चित्तौड़गढ़. पंचायती राज चुनाव रोचक दौर में हैं. चित्तौड़गढ़ में बीजेपी और कांग्रेस दोनों दलों के दिग्गजों की धड़कनें बढ़ी हुई हैं. जिला परिषद में 25 वार्ड हैं और बहुमत के लिए 13 का आंकड़ा होना आवश्यक है. टिकट वितरण और चुनाव प्रचार को देखते हुए फिलहाल कांग्रेस कमजोर दिखाई दे रही है.
भारतीय जनता पार्टी ने जिला प्रमुख पद अपने पास रखने के लिए तमाम बड़े-बड़े सूरमा को मैदान में उतारा. इनमें बेगू के पूर्व विधायक सुरेश धाकड़, भूपेंद्र सिंह बडोली, कपासन के पूर्व विधायक और चित्तौड़गढ़ प्रतापगढ़ डेयरी चेयरमैन बद्री लाल जाट तथा युवा मोर्चा जिला अध्यक्ष हर्षवर्धन सिंह रूद शामिल हैं. इन चारों ही प्रत्याशियों के अलावा पार्टी ने अपने अपने क्षेत्र के दमदार लोगों पर दांव लगाया. वहीं कांग्रेस निंबाहेड़ा क्षेत्र से सहकारिता मंत्री उदयलाल आंजना के भाई मनोहरलाल आंजना और बद्रीलाल जगपुरा के अलावा किसी भी दमदार व्यक्ति को तलाश नहीं कर पाई.
उम्मीदवार तक नहीं मिले, करौली और यूपी से लाए...
हालत यह है कि बेगू विधानसभा क्षेत्र से पार्टी को गाजियाबाद उत्तर प्रदेश से महावीर गुर्जर को मैदान में उतारना पड़ा. यही नहीं बेगू पंचायत समिति क्षेत्र से करौली की एक महिला को मैदान में उतारा. बाहरी प्रत्याशियों को लेकर गंगरार से लेकर भैंसरोडगढ़ और बेगू ब्लॉक के कार्यकर्ताओं में भारी रोष देखा गया है. कई वरिष्ठ कार्यकर्ताओं ने पार्टी तक छोड़ दी. कई वरिष्ठ नेताओं ने चुनाव प्रचार से अपने आप को अलग कर लिया. इसका खामियाजा संभव है पार्टी को भुगतना पड़े.
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आंजना की साख दांव पर...
सहकारिता मंत्री उदयलाल आंजना की साख भी दांव पर है. क्योंकि इन चुनावों में उनके भाई मनोहर आंजना निंबाहेड़ा इलाके से मैदान में हैं. उनकी जीत को लेकर खुद पार्टी असमंजस में है क्योंकि उन्हें जिला परिषद के साथ साथ पंचायत समिति के वार्ड से भी खड़ा किया गया है. इसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि जिला परिषद में बोर्ड नहीं बनने की स्थिति में उन्हें पंचायत समिति प्रधान के लिए उनकी दावेदारी सुनिश्चित की जा सके. दोनों ही भाइयों के चुनाव के बीच कोरोना संक्रमित होने के कारण लंबे समय तक चुनाव प्रचार से भी दूर रहे. इसके चलते एक प्रकार से इन चुनाव में सहकारिता मंत्री की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई है क्योंकि भाजपा ने वार्ड 18 से क्षेत्र के दमदार और स्थानीय भूपेंद्र सिंह बडोली को मैदान में उतारा जिन्होंने मुकाबले को और भी कड़ा कर दिया.
कांग्रेस में सब अलग-अलग, भाजपा में सब एक साथ...
चित्तौड़गढ़ विधानसभा क्षेत्र में 4 वार्ड है और इनकी कमान पूर्व विधायक सुरेंद्र सिंह जाड़ावत संभाल रहे हैं. कपासन विधानसभा क्षेत्र की 6 सीटों के लिए पूर्व विधायक शंकर लाल बैरवा तथा अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य आनंदी लाल खटीक अलग-अलग दमखम लगा रहे हैं. वहीं बड़ी सादड़ी विधानसभा क्षेत्र में पूर्व विधायक प्रकाश चौधरी कांग्रेस का कामकाज देख रहे हैं. लेकिन वे अपने पुत्र को प्रधान बनाने के फेर में ज्यादा नजर आ रहे हैं. इधर भाजपा पर नजर डालें तो पार्टी एकजुट होकर चुनाव लड़ रही है. सांसद सीपी जोशी के अलावा चित्तौड़गढ़ विधायक चंद्रभान सिंह आक्या चित्तौड़गढ़ के अलावा निंबाहेड़ा तथा बेगू सहित अन्य विधानसभा क्षेत्रों में भी अपने प्रत्याशियों के पक्ष में कोई भी कसर नहीं छोड़ रहा है.
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25 साल में से सिर्फ 1 साल के लिए कांग्रेस का जिला प्रमुख...
1995 से जिला प्रमुख पद पर नजर डालें तो 1995 से 98 तक भाजपा के श्रीचंद कृपलानी, 1998 से वर्ष 2000 तक लीला शर्मा तथा वर्ष 2000 से 2005 तक भैरों सिंह चौहान के बाद वर्ष 2005 से 6 तक कांग्रेस की लक्ष्मी बाई मीणा जिला प्रमुख रहीं. लेकिन इसके बाद बाजी पलटी और 1 साल बाद ही वर्ष 2006 में भाजपा की सुमित्रा मीणा इस पद पर पहुंची. वर्ष 2010 में पंचायत राज चुनाव में भाजपा की सुशीला जीनगर जिला प्रमुख बनी और 5 साल सत्ता में रहने के बाद वर्ष 2015 में फिर से भाजपा जिला प्रमुख पद को बरकरार रखने में कामयाब रही.
दोनों ही दलों का अपना अपना राग...
भाजपा नेता और लगातार दूसरी बार चित्तौड़गढ़ विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए चंद्रभान सिंह आक्या पंचायत समिति के साथ-साथ जिला प्रमुख पद पर पार्टी के काबिज होने का दावा करते हुए कहते हैं कि गहलोत सरकार की विफलता हमारी जीत का आधार बनेगी. वहीं कांग्रेस नेता और पूर्व विधायक सुरेंद्र सिंह जाड़ावत का मानना है कि इस बार हम जिला प्रमुख का पदवी हासिल करने में कामयाब रहेंगे. जाड़ावत का कहना है कि राज्य सरकार द्वारा कोविड-19 की विपरीत परिस्थितियों में भी अच्छा मैनेजमेंट और केंद्र सरकार के तीन कृषि बिल जिनका किसान विरोध कर रहे हैं. इसलिए कांग्रेस को पंचायत समिति से लेकर जिला प्रमुख पद तक पहुंचाने में सहायक साबित होंगे.