चित्तौड़गढ़. घोसुण्डा बांध के डूब क्षेत्र में पानी की आवक को बढ़ाया गया तो गांव सरलाई सहित आधा दर्जन गांवों की भूमि आवाप्त करने की योजना बनी. इसके लिए जिंक प्रबन्धन ने आवाप्त भूमि के ग्रामीणों को बड़े-बड़े सपने दिखाए. लेकिन परिणाम शून्य रखा. विस्थापित गांवों को नए स्थान पर बसाने के लिए कई सुविधाओं की बात कही गई. लेकिन इनकी पूर्ति भी जिंक योजना के अनुसार होती है. लेकिन हकीकत कुछ अलग ही है.
ऐसे में कुछ किसानों ने मुआवजा ले लिया तथा कुछ लोगों को आवाप्ति में शामिल नहीं किया. वहीं सरलाई के चारभुजा नाथ मन्दिर को भी हिन्दुस्तान जिंक दगा देने से बाज नहीं आया और मन्दिर को जिंक को आवाप्त नहीं किया. इसका नतीजा यह है कि यह मंदिर आज भी डूब क्षेत्र में आ रहा है. जानकारी मिली है कि करीब 400 साल पुराने इस मन्दिर को आवाप्त नहीं किया गया. वहीं शेष गांवों के मन्दिरों के आवाप्ति हो गई है. ऐसा लगता है कि हिन्दुस्तान जिंक पैसा बचाना चाहता है. जिंक की इस कालगुजारी से किसान ही नहीं आम जन भी परेशान हैं.
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इस मामले में जनप्रतिनिधियों ने जयपुर से लेकर दिल्ली तक शिकायतें की तथा मामला संसद तक भी पहुंचा. लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है. ग्रामीणों का आरोप है कि मंदिर की अवाप्ति ही जारी नहीं की. मानसून के दौरान यहां चारों तरफ पानी भर जाता है. मंदिर का मुआवजा जारी नहीं किया गया है.