नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए मतदान की प्रक्रिया संपन्न होने के बाद हार जीत को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं. इसके साथ ही दिल्ली के चुनावी रण में उतरे 699 प्रत्याशियों का भाग्य ईवीएम में कैद हो गया है. 8 फरवरी को मतगणना के बाद तस्वीर साफ हो जाएगी कि दिल्ली की जनता ने अगले 5 साल के लिए किसके हाथों में सत्ता सौंपी है. साथ ही इस बात की भी चर्चा शुरू हो गई है, क्या पिछले 7 विधानसभा चुनावों में से 6 चुनाव की तरह इस बार भी नई दिल्ली सीट से जीतने वाला व्यक्ति ही मुख्यमंत्री बनेगा.
दरअलल, मतदान की प्रक्रिया संपन्न होने के बाद आए एग्जिट पोल में अधिकतर सर्वे दिल्ली में बीजेपी सरकार बनने की ओर इशारा कर रहे हैं. वहीं, एक दो सर्वे में फिर से आम आदमी पार्टी की सरकार बनने का भी दावा किया जा रहा है. ऐसे में नई दिल्ली सीट पर भी जीत को लेकर सस्पेंस बना हुआ है. आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक एवं दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के पुत्र व भाजपा प्रत्याशी प्रवेश वर्मा को भी जीत का दावेदार माना जा रहा है. लेकिन, इस बार नई दिल्ली सीट से अगर अरविंद केजरीवाल चुनाव जीतते हैं तो आम आदमी पार्टी की सरकार बनने की संभावना कम नजर आ रही है, तो ऐसे में इस सीट के प्रत्याशी का मुख्यमंत्री बनने का मिथक टूट सकता है.
![नई दिल्ली सीट से उम्मीदवार](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/07-02-2025/23487885_111-2.png)
वहीं, अगर भाजपा प्रत्याशी प्रवेश वर्मा चुनाव जीतते हैं और उस स्थिति में भाजपा की सरकार बनती है तो भी यह नहीं कहा जा सकता है कि भाजपा प्रवेश वर्मा को मुख्यमंत्री बनाए. अगर अरविंद केजरीवाल नई दिल्ली सीट से चुनाव जीत भी जाते हैं और आम आदमी पार्टी की सरकार भी आती है तो भी केजरीवाल फिर से मुख्यमंत्री बनें इसकी संभावना कम ही है, क्योंकि शराब घोटाला मामले में चल रहे ईडी केस के चलते सुप्रीम कोर्ट ने मुख्यमंत्री के रूप में केजरीवाल को जमानत देते हुए उनके कामकाज करने को लेकर कई शर्तें भी लगाई थी.
![कालकाजी सीट से उम्मीदवार](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/07-02-2025/23487885_111-1.png)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि केजरीवाल सचिवालय नहीं जा सकते हैं और न ही सरकारी फाइलों को देख सकते हैं. न किसी फाइल पर हस्ताक्षर कर सकते हैं. इसके चलते केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था और आतिशी को मुख्यमंत्री बनाया था. मतदान के बाद इन समीकरणों को देखकर ये कहा जा सकता है कि इस बार दिल्ली का मुख्यमंत्री नई दिल्ली सीट से बाहर का भी हो सकता है.
नई दिल्ली सीट से कब कौन जीता:
- 1993: कीर्ति आजाद, भाजपा (गोल मार्केट विधानसभा सीट)
- 1998: शीला दीक्षित, कांग्रेस (गोल मार्केट विधानसभा सीट)
- 2003: शीला दीक्षित, कांग्रेस (गोल मार्केट विधानसभा सीट)
- 2008: शीला दीक्षित, कांग्रेस (नई दिल्ली विधानसभा सीट)
- 2013: अरविंद केजरीवाल, आप (नई दिल्ली विधानसभा सीट)
- 2015: अरविंद केजरीवाल, आप (नई दिल्ली विधानसभा सीट)
- 2020: अरविंद केजरीवाल, आप (नई दिल्ली विधानसभा सीट)
छह बार नई दिल्ली सीट से जीतने वाला बना है सीएम: दिल्ली विधानसभा के गठन के बाद पहली बार 1993 में चुनाव हुए थे. इस पहले चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के रूप में कीर्ति आजाद ने गोल मार्केट सीट से जीत दर्ज की. उस वक्त नई दिल्ली विधानसभा सीट नहीं हुआ करती थी. पहले नई दिल्ली का क्षेत्र गोल मार्केट विधानसभा का हिस्सा हुआ करता था. पहले चुनाव को छोड़ दें तो उसके बाद हुए सभी छह चुनाव में नई दिल्ली सीट से जीतने वाले विधायक ही मुख्यमंत्री बनें. 2008 में हुए परिसीमन के बाद नई दिल्ली विधानसभा सीट अस्तित्व में आई. दिलचस्प बात यह है कि जिस पार्टी का प्रत्याशी गोल मार्केट विधानसभा सीट (2008 से पहले) या नई दिल्ली विधानसभा सीट से जीती, उस पार्टी की दिल्ली में सरकार बनी. शीला दीक्षित ने इस सीट से 1998, 2003 और 2008 में जीत दर्ज की. 2013, 2015 और 2020 में अरविंद केजरीवाल नई दिल्ली विधानसभा सीट से चुनाव जीते. तीनों बार दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है.
सीएम फेस पर राजनीतिक विश्लेषक की राय जानिए?
राजनीतिक विश्लेषक जगदीश ममगांई बताते हैं, दिल्ली में विधानसभा चुनाव में अभी तक मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करके चुनाव लड़ने का बीजेपी का रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है. वर्ष 1993 के विधानसभा चुनाव में दिल्ली में मदनलाल खुराना बड़े नेता थे और उस वक्त पार्टी ने जीत हासिल करके दिल्ली में सरकार बनाई थी. लेकिन उसके बाद 1998 से अब तक दिल्ली में पार्टी मुख्यमंत्री पद के लिए नाम घोषित करने के बावजूद जीत हासिल नहीं कर सकी है. वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने मदनलाल खुराना को सीएम चेहरा बनाकर चुनाव लड़ा, बावजूद शीला दीक्षित लगातार दूसरी बार सरकार बनाने में कामयाब हुई.
इसके बाद, वर्ष 2008 में बीजेपी ने शीला दीक्षित के मुकाबले पर अपने वरिष्ठ नेता विजय कुमार मल्होत्रा को चुनाव मैदान में उतारा था. लेकिन वह बीजेपी को जीत नहीं दिला सके. इस अनुभव के बाद वर्ष 2013 में भी बीजेपी ने सीएम फेस तय नहीं किया. हालांकि उस वक्त यह माना जाता था कि पार्टी को बहुमत हासिल हुआ तो डॉक्टर हर्षवर्धन मुख्यमंत्री के तौर पर सरकार की कमान संभालेंगे. लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. 2013 के विधानसभा चुनाव में पार्टी बहुमत के आंकड़े से दूर रह गई. वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने आम आदमी पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हुई किरण बेदी को केजरीवाल के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारकर उन्हें सीएम उम्मीदवार घोषित कर दिया. लेकिन बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा. वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में भी दिल्ली बीजेपी ने बिना सीएम फेस उतारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर ही वोट मांगा था.
ये भी पढ़ें: