नई दिल्ली : नई दिल्ली लोकसभा सीट से सांसद और भाजपा नेता बांसुरी स्वराज ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कुछ ऐसा बोल दिया, जिसने राजनीतिक बहस को जन्म दे दिया है. दरअसल, बांसुरी स्वराज से प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पत्रकार ने सवाल किया कि ऐसी जानकारी मिल रही है कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का जो पद है, उसको रोटेशनल करने की बात चल रही है?
इसके जवाब में बांसुरी स्वराज ने कहा, ''हां, मैंने भी यह सुना है. अगर विपक्ष को यह लगता है कि राहुल गांधी नेता विपक्ष का पद नहीं संभाल पा रहे हैं और उन्हें इस तरह से बदलाव लाना चाहिए तो यह उनका अंदरूनी मामला है."
उन्होंने आगे कहा, "नेता प्रतिपक्ष का मामला विपक्ष का मामला है. इसे रोटेशन करने की बात मैंने भी सुनी है.'' बांसुरी स्वराज के इस जवाब के बाद से ही इसने एक नई राजनीतिक बहस को जन्म दे दिया है. इस पर से बात करते हुए समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता मनोज यादव ने कहा कि इस पद को रोटेशनल किया जाए या न किया जाए, इसे बांसुरी स्वराज कैसे तय कर सकती हैं.
इसके बाद उन्होंने भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर टिप्पणी करते हुए कहा कि बांसुरी स्वराज शायद इसलिए यह बातें कर रही हैं, क्योंकि बीजेपी में नरेंद्र मोदी के स्थान पर किसी और को लाने की चर्चा जोरों पर है.
उन्होंने आगे कहा, ''बीजेपी यह कैसे आकलन कर सकती है कि राहुल गांधी अपनी भूमिका ठीक से नहीं निभा रहे हैं? प्रधानमंत्री सदन में जितनी देर बैठते हैं, राहुल गांधी भी उतनी ही देर वहां होते हैं. नेता सदन की सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है कि वह अधिक से अधिक लोगों को सुने. वर्तमान में संसद में जो राजनीतिक हालात चल रहे हैं, उस पर उनका क्या जवाब है? वे एक वीआईपी की तरह आते हैं, जबकि, वे कृषि समाप्त करने वाले प्रधानमंत्री हैं. एक दिन आते हैं, अपना बयान देकर और कुछ मिनटों में चले जाते हैं.''
अब भाजपा नेता की तरफ से मीडिया के सवालों के जवाब के मायने एक बार समझ लिए जाएं तो नतीजा जो निकलकर सामने आ रहा है, वह सीधे तौर पर हरियाणा चुनाव से जुड़ा हुआ है. हरियाणा में कांग्रेस की हार के बाद इंडी गठबंधन के कई सहयोगी दल के नेता कांग्रेस को या तो नसीहत देते नजर आए या फिर इस हार की समीक्षा के लिए कहते दिखें.
वहीं, आम आदमी पार्टी के नेता तो इसको लेकर कांग्रेस और राहुल गांधी पर निशाना साधते भी नजर आए और कहते दिखे कि अगर गठबंधन के तहत सीटों का बंटवारा कर एकजुटता के साथ चुनाव लड़ा जाता तो हरियाणा के परिणाम कुछ और आ सकते थे. इसके साथ ही आम आदमी पार्टी ने यह ऐलान भी कर दिया कि दिल्ली विधानसभा का चुनाव पार्टी अकेले अपने दम पर लड़ेगी। वह दिल्ली में किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं होगी.
दूसरी तरफ शिवसेना (यूबीटी) जो महाराष्ट्र में कांग्रेस की गठबंधन सहयोगी पार्टी है, उसने भी इस हार को लेकर कांग्रेस को समीक्षा करने की नसीहत दे डाली और अपने मुखपत्र 'सामना' में लिखा कि कांग्रेस को हरियाणा के नतीजों से सीख लेने की जरूरत है. कांग्रेस को पता है कि जीत को हार में कैसे बदलना है.
सीपीआई नेता डी. राजा ने भी चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि इंडी गठबंधन हरियाणा में साथ में चुनाव नहीं लड़ा, इसी वजह से बीजेपी को फायदा हुआ. कांग्रेस को गंभीरता से विचार की जरूरत है.
वहीं, कांग्रेस द्वारा हरियाणा में दरकिनार की गई समाजवादी पार्टी ने भी हरियाणा चुनाव के नतीजे घोषित होते ही, यूपी में 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए 6 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया. सूत्रों की मानें तो इनमें वह सीटें शामिल थी, जिन्हें कांग्रेस अपने लिए मांग रही थी. इसके बाद अखिलेश यादव ने स्पष्ट तो कर दिया कि यूपी में सपा और कांग्रेस का गठबंधन जारी रहेगा. लेकिन, इस हालात में यह कैसे संभव हो पाएगा, यह सोचने वाली बात है.
दरअसल, यूपी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय जिस मझवां सीट की मांग अपने बेटे शांतनु राय के लिए कर रहे थे, उसके साथ कांग्रेस फूलपुर सदर की जिस सीट पर अपनी दावेदारी ठोंक रही थी, उन दोनों पर सपा ने उम्मीदवारों के नामों का ऐलान कर इन दोनों ही सीटों पर कांग्रेस की दावेदारी के दरवाजे बंद कर दिए. यहां इन दोनों सीटों के साथ कुल 5 सीटों पर कांग्रेस चुनाव लड़ना चाहती थी. लेकिन, सपा ने पहले ही 6 उम्मीदवारों के नामों का ऐलान कर कांग्रेस को चौंका दिया. बची चार सीटों में एक सीट पहले से सपा के पास थी और दो सीट आरएलडी के हिस्से की सीट है. ये तीन सीटें जिसमें कुंदरकी, गाजियाबाद और अलीगढ़ की खैर सीट तो सपा कांग्रेस के लिए छोड़ सकती है. जबकि, मुजफ्फरनगर की मीरापुर सीट से भी सपा की स्वयं लड़ने की तैयारी है. यह सीट आरएलडी और सपा के गठबंधन के बाद आरएलडी के हिस्से में गई थी.
सपा के द्वारा इस तरह लिस्ट जारी करने से कांग्रेस का दिल टूट गया है. यूपी कांग्रेस प्रभारी अविनाश पांडे ने कहा कि सपा ने उम्मीदवारों के नामों को लेकर इंडी गठबंधन की समन्वय समिति के साथ चर्चा नहीं की. हमें विश्वास में भी नहीं लिया गया. ऐसे में अब केंद्र के स्तर पर इस गठबंधन का क्या हश्र हो सकता है, इसी को लेकर मीडिया के सवाल का जवाब देते हुए बांसुरी स्वराज ने जो कुछ कहा, उससे सियासी तूफान उठ खड़ा हुआ है.
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