्य पहचान सिर पर उल्टा वाई के आकार का सफेद निशान दिखाई देता. लार्वा पौधों की पत्तियों को खुरचकर खाता है जिससे पत्तियों पर सफेद धारियां दिखाई देती हैं. यह पौधे को नुकसान पहुंचाती है. इस लार्वा से बुवाई से लेकर पौधे की हार्वेस्टिंग अवस्था तक नुकसान पहुंचाता रहता है.

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इसकी ओर से विसर्जित मल तने एवं पत्तियों पर नजर आता है. यह लट सुबह से शाम तक सक्रिय रहती है तथा मुख्यतः दोपहर में नुकसान पहुंचाती है. लार्वा अवस्था पूर्ण हो जाने के पश्चात् प्यूपा अवस्था में बदलकर भूरे से काले रंग का होता है. यह अवस्था 07 से 14 दिन तक रह कर इसके पश्चात पूर्ण नर एवं मादा मोथ बनती है. मक्का के फसल में तीन जीवन चक्र पूर्ण कर लेती है. ऐसी मादा एक रात में 100 से 150 किमी. दूरी तय कर संक्रमण को दूर-दूर तक फेला सकती है.

डॉ . जाट ने किसानों को इसके प्रभावी नियंत्रण के उपाय बताए. बताया कि बारीक रेत/राख का मक्का का पौधे पर भुरकाव, ट्राईकोग्रामा-ट्राईको कॉड 125000/हेक्टर का उपयोग, प्रकाश पाश/फेरोमोन ट्रैप्स 5/ एकड़ का उपयोग कर इससे राहत पाई जा सकती है. कृषि अधिकारी प्रशान्त जाटोलिया ने बताया कि किसानों को हमेशा नियमित रूप से अपने खेतों पर भ्रमण कर कीटों की पहचान करनी चाहिए ताकि समय पर नियंत्रण कर किसान आर्थिक क्षति से बच सके.

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