कपासन (चित्तौड़गढ़). बेगार प्रथा के विरोध में जागीरदारों के खिलाफ जिले के बेंगू में हुए किसान आन्दोलन में जागीरदार द्वारा चलाई गोली से शहीद हुए किसान आन्दोलनकारी रूपाजी कृपाजी की पुण्यतिथि श्रद्धा पूर्वक मनाई गई.
बता दें कि बेंगू बिजोलिया किसान आंदोलन में शहीद हुए जयनगर के रूपाजी और अमरपुरा के कृपाजी की गोविंदपुरा में बनी मूर्तियों पर शुक्रवार को सेशल डिस्टनसिंग की पालना करते हुए पूर्व राज्यमंत्री और भाजपा राष्ट्रीय परिषद सदस्य चुन्नी लाल धाकड़ सहीत कई सामाजिक और राजनीतिक संगठनों के पदाधिकारियो ने पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी.
बेंगू किसान आंदोलन चित्तौड़गढ़ में 1921 में आरम्भ हुआ था. इसकी शुरूआत बेगार प्रथा के विरोध के रूप में हुई थी. आंदोलन की शुरूआत रामनारायण चैधरी ने की थी, बाद में इसकी भाग-दौड़ विजयसिंह पथिक ने सम्भाली थी.
इस समय बेगूँ के ठाकुर अनुपसिंह थे. 1922 में अनुपसिंह और राजस्थान सेवा संघ के मंत्री रामनारयण चैधरी के मध्य एक समझौता हुआ, जिसे बोल्सेविक समझौते की संज्ञा दी गई. यह संज्ञा किसान आंदोलन के प्रस्तावों के लिए गठित ट्रेन्च आयोग ने दी थी.
13 जुलाई,1923 को गोविन्दपुरा में किसानों का एक सम्मेलन हुआ, सेना के द्वारा किसानों पर गोलियां चलाई गयी थी. जिसमें रूपाजी धाकड़ और कृपाजी धाकड़ नामक दो किसान शहीद हो गए थे. अन्त में बेगार प्रथा को समाप्त कर दिया गया.
इस अवसर पर भाजपा के पूर्व चेयरमैन कैलाश भारद्वाज, राजगढ़ सरपंच मांगी लाल धाकड़, गोपाल सोनी, अवधेश व्यास, नेमीचंद डांगी, गोपाल छिपा, पारस जैन, वैभव पगारिया, ओंकार धाकड़, सत्यपाल गोड़, रमेश झंवर, अशोक, मंत्री कन्हैया ओझा आदि कई कार्यकर्तागण मौजूद रहे.