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मेवाड़ की पथरीली जमीन में भी होने लगी सेब की खेती, युवा किसान की मेहनत रंग लाई - कपासन में सेब की खेती

मेवाड़ की पथरीली भूमि 49 डिग्री तापमान में सेब का बाग लगा कर उत्पादन करना असम्भव सा लगता है, लेकिन जिले के एक किसान ने इसे सम्भव किया है परम्परागत खेती में खास मुनाफा नहीं मिलने से चिंतित हुए विनोद जाट ने ऑर्गेनिक खेती की ओर अपना कदम बढ़ाया और धोरों की धरती में सेब का बगीचा विकसित किया.

apple cultivation in Kapasan, apple cultivation in Chittorgarh
मेवाड़ की पथरीली जमीन में भी होने लगी सेब की खेती
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Published : Apr 8, 2021, 9:14 AM IST

कपासन (चित्तौड़गढ़). आदमी अगर ठान ले तो पत्थर से भी पानी निकाल सकता है. मेवाड़ की पथरीली भूमि 49 डिग्री तापमान में एप्पल का बाग लगा कर उत्पादन लेना असम्भव सा लगता है, परन्तु इसे सम्भव किया है चित्तौड़गढ़ जिले के एक छोटे से गांव सोनियाना के युवा किसान ने. परम्परागत खेती में खास मुनाफा नहीं मिलने से चिंतित हुए विनोद जाट ने ऑर्गेनिक खेती की ओर अपना कदम बढ़ाया और धोरों की धरती में सेब का बगीचा विकसित करने की ठानी.

मेवाड़ की पथरीली जमीन में भी होने लगी सेब की खेती

युवा किसान विनोद ने हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले की नर्सरी से कोरियर के माध्यम से HRNM-99 किस्म के 150 एप्पल के पौधे मंगवाए, जिन्हें खेत तैयार कर निश्चित दूरी पर खेत मे लगाए. एक साल बाद ही पौधों पर फूल आना शुरू हो गए थे. अभी सभी पौधों पर फल लग रहे हैं.

पढ़ें- मुख्यमंत्री चिरंजीवी योजना : ई-मित्र पर पंजीयन के लिए नहीं लगेगा कोई शुल्क

विनोद में बताया कि व्यवसायिक उत्पादन 4 साल बाद लिया जाएगा. पौधों की देखभाल, कटिंग, खाद, उर्वरक कैसे दिए जाए, इसके लिए वह समय समय पर हिमाचल के किसानों से परामर्श लेते रहते हैं. विनोद पर खेती के कुछ अलग करने का जुनून सवार है. वह हमेशा खेती में नये नये प्रयोग करते रहते हैं. उन्होंने अपने खेत से काले गेंहू, काले चने, लाल मक्का, भूमिगत सेव का भी उत्पादन कर चुके हैं. अब वह अपने खेत में इन्द्रधनुषी मक्का, लाल चावल व हरे चावल पर भी काम कर रहे हैं. वर्तमान में विनोद ने अपने खेतों में मोहनजोदड़ो काल की गेंहू की किस्म सोना मोती व खपली गेहूं लगा रखे हैं.

कपासन (चित्तौड़गढ़). आदमी अगर ठान ले तो पत्थर से भी पानी निकाल सकता है. मेवाड़ की पथरीली भूमि 49 डिग्री तापमान में एप्पल का बाग लगा कर उत्पादन लेना असम्भव सा लगता है, परन्तु इसे सम्भव किया है चित्तौड़गढ़ जिले के एक छोटे से गांव सोनियाना के युवा किसान ने. परम्परागत खेती में खास मुनाफा नहीं मिलने से चिंतित हुए विनोद जाट ने ऑर्गेनिक खेती की ओर अपना कदम बढ़ाया और धोरों की धरती में सेब का बगीचा विकसित करने की ठानी.

मेवाड़ की पथरीली जमीन में भी होने लगी सेब की खेती

युवा किसान विनोद ने हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले की नर्सरी से कोरियर के माध्यम से HRNM-99 किस्म के 150 एप्पल के पौधे मंगवाए, जिन्हें खेत तैयार कर निश्चित दूरी पर खेत मे लगाए. एक साल बाद ही पौधों पर फूल आना शुरू हो गए थे. अभी सभी पौधों पर फल लग रहे हैं.

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विनोद में बताया कि व्यवसायिक उत्पादन 4 साल बाद लिया जाएगा. पौधों की देखभाल, कटिंग, खाद, उर्वरक कैसे दिए जाए, इसके लिए वह समय समय पर हिमाचल के किसानों से परामर्श लेते रहते हैं. विनोद पर खेती के कुछ अलग करने का जुनून सवार है. वह हमेशा खेती में नये नये प्रयोग करते रहते हैं. उन्होंने अपने खेत से काले गेंहू, काले चने, लाल मक्का, भूमिगत सेव का भी उत्पादन कर चुके हैं. अब वह अपने खेत में इन्द्रधनुषी मक्का, लाल चावल व हरे चावल पर भी काम कर रहे हैं. वर्तमान में विनोद ने अपने खेतों में मोहनजोदड़ो काल की गेंहू की किस्म सोना मोती व खपली गेहूं लगा रखे हैं.

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